Punjab News: पंजाब (Punjab) में महिला सरपंचों के प्रतिनिधि के तौर पर काम करने वाले उनके पति पर सरकार ने कड़ा निर्देश जारी किया है. महिला सरपंचों के चुनाव जीतने पर उनके पतियों द्वारा बैठकों में भाग लेने पर राज्य सरकार ने रोक लगा दी है. सरकार ने कहा है कि महिला सरपंच यदि खुद पंचायतों की बैठक में शामिल नहीं होंगी तो ऐसा करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें सस्पेंड किया जा सकता है.


आधिकारिक बैठकों में शामिल हो महिला सरपंच


पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने इस मामले पर सख्त रुख अपनाया है. सरकार ने उपायुक्तों और अन्य जिला अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि महिला सरपंच व्यक्तिगत रूप से सभी आधिकारिक बैठकों में शामिल हों. सरकार ने कहा है कि जो भी महिला पंच या सरपंच चुनी जाएगी उसे ही पंचायतों के कामों में आगे बढ़कर फैसले लेने होंगे. ऐसा न करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.


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आरक्षण का क्या उद्देश्य?


इस मुद्दे पर पंजाब के ग्रामीण विकास और पंचायत मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने कहा कि, “मुझे पता चला है कि अधिकांश महिला सरपंच ऐसी हैं जो जिला मुख्यालय में होने वाली बैठकों में शामिल नहीं होती हैं. वे ब्लॉक और ग्राम स्तर की बैठकों में भी नहीं आती हैं. अगर ऐसा हो रहा है तो फिर महिलाओं के लिए आरक्षण का क्या उद्देश्य रहा?” धालीवाल ने कहा कि कि महिला सरपंचों के पति व रिश्तेदार सिर्फ बैठकें ही नहीं, बल्कि गांवों में काम भी संभालते हैं. मैंने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि इस परंपरा को रोका जाए.


मालूम हो कि कि पंजाब में 12700 गांव हैं, इनमें 5600 महिला और 7100 पुरुष सरपंच हैं. पंजाब में पिछली कांग्रेस सरकार ने पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था. लेकिन जीतने के बाद भी ज्यादातर महिला सरपंच घर ही बैठती हैं और उनका सारा काम उनके पति ही देखते हैं.


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