श्रीगंगानगर के जिला अस्पताल के गायनिक वार्ड में मंगलवार को एक महिला ने चार बच्चों को जन्म दिया. सभी बच्चों का जन्म सामान्य प्रसव से हुआ. चारों नवजात का जन्म प्री मेच्योर डिलीवरी से हुआ है. इनका वजन कम होने पर इन्हें नर्सरी (Special Newborn Care Unit) में जीवन रक्षक उपकरणों के सहारे रखा गया है. 


जिले में चार बच्चों के जन्म का पहला मामला


अस्पताल ने पीएमओ डॉक्टर केएस कामरा के अनुसार एक साथ चार जन्म होना,ये डीएच का पहला केस है. इससे तीन साल पूर्व शहर के एक निजी अस्पताल में पंजाब की एक महिला ने एक प्रसव में चार बच्चों को जन्म दिया था, ये महिला आईवीएफ विधि से गर्भवती हुई थी, उस समय सिजेरियन डिलीवरी करवाई गई थी.


पीएमओ डॉ. कामरा के अनुसार यादव कॉलोनी श्री बिजयनगर निवासी शालू पत्नी गुलविंद्र सिंह को प्रसव पीड़ा होने पर सोमवार शाम को जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. मंगलवार दोपहर साढ़े तीन बजे लेबर रूम में शालू का प्रसव करवाया गया. इससे दो लड़कों और दो लड़कियों का जन्म हुआ. 


क्या कहना है डॉक्टरों का 


अस्पताल की नर्सिंग स्टाफ शीला वर्मा, सरिता बिरट, अंजू और रणजीत ने प्रसव करवाया. प्रसव के बाद प्रसूता की हालत सामान्य है. शालू का पति गुलविंद्र सिंह ट्रक चालक है. पांच साल पहले उसने सामान्य प्रसव से एक बच्चे को जन्म दिया था. परिजनों के अनुसार गर्भकाल के दौरान अल्ट्रासाउंड करवाने के दौरान उन्हें चार बच्चे होने की जानकारी मिल चुकी थी. इसी वजह से वे प्रसूता को डिलीवरी के लिए श्रीबिजयनगर सीएचसी की बजाय जिला अस्पताल ले आए थे. इस मामले में 28 सप्ताह बाद ही हो गई डिलीवरी. गायनिक विभाग की एचओडी डॉक्टर स्वाति सिंह के अनुसार सामान्य डिलीवरी 37 महीने रहती है. लेकिन शालू की डिलीवरी 28 से 29 सप्ताह के बीच ही हो गई है. गर्भ में चार शिशुओं का विकसित होना संभव नहीं होता है.


उन्होंने कहा कि इस वजह से ऐसे मामलों में प्री मेच्योर डिलीवरी होना आम बात है. चारों बच्चों में से प्रत्येक का वजन 600 से 650 ग्राम तक है. इन्हें एहतियात के तौर पर जन्म के कुछ मिनटों बाद ही एसएनसीयू में शिफ्ट कर दिया गया. डॉक्टर स्वाति के अनुसार प्री मेच्योर और कम वजन के बच्चों का पालन-पोषण करना बहुत मुश्किल होता है. इन बच्चों के लीवर, फेफड़े सहित अन्य आंतरिक अंग पूरी तरह से एक्टिव नहीं होते है. इन्हें विशेष देखभाल और इलाज की जरूरत पड़ती है. गर्भकाल के दौरान मां को भी जोखिम रहता है.


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