Punjab News: लोकसभा चुनाव में अब ढाई माह मुश्किल से बचे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर सियासी दलों के बीच आपसी तालमेल को लेकर उठापटक चरम पर है. जोड़ तोड़ की राजनीति से पंजाब भी अछूता नहीं है. वहां पर शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में दरार की खबरें सुर्खियों हैं. इस चर्चा को बल बसपा का इंडिया गठबंधन में शामिल होने को लेकर मिल रहे संकेतों की वजह से मिला है. 


दरअसल तीन कृषि कानूनों के मसले को लेकर अकाली दल और बीजेपी के बीच रिश्तों में आई खटास के बाद विगत पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान गठबंधन टूट गया. एससडी ने बसपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा, जबकि बीजेपी ने अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. विधानसभा चुनाव में सियासी उठापटक का सबसे ज्यादा नुकसान अकाली दल, बसपा और बीजेपी को हुआ. 


अकाली-बीजेपी फिर करेंगे गठबंधन!


पंजाब विधानसभा चुनाव में कुल 117 सीटों में से अकाली दल को तीन, बीजेपी को दो और बसपा को सिर्फ एक सीटों पर जीत मिली. बीजेपी अकाली दल के साथ गठबंधन में 23 सीटों पर चुनाव लड़ती थी. 1997 से 2022 तक हुए चुनाव में पार्टी को केवल 2002 में ही इतनी कम यानी दो सीटें मिलीं थी. शेष चुनावों में बीजेपी करीब एक दर्जन या इससे ज्यादा सीटें जीतती रही है. इससे सीख लेते हुए अकाली दल ने बीजेपी से फिर से गठबंधन के संकेत दिए हैं. 


हालांकि बारे में आधिकारियों रूप से अभी किसी ने कुछ नहीं कहा है. वहीं, बसपा ने इंडिया गठबंधन के साथ हाथ मिलाने के संकेत दिए हैं. दैनिक जागरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव को लेकर आईएनडीआईए को लेकर उत्तर प्रदेश में बन रहे समीकरणों का असर पंजाब की राजनीति पर होना तय है. कांग्रेस और बसपा के बीच परदे के पीछे से जारी सियासी बातचीत के बाद पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और बसपां के बीच दो साल पुराना गठजोड़ दरकने के संकेत मिल रहे हैं. 


अकाली दल को है नये गठबंधन की तलाश


ये संकेत तीन कृषि कानूनों के रद्द होने के बाद से ही मिलने लगे थ कि अकाली दल और भाजपा में फिर से गठबंधन करने की कोशिशें शुरू हो गईं। हालांकि, इसको लेकर किसी ने आधिकारिक बयान नहीं दिया है. इसके बावजूद जब बसपा का इंडिया गठबंधन से नजदीकी का मामला सामने आने के बाद से अकाली दल भी पीछे हटती नजर आने लगी है. फिर एक बात और ये है कि लोकसभा चुनाव नजदीक आने के बाद भी दोनों दलों के नेताओं के बीच कोई बैठक नहीं हुई है, न हीं कोई सियासी चर्चा की सूचना है. यही वजह है कि सियासी जानकार यह कहने लगे हैं कि दोनों पार्टियों में अब कोई तालमेल नहीं रह गया है।


बसपा-अकाली समझौता सिर्फ सैद्धांतिक, व्यावहारिक नहीं


 इस बीच, अकाली दल का भाजपा के साथ जाते देखकर बसपा के नेता जसबीर सिंह गढ़ी ने स्पष्ट तौर पर शिअद ये कह दिया कि यह समझौता तो सिर्फ सैद्धांतिक है, न कि व्यावहारिक. यही नहीं, चुनाव के चलते दोनों पार्टियों को मिलकर जो सड़कों पर उतरने का कार्यक्रम मतदाताओं को देना चाहिए था, उसके भी अभी तक कोई संकेत नहीं हैं. यही वजह है कि अकाली दल के लिए मुश्किलें पहले की तुलना में बढ़ गई हैं. अकाली दल की सियासी परेशानी ये भी है कि वो उस गठबंधन का हिस्सा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता, जिसमें कांग्रेस शामिल हो। यानी शिअद एनडीए का हिस्सा न भी बना तो उसके पास निष्पक्ष रहने के अलावा लोकसभा चुनाव के दौरान और कोई चारा नहीं होगा.