Punjab News: 'वारिद पंजाब दे' के भगोड़े मुखिया अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) ने कुछ दिन पहले वीडियो जारी करते हुए श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार से बैसाखी के मौके पर सरबत खालसा (Sarbat Khalsa) बुलाने की अपील की थी. इसके बाद से ही पंजाब में घमासान मचा हुआ है. एक तरफ श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह (Giani Harpreet Singh) ने इस मामले पर चुप्पी साधी हुई है. तो वहीं दूसरी ओर, शिरोमणि कमेटी ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए बड़े संकेत दे दिया है.
फीकी पड़ी सरबत खालसा बुलाने की उम्मीद
कमेटी के वरिष्ठ सदस्यों का कहना है कि, 'श्री अकाल तख्त के जत्थेदार को सरबत खालसा बुलाने का अधिकार है. लेकिन ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अभी तक इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया है. इसलिए माना जा रहा है कि सरबत खालसा को न्योता नहीं दिया जाएगा. सरबत खालसा बुलाने की उम्मीद इसीलिए भी फीकी पड़ गई है क्योंकि ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने 12 से 13 अप्रैल तक तख्त श्री दमम साहिब तलवंडी साबो में खालसा सजना दिवस और बैसाखी को समर्पित गुरुमती कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है. ऐसे में सरबत खालसा आयोजित करने की संभावना लगभग समाप्त हो गई है.'
क्या है सरबत खालसा, कब होता है आयोजन?
सरबत शब्द का अर्थ होता है ‘सभी’. और खालासा का अर्थ है सिखों’ से. यानी सभी सिखों के गुटों की एक सभा को सरबत खालसा कहते हैं. इसकी शुरुआत गुरु गोविंद सिंह द्वारा मुगलों के खिलाफ सिखों के संघर्ष के बीच की गई थी. उस वक्त स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त में खालसा पंथ से जुड़े लोगों इसमें शामिल होते थे. फिर बैसाखी और दिवाली के मौके पर इस बैठक का आयोजन किया जाने लगा. बैठक में खालसा पंथ के सभी लोग आते थे. इसमें राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर चर्चा करती की जाती थी. सरबत खालसा के दौरान सिखों के लिए निर्देश जारी किए जा सकते है जो सभी के लिए मान्य भी होते थे. सरबत खालसा में पारित प्रस्तावों को गुरमाता कहा जाता था. सरबत खालसा’ की शुरुआत गुरु गोविंद सिंह ने की थी इसलिए इसे पवित्र माना जाने लगा. 'सरबत खालसा' के समय खालसा पंथ से जुड़े सभी लोग शामिल होते हैं. इस दौरान खास प्रस्तावों को पारित किया जाता है और उसपर अमल के लिए एक कमेटी का गठन भी किया जाता है. 2019 में भी सरबत खालसा’ का आयोजन कर जेलों में बंद सिख कैदियों की रिहाई की मांग की गई थी.
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