Ground Report on Kota Student Suicide: राजस्थान के कोटा (Kota) शहर को 'शिक्षा नगरी' के नाम से जाना जाता है. देश के कोने-कोने से स्टूडेंट्स यहां अपना करियर बनाने के लिए आते हैं. बीते कुछ सालों में लाखों छात्र-छात्राओं ने यहीं से कोचिंग लेकर अपने सपनों को साकार किया और अपने करियर में ऊंची उड़ान भरी. लेकिन बीते दिनों कोटा से आई बच्चों की सुसाइड की खबर ने सभी को हिला कर रख दिया. एक ही दिन में तीन बच्चों की मौत ने प्रशासन को सकते में ला दिया. अब सवाल ये है कि पढ़ाई करते-करते बच्चे आखिर डिप्रेशन में कैसे चले जाते हैं? वो क्या बात है जिसे वे किसी को नहीं बता पाते? क्यों कोटा में बच्चों के सुसाइड का आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है? इन सभी सवालों के जवाब आज हम आपको इस एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट में बताएंगे.


लोगों के मुंह से 'जीनियस' सुनने की ख्वाहिश
कोटा में इंदिरा विहार, जवाहर नगर, लैंडमार्क और कोरल पार्क वह स्थान है जहां सबसे अधिक बच्चे होस्टल व पीजी में रहते हैं. ABP LIVE की टीम आज इन्हीं बच्चें के बीच पहुंची और उनसे बातचीत की. पहले तो बच्चे कुछ भी बोलने में हिचक रहे थे, लेकिन जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो बात सीधी दिल में जा लगी. स्टूडेंट्स ने कहा, 'यदि कुछ कर गुजरना है, सपनों को पूरा करना है, अच्छी जिंदगी जीनी है तो संघर्ष और मेहनत तो करनी होगी. मेहनत भी थोड़ी बहुत नहीं, जी तोड़ मेहनत से ही सफलता मिलती है. दिन रात एक करना होता है. 8-9 घंटे पढ़ाई करनी होती है. खाना-पीना-सोना सबकुछ छोड़ना पड़ता है. तब कहीं जाकर हम जीनियस कहलाते हैं.'


माता-पिता से ज्यादा बाहर वालों के तानों का डर
स्टूडेंट्स ने जब खुलकर बताना शुरू किया तो सबसे पहले बात सामने आई कि अधिकांश स्टूडेंट अपने घर-परिवार में रोजाना बात करते हैं. पेरेंट्स का पहला सवाल यही होता है कि पढ़ाई कैसी चल रही है? फिर उसके बाद वे पूछते हैं कि कैसे हो, खाना ठीक मिल रहा है या नहीं, टेंशन मत लेना, ठीक से सोना, गलत संगत में मत चले जाना, वगैरा-वगैरा. स्टूडेंटों ने ये भी बताया कि घर का प्रेशर कम होता है. कोई भी माता-पिता अपने बच्चें को खोना नहीं चाहते. इसलिए वह कहते हैं ठीक है अगर आसानी से नीट या आईआईटी क्लीयर हो जाए, वरना दूसरा कुछ देखेंगे. लेकिन दूसरी और बाहर वाले ताने मारते हैं. परिवार में आपसी मनमुटाव भी होता है. वह भी तंज कसते हैं. इसलिए घर का प्रेशर कम होता है और बाहर का ज्यादा होता है.




वीकली टेस्ट का रिजल्ट बढ़ाता है सबसे ज्यादा प्रेशर
बच्चों ने अपनी बात को आगे बढ़ाया तो एक छात्र का कहना था कि कोचिंग में एडमिशन के साथ ही कुछ दिन अच्छा नहीं लगता. लेकिन जब धीरे-धीरे पढ़ाई में मन लगने लगता है तो प्रेशर भी बढ़ने लगता है. रविवार को होने वाले टेस्ट बता देते हैं कि आप किसी पॉजिशन पर हो, और ये बात सीधे एक ऐप के जरिए पेरेंट्स तक भी पहुंचती है. लाखों बच्चों के पेरेंट्स हर हफ्ते ये जान लेते हैं कि उनका बच्चा आगे बढ़ पाएगा या नहीं, और यही से पढ़ाई का हाई प्रेशर शुरू हो जाता है. कम नंबर आते ही कहा जाता है, क्या कर रहा है, पढ़ाई क्यों नहीं करता, पीछे कैसे होता जा रहा है. उसके बाद जब दूसरा रविवार आता है तो पेपर फिर दिया जाता है और फिर यदि नंबर कम आए तो प्रेशर बढ़ता चला जाता है और बार-बार यहीं स्थिति रहती है तो स्टूडेंट भटक जाता है, उसे मोटिवेशन नहीं मिलता और वह सुसाइड कर लेता है.




बच्चों ने बताया- क्यों करता है सुसाइड का मन?
छात्र हो या छात्रा. दोनो ही पहली बार घर से बाहर निकलते हैं. उम्र भी नाजुक होती है. फ्रीडम होता है. पैसा होता है. ऐसे में कई बच्चे भटक जाते हैं. कई प्यार के चक्कर में पड़ जाते हैं. एक स्टडी में सामने आया है कि कोटा में होने वाले सुसाइड में 70 प्रतिशत से अधिक लव अफेयर कारण होता है. लव के चक्कर में पढ़ाई दूर हो जाते हैं और पेपर नजदीक आते ही या रिजल्ट के बाद क्या मुंह दिखाएंगे यह सोच उन्हें सुसाइड के लिए प्रेरित करती है. इसके अलावा घर परिवार का पैसा लग जाता है तो वह बार-बार कहते हैं, इतना पैसा खर्च कर दिया, कोई लोन लेकर तो कोई कर्ज लेकर पढ़ाई करवाता है. ऐसे में गिल्टी फील होती है और वह सुसाइड कर लेता है. इसके साथ ही कई तरह का डिप्रेशन सुसाइड का कारण बनता है.

एक माह में 9 स्टूडेंट, जिन्होंने मौत को गले लगाया


कोटा में एक माह में 8 स्टूडेंट्स की मौत हो चुकी है, जिसमें कृष्णकांत (17 वर्ष) निवासी आगरा, नैतिक सोनी (19) निवासी सागर एमपी, रवि मेहरान (19) निवासी बिहार, सिद्धार्थ सिंह (18) निवासी उत्तराखंड, काम्या सिंह (19) निवासी शक्ति नगर किशोरपुरा, प्रणव वर्मा (17) निवासी शिवपुरी मध्य प्रदेश, अंकुश आनंद (17) निवासी बिहार और उज्जवल कुमार (18) निवासी बिहार, यूपी बरेली निवासी अनिकेत (17) की मौत हो चुकी है. अन्य वर्षो में एवरेज 11-12 बच्चों की मौत होती है, लेकिन इस वर्ष सभी रिकॉर्ड टूट गए और 22 बच्चों ने मौत को गले लगा लिया. पूरे साल का आंकड़ा देखें तो 2022 के अंत तक 22 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया. 9 बच्चे तो महज डेढ़ माह में ही सुसाइड कर चुके हैं. हड़कंप तो उस दिन मचा जब एक ही दिन में तीन बच्चों ने आत्महत्या कर ली. इस खबर ने प्रशासन को भी सकते में ला दिया. 





'जब तक कोचिंग व्यवसाय होगा, मौतें होती रहेंगी'
एक कोचिंग संचालक ने कहा कि हम भी पढ़ाया करते थे, लेकिन इस समय कोचिंग व्यवसाय हो गया है. जब तक ये व्यवसाय होगा तब तक मौत होती रहेगी. कोचिंग संचालकों की फीस लाखों में पहुंच गई, इसके लिए सरकार ने अभी तक कोई गाइडलाइन नहीं बनाई. मनमाने ढंग से लूट हो रही है. जब पेरेंट्स का पैसा ज्यादा खर्च होगा तो स्टूडेंट्स से अपेक्षा भी बढ़ेगी. ऐसे में प्रशासन भी इनकी मौत का जिम्मेदार है जो गाइडलाइन की पालना नहीं करवा पता और संचालकों की मिलीभगत स्टूडेंट की मौत कारण बनती है.

'जानलेवा है नेगेटिविटी, बच्चे नहीं निकल पाते बाहर'
इस मामले में जब वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. एमएल अग्रवाल से बात की तो उन्होंने बताया कि सुसाइड एक मानसिक बीमारी है, इसके मल्टीपल कारण होते हैं. विपरीत परिस्थिति होने के कारण ही कोई आत्महत्या जैसा कदम उठाता है. ऐसे में वह व्यक्ति शुरुआती तौर पर बाहर निकलना चाहता है. लेकिन नेगेटिविटी के चलते वह बाहर नहीं निकल पाता. आत्महत्या के कदम अक्सर लोग पढ़ाई, प्रेम, असफलता, धोखा खाने की स्थिति में उठाते हैं. स्टूडेंट माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते हैं, पढ़ाई का बोझ सहन नहीं कर पाते हैं.