पंजाबी गानों में बंदूक और गन कल्चर के खिलाफ सरकार का बड़ा फैसला क्या है?
पंजाब सरकार ने 813 बंदूक लाइसेंस रद्द कर दिए हैं. इसके तहत आने वाले दिनों में बंदूक का सार्वजनिक कामों में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. गन का इस्तेमाल धार्मिक और पार्टी फंक्शनों में नहीं होने दिया जाएगा.
पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने राज्य भर में 813 गन लाइसेंस रद्द कर दिए हैं. फैसले को लेकर 12 मार्च को हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पंजाब अर्बन हाउसिंग, और विकास मंत्री अमन अरोड़ा ने कहा कि ये फैसला राज्य में फैले गन कल्चर यानी बंदूक रखने के शौक को काबू में करने के लिए लिया गया है.
अमन अरोड़ा ने ये भी कहा कि आने वाले दिनों में गन के सार्वजनिक कामों में इस्तेमाल पर लगाम लगाया जाएगा, और गन का इस्तेमाल धार्मिक जगहों, शादियों या किसी भी तरह के पार्टी फंक्शन में नहीं होने दिया जाएगा.
उन्होंने कहा कि राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में चेकिंग भी की जाएगी. पंजाब सरकार के मंत्री का मानना है कि राज्य में गन कल्चर की वजह से हिंसा बढ़ती जा रही है. अरोड़ा ने बताया कि पंजाब में कुल 3,73,053 हथियार लाइसेंस हैं.
बता दें कि कबड्डी खिलाड़ी संदीप नांगल की हत्या मई 2022 में, गायक सिद्धू मूसेवाला, नवंबर 2022 में, शिवसेना नेता सुधीर सूरी, डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी प्रदीप सिंह की हत्या के बाद पंजाब की कानून व्यवस्था पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं.
13 नवबंर 2022 को पंजाब सरकार ने हथियारों को लेकर घूमने और गन कल्चर को उकसाने वाले गानों को सार्वजनिक रूप से बजाने पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया था. अब गन के लाइसेंस रद्द करना भी बिगड़ती कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है.
2022 का आदेश क्या था
13 नवंबर, 2022 को, राज्य के गृह मामलों और न्याय विभाग की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्य के डीजीपी को पत्र लिखा था. इस पत्र में सभी जिलों के मजिस्ट्रेट, आयुक्तों और एसएसपी को ये आदेश दिया गया था कि वो अपने इलाकों में गन के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगाएं. साथ ही गन का महिमामंडन करने वाले गानों पर भी पांबदी लगाई जाए.
इस आदेश के तीन महीने के भीतर सभी लाइसेंसी गन की समीक्षा करने का ऑर्डर भी दिया गया था. साथ ही नए लाइसेंस देने पर भी रोक लगा दी गई थी. वहीं कुछ जरूरी परिस्थतियों में अधिकारियों को लाइसेंस देने की छूट दी गई थी. पंजाब पुलिस ने 29 नवंबर को ये कहा था कि इस आदेश का पालन कोई भी नहींं कर रहा है. आदेश के बाद भी लोग अपनी सुरक्षा का हवाला देकर नए लाइसेंस बनवा रहे हैं.
उसी समय प्रौद्योगिकी (आईटी) और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालयों ने यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हिंसा, ड्रग, और शराब का महिमामंडन करने वाली सामग्री को हटाने का आदेश दिया था. यह आदेश पंजाब और हरियाणा के हाईकोर्ट के फैसले के बाद आया था. उस समय पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के डीजीपी को आदेश दिया गया था कि किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शराब का महिमामंडन करने वाला कोई गाना न हो.
ये भी आदेश था कि लाइव शो में भी इस तरह के गाने न बजाए जाएं. अगर ऐसा होता है तो प्रत्येक जिले के जिला मजिस्ट्रेट/एसएसपी/एसपी व्यक्तिगत रूप से इसके लिए जिम्मेदार होंगे. इस आदेश के बाद भारतीय शस्त्र अधिनियम के तहत कार्रवाई शुरू की गई थी. साल 1959 के दौर के गायकों जैसे एली मंगत और सिप्पी गिल के गानों को कथित तौर पर हिंसा को बढ़ाने वाले गाने बताए गए थे.
सिप्पी गिल का गाना 'गुंडागर्दी' उस समय खूब चर्चा में आया था. आइये एक नजर पंजाब में गन कल्चर का महिमामंडन करने वाले गानों पर डालते हैं जिसकी शुरुआत 1990 में हुई.
पंजाब में 1990 के दशक में एक पंजाबी गाना आया था , बोल थे "गन विच पंज गोलियां तेरे पंज वीरन लेई राखियां " यानी तुम्हारे पांच भाइयों के लिए मेरी गन में पांच गोलियां हैं. काफी जमाने बाद भी ये गाना पंजाब के गायक अपने लाइव शोज में गाया करते थे. राज्य के ग्रामीण इलाकों में इस गाने को लोग अपनी शान मानते थे. सोशल मीडिया पर भी ये गाना खूब पसंद किया जाता था.
जब पंजाबी गायक दिलशाद को डीएसपी ने मारी थी गोली
ये गौर करने वाली बात है कि पंजाबी गानों से गन और हिंसा का जुड़ाव 1990 के दशक से चला आ रहा है. इसकी चर्चा तब खूब बढ़ी थी जब 1996 में, पंजाबी गायक दिलशाद अख्तर ने पंजाब पुलिस के डीएसपी की पंसद का गाना नहीं गाया तो डीएसपी ने गायक को गोली मार दी थी. 2017 में 'गैंगलैंड' गाने में मनकीरत औलख ने गाया था, 'असले यूपी टन जट्टन ने चक ले' यानी जाटों ने यूपी से हथियार उठाए हैं .
इसके अलावा मूसेवाला ने अपने'आउटलॉ' ट्रेक में गाया कि, "अस्सी गोलियां दे नाल मुकने नहीं, मेडलां वांगु पर्चे ने, एडे -एडे कांड करदे. पार्लियामेंट तक चर्चे ने" यानी हम वो नहीं हैं जिन्हें गोलियों से खत्म किया जाएगा. हम पर एफआईआर मेडल की तरह है. हम ऐसे -ऐसे कांड करते हैं कि चर्चे पार्लियामेंट तक होते हैं. साल 2019 में मूसेवाला एक वीडियो में एके-47 राइफल से फायरिंग करते दिखाई दिए थे . इसके बाद वो खूब चर्चा में आए.
इसी तरह मूसेवाला के ट्रैक 'जी वैगन' के बोल थे "जट्ट उस पिंड नु बिलौंग करदा, जिदे बंदा मार के कसूर पूछदे" यानी जट्ट उस गांव से ताल्लुक रखता है जहां पर किसी की जान लेने के बाद पूछा जाता है कि उसने क्या गलती की थी. मूसेवाला पर उनके गानों को लेकर एफआईआर भी दर्ज कराई जा चुकी है.
सिर्फ मूसेवाला ही नहीं ...
29 मार्च 2022 को मूसेवाला की गोली मार कर हत्या कर दी गई. मूसेवाला अपने गानों की वजह से काफी लोकप्रिय थे, लेकिन ये कहना भी गलत होगा कि वो पंजाब के इकलौते ऐसे सिंगर थे जो "गन " का इस्तेमाल अपने गानों में करते थे. पंजाबी गायक एली मंगत के खिलाफ नवंबर 2019 में लुधियाना पुलिस ने FIR दर्ज की थी.
वजह थी जन्मदिन की पार्टी में फायरिंग का वीडियो बना के सोशल मीडिया पर डालना. मोगा पुलिस ने पंजाबी गायक सिप्पी गिल पर उनके ट्रेक 'गुंडागर्दी' के खिलाफ साल 2022 में FIR दर्ज की थी. सिप्पी गिल पर आईपीसी की धारा 117, 153-ए, 505 और 149 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.
ऐसे गानों को बंद करने के लिए सरकार की कोशिशें
कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने ऐसे गानों को बंद करने के आदेश दिए थे. तब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इसके खिलाफ टिप्पणी की थी. फरवरी 2020 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में घोषणा की थी कि " इस तरह के गाने बनाए जाने वालों को राज्य सरकार रिहाई की भी इजाजत नही देगी.
इसी के मद्देनजर तब की पंजाब सरकार ने फिल्म 'शूटर' पर प्रतिबंध लगा दिया था. ये फिल्म गैंगस्टर सुक्खा कहलवां की जिंदगी पर आधारित थी. फिल्म के निर्माताओं पर FIR भी दर्ज की गई थी. तब सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से गन कल्चर को बढ़ावा देने वाले गानों को हटाने का अनुरोध किया था.
जुलाई 2019 में पंजाब की हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि " पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में पुलिस महानिदेशक ये तय करें कि लाइव शोज में इस तरह के गाने न बजे. अगर ऐसे गाने कहीं बजाए गए तो प्रत्येक जिले के जिला मजिस्ट्रेट/एसएसपी/एसपी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराए जाएंगे.
तब कई सिंगरों पर एफआईआर भी दर्ज की गई थी. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पंजाब में गन रखने को लेकर इतनी छूट क्या वाकई में है, क्या इसे लेकर कोई कानून नहीं है.
भारतीय शस्त्र अधिनियम के तहत गन कौन रख सकता है?
1959 के बाद शस्त्र अधिनियम भारत की स्वतंत्रता के बाद पारित किया गया था. ये कानून 1878 के पुराने अधिनियम को रद्द करके लाया गया था, 1959 के अधिनियम के मुताबिक,कोई भी बिना लाइसेंस के गन नहीं रख सकता था. इस कानून के तहत एक व्यक्ति को तीन से ज्यादा गन रखने पर रोक थी. 1983 में इसमें संशोधन होने के बाद डीलरों, सशस्त्र बलों से जुड़े व्यक्तियों, राइफल क्लब के सदस्यों को इस नियम से बाहर कर दिया गया.
शस्त्र अधिनियम के मुताबिक 21 वर्ष और उससे ज्यादा की आयु के भारतीय नागरिकों को ही गन रखने की इजाजत दी गई थी. अधिनियम की धारा 9 "पागल" या वैसे लोगों को गन का लाइसेंस ना देने की बात कहती हो जो बस दिखावे के लिए गन रखना चाहते हैं. अधिनियम के तहत आवेदक के बैकग्राउंड की गहन जांच के बाद ही गन सौंपने की बात कही गई है.
दिसंबर 2019 में अधिनियम में संशोधन किया गया और एक शख्स के पास एक गन रखने का आदेश पारित कर दिया गया. संशोधन के बाद गन रखने की अवधि तीन साल से बढ़ा कर पांच साल कर दी गई.
शस्त्र नियम, 2016 क्या हैं?
2016 में, केंद्र ने हथियार नियम, 1962 की जगह नए हथियार नियम 2016 जारी किया था. इस नियम के मुताबिक हथियार लाइसेंस, राइफल क्लब, एसोसिएशन या फायरिंग रेंज के लिए आवेदन करने से पहले एक सेफ्टी ट्रेनिंग को अनिवार्य कर दिया गया.
सरकारों ने गन कल्चर को कम करने की दिशा में कितना काम किया
पंजाब पुलिस के एक सलाहकार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि, पंजाब में अकाली दल के 10 सालों के शासन में 'बड़े पैमाने पर हथियारों के लाइसेंस जारी किए गए थे. बाद में अमरिंदर सिंह के सत्ता में आने के बाद लाइसेंस जारी करने की गति थोड़ी धीमी हुई थी. उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी लाइसेंस वाला गन रख सकता है, लेकिन क्राइम में इस्तेमाल किए जाने वाले ज्यादातर हथियार गैर लाइसेंसी होते हैं. ये चिंता को बढ़ाती है.
पंजाब के एक पूर्व पुलिस महानिदेशक ने नाम न बताने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि हथियार रखने को लेकर एक उदार नीति अपनाने की जरूरत है क्योंकि बदमाशों के पास जब गोला-बारूद खत्म हो जाता है तो वे लोगों से जबरदस्ती उनके लाइसेंसी हथियार छीन लेते हैं और अपराध करते हैं.