Hazrat Khwaja Garib Nawaz 811 Urs: गरीब नवाज हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में 811वें उर्स की तैयारियां शुरू हो गई हैं. अजमेर (Ajmer) स्थित विश्व प्रसिद्ध दरगाह में आगामी 22 जनवरी से उर्स मनाया जाएगा. सर्दी में दरगाह शरीफ (Dargah Sharif) आने वाले जायरीनों के लिए खास इंतजाम किए जा रहे हैं. जायरीनों को वजू के लिए गर्म पानी मिलेगा. साथ ही बैठने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था की जा रही है. लंगरखाना के ऊपरी तल पर महिलाओं को बिठाने की नई व्यवस्था रहेगी. नया पोर्च बनाने के साथ शाहजहांनी मस्जिद पर टेंट लगाने के लिए स्टील की रेलिंग लगाई है. जिला प्रशासन और दरगाह कमेटी मेंबर उर्स से पहले सभी इंतजाम करने में जुटे हैं. उर्स में 2 से 3 लाख जायरीन और 4 हजार से ज्यादा वाहन आने की उम्मीद जताई जा रही है. सुरक्षा के लिए 2 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए जाएंगे.


झंडे की रस्म से होगी शुरुआत
अजमेर उर्स (Ajmer Urs 2023) का विधिवत आयोजन चांद दिखाई देने के बाद पहली से छह रजब तक होगा. इससे पहले झंडे की रस्म निभाई जाएगी. दरगाह के बुलंद दरवाजे पर 18 जनवरी को उर्स का झंडा चढ़ाया जाएगा. झंडा चढ़ाने के साथ ही उर्स का औपचारिक ऐलान किया जाएगा. उर्स की तारीख नजदीक आने के साथ तैयारियां भी तेज कर दी गई है. सभी इंतजाम समय से पहले पूरे करने के प्रयास किए जा रहे हैं.


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दरगाह में हो रहे नए इंतजाम
दरगाह परिसर में लंगरखाना के ऊपरी तल पर महिला जायरीनों के लिए नया पोर्च और वजूखाना तैयार करवाया रहा है. महिला जायरीन यहां बैठकर इबादत और वजू कर सकेंगी. इसके पास ही तीन-चार साल पहले बना पुराना पोर्च भी मौजूद है, महिलाएं वहां भी बैठ सकेंगी.


वजू के लिए क्वीन मेरी हौज, अकबरी मस्जिद, आहता-ए-नूर के निकट और अन्य कई जगह व्यवस्था रहेगी. जनवरी में कड़ाके की सर्दी को ध्यान में रखते हुए झालरे स्थित फिल्टर पर बड़ा प्लांट लगाया जा रहा है. वजूखाने पर गर्म पानी की ऑटोमेटिक मशीन भी लग रही है ताकि जायरीनों को ठिठुरती सर्दी में गर्म पानी मिल सके.


सोलहवीं शताब्दी में बनी शाहजहांनी मस्जिद का ज्यादातर हिस्सा खुला है. अब तक यहां हर साल उर्स के दौरान रस्सियों, लकड़ियों और बल्लियों के सहारे टेंट बांधा जाता था, ताकि जायरीनों को धूप और बरसात से राहत मिले. अब शाहजहांनी मस्जिद परिसर में स्टील की स्थाई रेलिंग लगाई है. टेंट को इसी रेलिंग से बांधा जाएगा.


दरगाह परिसर में बाबा फरीद के चिल्ले और जन्नती दरवाजे तक पहले लोहे के पाइप लगे हुए थे. मौसम में बदलाव के कारण इन पर हर साल उर्स से पहले रंगरोगन करवा जाते थे. अब यहां लोहे के पाइप की जगह स्टील का स्थाई कटहरा बनाया है.