जयपुर: अजमेर जिले में राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के 10 छात्रों को 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी की एक विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए परिसर में कथित रूप से एकत्र होने के बाद दो सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया है.विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने हालांकि, दावा किया कि छात्रों का निलंबन उनके द्वारा डॉक्यूमेंट्री, ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ देखने से जुड़ा नहीं था.


विश्वविद्यालय ने क्या कहा है


विश्वविद्यालय की ओर से जारी आदेश के अनुसार,अधिकारियों के निर्देशों की कथित तौर पर अवहेलना करने और एक अज्ञात स्थान पर देर रात प्रदर्शन करने के लिए छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है.निलंबन के आदेशानुसार, शिक्षकों और अधिकारियों के निर्देशों की अवहेलना करने और निर्दिष्ट जगहों के अलावा अन्य स्थानों पर देर रात प्रदर्शन करने के लिए छात्रों को शुक्रवार को शैक्षणिक के साथ-साथ छात्रावास से निलंबित कर दिया गया है. 


विश्वविद्यालय परिसर में कथित घटना 26 जनवरी की है. केंद्रीय विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के अध्यक्ष विकास पाठक ने दावा किया कि परिसर की कैंटीन के पास गुजरात दंगों पर विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के लिए आमंत्रण सोशल मीडिया पर प्रसारित किए गए थे. उन्होंने कहा कि उन्होंने डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए एकत्र हुए छात्रों का विरोध किया था.


बांदर सिंदरी थानाधिकारी कालू लाल ने कहा कि किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए दो पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे थे. पुलिस ने कहा कि 26 जनवरी को करीब 25-30 छात्र मास्क लगाकर एकत्र हुए,उन्हें मौके से तितर-बितर कर दिया गया.


पीयूसीएल ने लिखा कुलपति को पत्र


एक स्वयं सेवी संस्थान (एनजीओ) पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने छात्रों के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करते हुए केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति आनंद भालेराव को पत्र लिखा है.


एक बयान में पीयूसीएल ने कहा है,''विश्वविद्यालय से 10 छात्रों जिनमें से आठ मुसलमान, एक इसाई तथा एक हिंदू है को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री फिल्म देखने के आरोप में निलंबित कर दिया गया है.26 जनवरी, 2023 को विश्वविद्यालय फिल्म की स्क्रीनिंग नहीं हुई है और मोबाइल पर उक्त फिल्म देखना एक विद्यार्थी का निजी मामला है.वह उनकी निजी स्वतंत्रता के हक में आता है.''


पीयूसीएल ने दावा किया कि छात्रों को ''कभी नहीं सुना गया.किसी भी जांच ने उनकी सुनवाई नहीं की और छात्रों को सुनवाई का अधिकार दिए बिना और कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना,उन्हें विश्वविद्यालय और छात्रावास से 15 दिनों के लिए निष्कासित कर दिया गया.''


पीयूसीएल की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव और महासचिव अंनत भटनागर की ओर से लिखे पत्र में कहा गया है, ''विश्वविद्यालय द्वारा अधिकतर अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को निलंबित के जाने की कार्रवाई के पीछे विद्वेषपूर्ण सांप्रदायिक मानसिकता परिलक्षित होती है.यह खेदजनक है कि इस मामले में विद्यार्थियों की कोई सुनवाई नहीं की गई,ना ही मामले की कोई विधिवत जांच हुई और ना ही पीड़ित छात्रा को अपना पक्ष रखने का कोई अवसर दिया गया.''


क्यों की गई छात्रों पर कार्रवाई


विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने हालांकि,कहा कि छात्रों पर कार्रवाई का डॉक्यूमेंट्री देखने से कोई संबंध नहीं है और कहा कि यह 'एक नियमित अनुशासनात्मक कार्रवाई' थी. विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा,''डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर कार्रवाई नहीं की गई. यह इन छात्रों के खिलाफ की गई कार्रवाई एक सामान्य, नियमित, अनुशासनात्मक कार्रवाई थी, जो एक शैक्षणिक संस्थान की एक नियमित गतिविधि है.''हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि किस कार्रवाई पर सजा हुई है, विश्वविद्यालय प्रशासन ने 27 जनवरी को तत्काल प्रभाव से बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था.


विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी शैक्षणिक गतिविधि जिसमें एक सभा करने के लिए रजिस्ट्रार द्वारा डीन और छात्रों के कल्याण की सिफारिशों के साथ मंजूरी देनी होती है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों को कैंपस में देर रात नारेबाजी और आवारागर्दी न करने की सलाह भी दी थी.


केंद्र ने विवादास्पद बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के लिंक साझा करने वाले कई यू ट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए हैं.हालांकि, कई विपक्षी दलों ने सरकार की कार्रवाई की निंदा की है. उनका कहना है कि वे किसी भी सेंसरशिप का विरोध करेंगे.


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