पंजाब में कांग्रेस के 3 विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. इन विधायकों को पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का समर्थक माना जाता था. लेकिन कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने कैप्टन की पंजाब लोक कांग्रेस के ऊपर बीजेपी को तरजीह दी. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Election 2022) के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह (Caption Amrinder Singh) की पंजाब लोक कांग्रेस (PLC) ने बीजेपी और सुखदेव सिंह ढीढसी की शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ गठबंधन किया है.


कौन हैं कैप्टन के करीबी


कैप्टन के इन करीबी विधायकों के नाम हैं, गुरु हर सहाय सीट से जीते राना गुरमीत सोढ़ी. वो कैप्टन की सरकार में खेल मंत्री थे. कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद उनसे मंत्री पद वापस ले लिया गया था. दूसरे हैं कादियां के विधायक फतेह जंग बाजवा. वो भी कैप्टन के करीबी हैं. कैप्टन ने उन्हें टिकट दिलाने में मदद की थी. वहीं श्री हरगोविंदपुर के विधायक बलविंदर सिंह लाडी को कैबिनेट मंत्री राना गुरजीत सिंह का करीबी माना जाता है. राना कैप्टन के वफादारों में शामिल हैं.  


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दरअसल पंजाब में आजकल इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर सकते हैं. उनके करीबियों के बीजेपी में शामिल होने के पीछे इसे बड़ा कारण माना जा रहा है. हालांकि पंजाब लोक कांग्रेस के प्रवक्ता प्रिंस खुल्लर इन चर्चाओं से इनकार करते हैं. उन्होंने कहा कि ये विधायक कैप्टन अमरिंदर सिंह से राय-मशविरा के बाद बीजेपी में शामिल हुए हैं.


कैप्टन के करीबियों के बीजेपी में जाने का एक और कारण यह भी हो सकता है, जैसा कि पीएलसी ने प्रस्ताव दिया है कि जो लोग बीजेपी के गढ़ से चुनाव लड़ना चाहते हैं, वो बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, जिससे की पार्टी का परंपरागत वोट बैंक बना रहे.


गठबंधन दलों में है आपसी सहमति


पंजाब लोक कांग्रेस के प्रवक्ता के मुताबिक राना गुरमीत सोढ़ी फीरोजपुर शहर से चुनाव लड़ना चाहते थे और फतेह जंग बाजवा किसी हिंदुबहुल सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. ये वो सीटें हैं, जहां से बीजेपी परंपरागत रूप से चुनाव लड़ती रही है. इस वजह से इन नेताओं ने बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया. 


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खुल्लर ने कहा, ''बीजेपी, पीएलसी और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के बीच इस बात पर आपसी सहमति है कि उम्मीदवारों के चयन की प्राथमिकता उनके जीत की संभावना होगी. लेकिन टिकट का फैसला करते समय इन पार्टियों के परंपरागत वोट बैंक का भी ध्यान रखा जाएगा.''