Punjab News: पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फसल विविधीकरण (Crop diversification) पराली जलाने (stubble burning) की समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं है और इस समस्या से पूरी तरह छुटकारा पाने में अभी चार से पांच साल लगेंगे. बता दें कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए केंद्र और विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तावित कई पहलों में 'फसल विविधीकरण' और धान की कम अवधि की किस्मों का उपयोग शामिल है.  दिल्ली स्थित ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ संस्था द्वारा चंडीगढ़ में आयोजित एक वर्कशॉप में पीपीसीबी के सदस्य सचिव करुणेश गर्ग ने कहा कि खेत में आग की संख्या की गणना करना पराली जलाने के पैमाने का पता लगाने का एक गलत उपाय है. इसके बजाय हमें यह देखना चाहिए कि जिस जमीन में आग लगाई जा रही है, उसका रकबा कितना है.


पराली जलाने की समस्या का खोजा जा रहा समाधान


गर्ग ने कहा कि ऐसा नहीं है कि इस  समस्या से निपटा नहीं जा रहा, हम इसके लिए ब्लॉक व गांव स्तर पर काम कर रहे हैं लेकिन इस समस्या से  पूरी तरह छुटकारा पाने में अभी चार से पांच साल का समय लगेगा. गर्ग ने कहा कि पंजाब में धान की खेती का रकबा पिछले साल  के 29.61 लाख हेक्टेयर से बढ़कर इस साल 31.13 लाख हेक्टेयर हो गया है, इसकी वजह से इस साल 19.76 मिलियन टन धान की पराली का उत्पादन होगा, जबकि पिछले साल पराली का उत्पादन 18.74 मीट्रिक टन हुआ था.


इन-सीटू और एक्स-सीटू को ध्यान में रखते हुए निकालना होगा समाधान


उन्होंने कहा कि फसल विविधीकरण पराली जलाने की समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं है, क्योंकि ऐसा नहीं है कि अन्य फसलों द्वारा ‘बायोमास’ का उत्पादन नहीं होगा. इसमें अन्य तरह के बायोमास अपशिष्टों का उत्पादन होगा जैसे कपास, सरसों आदि के अवशेष आदि. इसलिए हमें इन-सीटू और एक्स-सीटू दोनों को ध्यान में रखते हुए कोई समाधान खोजना होगा,  इनके कॉम्बिनेशन से ही फायदा हो सकता है.


बता दें कि इन सीटू संरक्षण में पौधों  या जीवों का संरक्षण उसी जगह किया जाता है जहां वे प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं जबकि एक्स सीटू में जीवों और पौधों का संरक्षण किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर ले जाकर किया जाता है. वहीं पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. आदर्श पाल विग ने कहा कि यह एक  सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्या है, हमें इसके लिए किसानों को भी समझाने की आवश्यकता है.


इस वजह से पराली जलाते हैं किसान


बता दें कि सितंबर के अंत में लंबे समय तक बारिश होने के कारण धान की कटाई में देरी हुई और उसके बाद पंजाब और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं सामने आईं. भारत के कुछ हिस्सों में अभी 4 से 8 अक्टूबर के बीच बारिश होने की संभावना है जिससे कुछ क्षेत्रों में धान की कटाई में देरी हो सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि किसान अगली फसल के लिए जल्द से जल्द खेत तैयार करने के लिए पराली जलाते हैं.  


अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली-एनसीआर में बढ़ सकता है वायु प्रदूषण


आईएआरआई के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. विनय सहगल ने कहा कि चूंकि अभी तक बारिश हुई है इसलिए पराली में आग लगने की घटनाएं मध्य अक्टूबर तक सामना आ सकती हैं और यही वजह है कि दिल्ली-एनसीआर में अक्टूबर-नवंबर में प्रदूषण बढ़ सकता है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार, पंजाब में पिछले साल 15 से 30 सितंबर  के बीच  71,304 खेत में आग लगी थी  जबकि 2020 में इसी अवधि में  83,002 खेतों में आग लगाई गई थी. खेत में आग लगाने की वजह से दिल्ली में  पीएम 2.5 प्रदूषकों का स्तर 7 नवंबर को 48% पहुंच गया था.


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