Punjab News: एसजीपीसी ने यूसीसी के खिलाफ प्रस्ताव किया पारित, केंद्र सरकार पर लगाया ये आरोप
Punjab News: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने समान नागरिक संहिता के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया. एसजीपीसी ने कहा है कि बीजेपी सरकार देश में अल्पसंख्यकों का दमन करना चाहती है.
Punjab News: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की कार्यकारिणी ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित कर देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के प्रयासों की निंदा की. प्रस्ताव में कहा गया है कि बीजेपी के राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा ने यूसीसी के अधिनियमन की मांग करते हुए संसद में एक निजी विधेयक पेश किया, जिसका केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने समर्थन किया.
एसजीपीसी ने आगे कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार 'भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है.' एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा, ‘‘बीजेपी सरकार देश में अल्पसंख्यकों का दमन करना चाहती है, जिसके खिलाफ हर स्तर पर आवाज उठाई जाएगी.’’
क्या है समान नागरिक कानून?
जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि समान नागरिक कानून का मतलब है कि सबके लिए एक नियम. लेकिन भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना क्या इतना आसान है जहां सभी को अपने-अपने धर्मों के हिसाब से रहने की आजादी है.समान नागरिक कानून के मुताबिक पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक होंगे.
संविधान के अनुच्छेद 44 में भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान लागू करने की बात कही गई है. अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य' के सिद्धांत का पालन करना है.
समान नागरिक कानून का पहला जिक्र कब हुआ
ऐसा नहीं है कि कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक कानून की बात आजादी के बाद की अवधारणा है. इतिहास में खंगालने पर इसका जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में मिलता है. जिसमें कहा गया है कि अपराधों, सबूतों और कॉन्ट्रेक्ट जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. इसके साथ ही इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है. लेकिन साल 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव की समिति भी बनाई गई.
इसी समिति की सिफारिश पर साल 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. लेकिन इस मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे.
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