(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
पति का शादी से इनकार, अब बेटे का होगा DNA टेस्ट, पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट का आदेश
Punjab And Haryana HC: पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कानून के प्रासंगिक होने और अपनी गतिशील प्रकृति को बनाए रखने के लिए साइंटिफिक टेस्टिंग के आधार पर सबूत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
Punjab And Haryana High Court News: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पति के शादी से इनकार करने के बाद कथित पत्नी के भरण-पोषण दायित्व तय करने के लिए वयस्क बच्चे के डीएनए टेस्ट की इजाजत दी है. ताकि बच्चे के असली पिता का पता लगाया जा सके. पत्नी ने 2003 में शादी होने और फिर 2005 में बच्चे होने की बात कही थी. लेकिन शख्स ने शादी होने से ही इनकार किया है.
धारा 125 सीआरपीसी के तहत एक महिला के भरण-पोषण दावे के संबंध में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने उसके वयस्क बेटे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए उसके डीएनए टेस्ट की अनुमति दी है, जो कोर्ट को यह निर्धारित करने में सहायता करेगा कि क्या विवाह की प्रकृति का कोई अंतरंग संबंध पति और पत्नी के बीच मौजूद था या नहीं.
जज ने क्या कहा?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा, "यह अदालत इस विचार पर है कि जहां नाजायज या अनैतिक करार दिया जाना चिंता का विषय नहीं है, वहां कोर्ट के लिए सत्य तक पहुंचने और पूर्ण न्याय करने के लिए विश्वसनीय और सटीक विज्ञान पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं है, बजाय अनुमानों का सहारा लेने के. साक्ष्य अधिनियम जैसे क़ानून बनाने के समय, विज्ञान और तकनीक आज की तरह उन्नत नहीं थे."
कोर्ट ने कहा कानून के प्रासंगिक होने और अपनी गतिशील प्रकृति को बनाए रखने के लिए, इसे समय के साथ चलना चाहिए और समकालीन सामाजिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए. इसलिए, कानून के तहत सटीक साइंटिफिक टेस्टिंग के आधार पर सबूत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
कोर्ट ने कहा, "पैटरनिटी टेस्ट के नतीजे यह पता लगाने में भी काफी सहायक होंगे कि प्रतिवादी संख्या 2 (पत्नी) धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की हकदार है या नहीं." ये टिप्पणियां एक फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं.
महिला ने कहा कि 2003 में विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक हुआ था. 2005 में एक बेटे का जन्म भी हुआ. हालांकि, उनके बीच संबंध खराब हो गए और उसके पति (याचिकाकर्ता) ने कथित तौर पर अपने परिवार को बच्चे के जन्म के बारे में भी नहीं बताया. याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर न केवल इससे इनकार किया, बल्कि उसे बुरी तरह पीटा और घर से निकाल दिया. इसके बाद वह अपने पैतृक घर में रहने लगी.
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