Punjab News: लोकसभा चुनाव 2024 होने में अब एक साल से भी कम समय रह गया है. इसे लेकर सियासी दलों के बीच गुटबाजी का दौर अभी से चरम पर पहुंच गया है. इसका असर अब पंजाब के प्रमुख सियासी दलों के बीच भी दिखाई देने लगी हैं. खासकर शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच. ये दोनों दल लोकसभा चुनाव को लेकर पहले से ज्यादा दबाव में इसलिए हैं कि पिछले 12 सालों के दौरान शिरोमणि अकाली दल की लोकप्रियता का ग्राफ पंजाब में बहुत नीचे चला गया है.
यहां पर एक बात और गौर फरमाने की है कि दोनों दल दशकों से एक साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन तीन कृषि कानूनों को लेकर दोनों के बीच तालमेल बिगड़ने के बाद से एनडीए के सबसे पुराने अलाएंस बीजेपी और एसएडी अलग-अलग हो गए. इसका नतीजा यह निकला कि लोकसभा चुनाव का परिणाम 2019, विधानसभा चुनाव परिणाम 2022, जालंधर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में दोनों दल तीसरे और चौथे स्थान पर रहे हैं. जबकि आम आदमी पार्टी नंबर वन पर चली गई हे. दूसरे नंबर पर कांग्रेस है. कभी एनडीए गठबंधन का हिस्सा रहे बीजेपी और अकाली दल का ग्राफ इतना गिर गया है कि पुराने प्रदर्शन पर अकेले दम पर उनका लौटना बहुत मुश्किलन है.
मिलकर चुनाव लड़ने में ही भलाई
संभवत: इस बात को ध्यान में रखते हुए न केवल दोनों दलों के नेताओं के बीच नए सिरे से बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ है. हालांकि, आधिकारिक तौर पर दोनों दलों के नेता इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. अभी भी यही कहा जा रहा है कि दोनों लोकसभा चुनाव भी अलग-अलग ही लड़ेंगे. लेकिन नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में एसएडी नेताओं का शामिल होने से इस बात की चर्चा फिर सुर्खियों में है कि क्या एसएडी और बीजेपी वाले लोकसभा चुनाव पहले की तरह एक साथ मिलकर लड़ेंगे. इस बात का जवाब देना जल्दबाजी माना जाएगा, लेकिन इसे खारिज भी नहीं किया जा सकता है. ऐसा इसलिए कि पिछले कुछ चुनावों के परिणाम बताते हैं कि दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ें तो पंजाब में पहले से बेहतर परिणाम हासिल कर सकते हैं. यही वजह है कि पुराने सहयोगियों के बीच सियासी मेल मुलाकात बढ़ने को लेकर अलग-अलग कयाय लगाए जा रहे हैं.
11 साल के सियासी आंकड़े SAD के खिलाफ
इस परिप्रेक्ष्य में तथ्यों के आधार पर बात करें तो पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम चौंकाने वाले हैं. आप ने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए 117 सीटों में 92 सीट अपने नाम कर लिए. प्रचंड बहुमत से भगवंत मान की सरकार वहां पर है. जबकि आजादी के बाद से पंजाब का सियासी इतिहास यही रहा है कि वहां पर शिरोमणि अकाली दल वैकल्पिक सरकार बनाती आई है, लेनिक इस बार वैसा नहीं हुआ, नई नवेली आम आदमी पार्टी ने न केवल कांग्रेस को सता से बेदखल किया, बल्कि अकाली दल और बीजेपी को एक तरह से सियासी हाशिए पर ला खड़ा किया. आप के बाद विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में 18, अकाली , बीजेपी 2, बीएसपी 1 और एक निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीत पाए. वोट शेयर के हिसाब से बात करें तो आम आदमी पार्टी को 42 प्रतिशत, कांग्रेस को 22.98 प्रतिशत, शिरोमणि अकाली दल को 18.38 प्रतिशत, 6.60 प्रतिशत, बीएसपी को 1.77 प्रतिशत, समाजवादी पार्टी को 0.03 प्रतिशत, सीपीआई-एम को 0.06 प्रतिशत, सीपीआई को 0.05 प्रतिशत और नोटा के खाते में 0.71 प्रतिशत वोट आए.
घटती लोकप्रियता ने बढ़ाई चिंता
पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 पर नजर डालें तो कांग्रेस ने 38.5 प्रतिशत वोट हासिल कर 117 में से 77 सीटें जीती थीं. आप को 23.7 फीसदी वोट मिले और पार्टी 20 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल हुई. शिरोमणि अकाली दल को 25.2 प्रतिशत वोट मिले और 15 सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी जीत हासिल करने में सफल हुए. जबकि बीजेपी को 5.5 फीसदी वोट मिले थे और सिर्फ 3 प्रत्याशी विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. इससे साफ है कि आप की तुलना में एसएडी का वोट प्रतिशत करीब 24 फीसदी कम तो कांग्रेस की तुलना में लगभग 4.5 फीसदी वोट कम मिले. लोकप्रियता के लिहाज से नंबर एक और दो पर रहने वाली पार्टी सीधे तीन नंबर पर चली गई है.
चिंता की बात यह है कि लोकसभा उपचुनाव में भी एसएडी और बीजेपी का बुरा हाल है. जालंधर लोकसभा उपचुनाव परिणाम 2023 में आम आदमी पार्टी के सुशील रिंकू ने जीत हासिल की है. जालंधर सीट कांग्रेस की परंपरागत सीटों में शामिल थी. सुशील रिंकू को 3,02,097 यानी 34.05 प्रतिशत वोट मिले. दूसरे नंबर पर कांग्रेस रही उसके प्रत्याशी कर्मजीत कौर चौधरी को 2,43,450 यानी 27.44 प्रतिशत मत मिले. अकाली दल-बसपा प्रत्याशी डॉ. सुखविंदर सुक्खी को 1,58,354 यानी 17.85 प्रतिशत वोट मिले और बीजेपी के इंदर इकबाल अटवाल को 1,34,706 यानी 15.19 फीसदी वोट मिले.
BJP को भी है विकल्प की तलाश
लोकसभा चुनाव 2019 में 14 में से कांग्रेस के खाते में 8 सीटें गई थी. अकाली-बीजेपी गंठबंधन को 4 और आप को सिर्फ 1 सीट मिली थी. जबकि 2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी- शिरोमणि अकाली दल राज्य में 6 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. अकाली दल ने चार सीटें जीती थीं और बीजेपी ने दो संसदीय सीटें जीती थीं. आम आदमी पार्टी (AAP) ने राज्य में चार सीटों पर जीत हासिल करते हुए तीसरे विकल्प के रूप में शानदार शुरुआत की. कांग्रेस को सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिल सकी थी. पंजाब में अकेले बीजेपी की बात करें तो साल 1992 के चुनाव में बीजेपी को 16.48 प्रतिशत वोट मिले थे. इसके बाद 1997 में 8.33 प्रतिशत, 2002 में 5.62 प्रतिशत, 2007 में 8.21 प्रतिशत, 2012 में 7.18 प्रतिशत, 2017 में 5.43 प्रतिशत और 2022 में 6.60 प्रतिशत रहा है. साफ है कि बीजेपी अकेले दम पर पंजाब में कुछ करने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में उसके लिए भी सियासी सहयोगी के रूप में अकाली दल ही सबसे बेहतर विकल्प है.
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