Asaduddin Owaisi Targets Ashok Gehlot: हरियाणा के भिवानी में भरतपुर के रहने वाले नासिर और जुनैद को जिंदा जलाकर मार डाला गया. इस मामले में रोज ही नए मोड़ आ रहे हैं, नए खुलासे हो रहे हैं. वहीं, राजनीतिक फ्रंट पर भी मामला गर्माया हुआ है और इसे चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है. विपक्षी दल लगातार राजस्थान की गहलोत सरकार को निशाने पर ले रहे हैं. इसी बीच AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने अशोक गहलोत के खिलाफ एक ट्वीट किया, जो चर्चा का विषय बन गया है.


दरअसल, भिवानी हत्याकांड में मृतक नासिर और जुनैद से मिलने अभी तक सत्ताधारी पार्टी के बड़े नेता सचिन पायलट और अशोक गहलोत नहीं पहुंचे हैं. इस बात पर ओवैसी लगातार हमलावर हैं. AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे पर एक ट्वीट कर अशोक गहलोत को घेरा. उन्होंने पत्रकारों की तरह लिखा, 'ब्रेकिंग: जुनैद और नासिर के परिवार से मिलने पहुंचे अशोक गहलोत की एक्सक्लूसिव तस्वीर.' इसके बाद उन्होंने एक ब्लैंक फोटो पोस्ट कर दी.



क्या है जुनैद-नासिर हत्याकांड?
बीते गुरुवार (16 फरवरी), भरतपुर के घाटमीका गांव के रहने वाले नासिर (उम्र 25) और जुनैद (उम्र 35) के शव हरियाणा के लोहारू में एक जली हुई गाड़ी में पाए गए. जांच में पाया गया कि एक दिन पहले, बुधवार (15 फरवरी) को कथित तौर पर कुछ 'गो रक्षकों' ने उनका अपहरण किया था. परिजनों की तरफ से केस दर्ज होने के बाद राजस्थान पुलिस ने नामजद पांच लोगों में से एक रिंकू सैनी को गिरफ्तार किया. मृतकों के परिजनों ने राजस्थान पुलिस को दी गई शिकायत में बजरंग दल से जुड़े पांच लोगों पर आरोप लगाया था.


पहले भी गहलोत और पायलट पर निशाना साध चुके हैं ओवैसी
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले भी असदुद्दीन ओवैसी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट पर निशाना साधा था. रविवार को टोंक में जनता को संबोधित करते हुए AIMIM चीफ ने आरोप लगाया था कि सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट हिन्दू वोट खोने से डरते हैं. इसलिए अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों पर रणनीतिक रूप से चुप्पी साध लेते हैं. उन्होंने सवाल किया था कि अगर ओवैसी मृतकों के परिवार से मिलने भरतपुर आ सकते हैं तो गहलोत और पायलट उनके परिवारों से क्यों नहीं मिल सकते? वह इस बात से डरते हैं कि अगर उन्हें मुसलमानों के साथ देख लिया गया तो हिन्दू भाई उन्हें वोट नहीं देंगे.


इमरजेंसी के दौरान अखबारों ने खाली छोड़े थे पन्ने
मालूम हो, देश में जब इमरजेंसी का दौर चल रहा था, तब पत्रकारिता संस्थानों ने अभिव्यक्ति की आजादी छीने जाने का विरोध किया था. इस क्रम में कई बड़े अखबारों में संपादकीय पन्ने ओपिनियन कॉलम खाली छोड़ दिए थे. ये विरोध करने का एक बड़ा तरीका था. 


यह भी पढ़ें: Rajasthan Election: पीएम मोदी और AIMIM चीफ ओवैसी पर सचिन पायलट का निशाना, कहा- 'बड़ा स्पेशल है ये फरवरी...'