'करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं से ली जाने वाली 20 डॉलर की फीस खत्म हो', AAP सांसद राघव चड्ढा की मांग
Punjab: राघव चड्ढा ने कहा कि श्रद्धालुओं को बिना पासपोर्ट के ही श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करने की अनुमति दी जाए, उनसे ली जाने वाली फीस खत्म की जाए और ऑनलाइन प्रक्रिया को सरल बनाया जाए.
Punjab News: आप सांसद राघव चड्ढा ने शुक्रवार को संसद में श्री करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं का मुद्दा उठाया. राघव चड्ढा ने श्रद्धालुओं से ली जाने वाली 20 डॉलर की फीस को खत्म करने की मांग की. इसके अलावा उन्होंने बिना पासपोर्ट के दर्शन की अनुमति देने और ऑनलाइन प्रोसेस को आसान बनाने की भी अपील की. राघव चड्ढा ने कहा कि कुछ साल पहले जब श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोला गया था तो पूरी दुनिया श्री गुरु नानक देव जी के रंग में रंग गई थी.
पासपोर्ट की आवश्यकता को किया जाए खत्म- आप सांसद
आप सांसद ने कहा कि आज हर कोई श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के दर्शन के लिए जाना चाहता है, लेकिन श्रद्धालुओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें से पहली समस्या पासपोर्ट की है. करतारपुर साहिब जाने के लिए आपके पास पासपोर्ट होना जरूरी है और यदि पासपोर्ट नहीं तो करतारपुर साहिब नहीं जा सकते. भारत सरकार को इस अहम मुद्दे को पाकिस्तान सरकार के सामने उठाना चाहिए.
खत्म की जाए श्रद्धालुओं से ली जाने वाली फीस- राघव चड्ढा
राघव चड्ढा ने कहा कि दूसरी समस्या श्रद्धालुओं से दर्शन करने के लिए 20 डॉलर यानी करीब 1600 रुपए लिया जाने वाला शुल्क है. अगर परिवार के 5 सदस्य हर साल जाना चाहें तो उन्हें साल के 8 हजार रुपए खर्च करने होंगे. इस शुल्क वसूली को बंद कर दिया जाए ताकि श्रद्धालु आराम से श्री करतारपुर साहिब जा सकें.
रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को बनाया जाए सरल
इसके आगे उन्होंने कहा कि तीसरी समस्या ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया से संबंधित है, जो अभी काफी जटिल है. इसे सरल किया जाए ताकि संगत को परेशानी का सामना ना करना पड़े और उनका समय बर्बाद न हो. चड्ढा ने कहा कि इन समस्याओं का समाधान हो जाने से गुरु और संगत के बीच की दूरी कम हो सकेगी.
बता दें कि सिख समुदाय के लिए श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर बहुत अहमियत रखता है. ये सिख धर्म के पहले गुरु गुरुनानक देव जी की कर्मस्थली है. माना जाता है कि 22 सितंबर 1539 को इसी जगह गुरुनानक देव जी ने अपना शरीर त्यागा था. उनके निधन के बाद उस पवित्र भूमि पर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण कराया गया था. विभाजन के बाद यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था लेकिन दोनों मुल्कों के लिए यह आज भी आस्था के सबसे बड़े केंद्र में से एक है.
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