(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ludhiana: पंजाब में चार साल बाद शुरू हुआ 'रूरल ओलंपिक गेम्स', 1933 से होता आ रहा आयोजन
ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब और किला रायपुर स्पोर्ट्स सोसाइटी का कानूनी विवाद सुलझने के बाद पंजाब के चर्चित किला रायपुर खेल महोत्सव की आज से शुरुआत हुई. इसका आयोजन किला रायपुर स्पोर्ट्स सोसायटी कर रही है.
Ludhiana: पंजाब में आज 3 फरवरी से 'रूरल ओलंपिक गेम्स' की शुरुआत हुई. प्रदेश का बहुचर्चित किला रायपुर खेल महोत्सव (Qila Raipur Sports Festival) का आयोजन 4 साल के बाद हो रहा है. ये खेल समारोह 'रूरल ओलंपिक' के नाम से ही जाना जाता है. इस बार विजेता टीम को थोड़ी मायूसी हाथ लगेगी क्योंकि टीमें 100 तोले शुद्ध सोने और एक किलो चांदी के कप को नहीं चूम पाएंगी. ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब और किला रायपुर स्पोर्ट्स सोसाइटी के बीच चल रहे विवाद के कारण ऐसा होगा.
ये रही चार साल आयोजन नहीं होने की वजह
इन्हीं दोनों संस्थाओं की वजह से कोरोना काल से पहले 2 साल तक इन खेलों का आयोजन नहीं हो पाया. पिछले 2 साल तो कोरोना की भेंट चढ़ गए. कभी बैलगाड़ी रेस के लिए जाने जाने वाला यह खेल आयोजन कभी बहुत लोकप्रिय था. वर्ष 2014 तक ये बहुत ही लोकप्रिय था लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट से रोक लगने के बाद बैलगाड़ी दौड़ का आयोजन नहीं किया जा सका है. तमिलनाडु में जलीकुट्टू पर भी रोक लगी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने से स्वीकृति मिलने के बाद वहां फिर से इसका आयोजन किया जाने लगा लेकिन बैलगाड़ी रेस पर बैन अभी जारी है. पंजाब में इन खेलों की लोकप्रियता का आलम यह रहा है कि बड़ी संख्या में विदेश में रहने वाले पंजाब के लोग इन्हीं दिनों में छुट्टियां लेकर भारत आते हैं ताकि इन खेलों आनंद ले सकें. उम्मीद की जाती है कि जैसे 4 साल बाद इन खेलों का फिर से आयोजन हो रहा है, उसी तरह से बैलगाड़ी रेस के आयोजन की भी अनुमति भी सुप्रीम कोर्ट से मिल जाएगी.
आयोजन के लिए इस्तेमाल होने वाली जमीन को लेकर था विवाद
इन खेलों के आयोजन के लिए जिस जमीन का इस्तेमाल होता रहा है उस जमीन को लेकर चले विवाद में ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब से किला रायपुर स्पोर्ट्स सोसाइटी कानूनी लड़ाई जीत गई है. इसलिए इन खेलों का आयोजन ये सोसाइटी ही करा रही है. इस बार यह इन खेलों का 83 आयोजन है. किला रायपुर एक्सपोर्ट सोसाइटी के सदस्य. गुरविंदर सिंह ग्रेवाल के अनुसार इस बार के खेलों के आयोजन का थीम 'इक्वलिटी' है.
लड़का और लड़की दोनों वर्ग के लिए बराबर पुरस्कार राशि
थीम को ध्यान में रखकर खेल में लड़के और लड़कियों दोनों के लिए पुरस्कार की राशि बराबर होगी. इस बार के खेलों के आयोजन का बजट लगभग 30 लाख रुपये है. इन खेलों का आयोजन आजादी से पहले होता आ रहा है. वर्ष 1933 में पहली बार इसका आयोजन हुआ था. इन खेलों में 100 तोला शुद्ध. सोने का कप मुख्य आकर्षण होता था. खासकर के हॉकी में जीतने वाली टीम इस कप को रखती थी. बाद के दिनों में 1 किलो शुद्ध चांदी का कप भी बनवाया गया. और इससे उपविजेता टीम को दिया जाने लगा. इस बार यह कप इसलिए नहीं दिखेगा क्योंकि यह ग्रेवाल स्पोर्ट्स क्लब के पास है और खेलों का आयोजन किला रायपुर स्पोर्ट्स सोसाइटी कर रही है.
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