Haryana Election 2024: एमपी-राजस्थान की हार से सबक लेगी हरियाणा कांग्रेस? गुटबाजी बढ़ाएंगी मुश्किलें
Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में गुटबाजी की वजह से ही 2014 और 2019 के चुनावों में कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. गुटबाजी की वजह से ही नेता सिर्फ अपने क्षेत्रों में सक्रिय रहे थे.
Haryana News: राजस्थान, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ में कांग्रेस (Congress) की हार ने अब हरियाणा में भी टेंशन बढ़ा दी है. हरियाणा में अगले साल विधानसभा चुनाव होना हैं, ऐसे में अगर कांग्रेस के अंदर लंबे समय से चल रही गुटबाजी खत्म नहीं होगी तो उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. दरअसल, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह गुजबाजी भी मानी जा रही है. राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन गहलोत के बीच गुटबाजी, मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय के बीच गुटबाजी की खबरें अक्सर आती रही है.
ऐसे में अब हरियाणा कांग्रेस के बीच चल रही गुटबाजी खत्म नहीं हुई तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं. कांग्रेस को सबसे पहले गुटबाजी खत्म करने पर फोकस करना होगा. हरियाणा कांग्रेस में लगभग साढ़े नौ साल बीत जाने के बाद भी अब तक संगठन नहीं बन पाया है. सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर संगठन चल रहा है. बीजेपी, आम आदमी पार्टी, जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल की उपेक्षा कांग्रेस संगठन के मामले में कमजोर चल रही है. सभी पार्टियों के नेता संगठन की अहमियत को लेकर सजग है. लेकिन, प्रदेश कांग्रेस में संगठन का न होना पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी भी है. वहीं प्रदेश में संगठन तो नहीं बन पाया लेकिन प्रदेश अध्यक्ष तीन बार बदले जा चुके हैं.
गुटबाजी का भुगतना पड़ सकता है खामियाजा
हरियाणा में गुटबाजी की वजह से ही 2014 और 2019 के चुनावों में कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. गुटबाजी की वजह से ही नेता सिर्फ अपने क्षेत्रों में सक्रिय रहे थे. अब भी हालात ज्यादा बदले नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जहां जाट बेल्ट में सक्रिय हैं तो वहीं दूसरी तरफ रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा और किरण चौधरी अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय हैं.
मुद्दों पर देना होगा खास ध्यान
केंद्र को अब हरियाणा के मद्दों को भी बदलना होगा. क्योंकि, हरियाणा के चुनावों में लोकल मुद्दे ज्यादा हावी रहने वाले हैं. अभी कांग्रेस ओपीएस को ट्रंप कार्ड मानकर चल रही है. लेकिन, ओपीएस लागू होने के बाद भी छतीसगढ़ को कांग्रेस नहीं बचा पाई. ऐसे में जनता से वोटों के लिए अब मुद्दों को भी कांग्रेस को बदलना होगा.