Rajasthan: अजमेर जेल में आजीवन सजा काट रहे एक बंदी की पत्नी ने अपने पति की पैरोल के लिए राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) का दरवाजा खटखटाया और मांग की कि वंश वृद्धि के लिए संतान प्राप्ति होनी जरूरी है मेरे पति अजमेर जेल (Ajmer) में सजा काट रहे हैं उन्हें 15 दिन की पैरोल दी जाए जिससे संतान उत्पत्ति हो सके. उम्र कैद की सजा काट रहे बंदी की शादी हो चुकी है, लेकिन कोई संतान नहीं है. पत्नी शादी से खुश है और बच्चा चाहती है इसलिए उसने अजमेर कलेक्टर को अर्जी दी थी. जवाब नहीं मिला तो उसने हाईकोर्ट की शरण ली. 


कोर्ट ने क्या कहा
उम्रकैद की सजा काट रहे बंदी को हाईकोर्ट ने संतान उत्पत्ति के लिए 15 दिन की पैरोल दी है. राजस्थान हाईकोर्ट में न्यायाधीश संदीप मेहता और फरजंद अली की खंडपीठ ने कहा कि वैसे पैरोल रूल्स में संतान उत्पत्ति के लिए पैरोल का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन वंश के संरक्षण के उद्देश्य से संतान होने को धार्मिक दर्शन, भारतीय संस्कृति और विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से मान्यता दी. 


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पहले कलेक्टर को दी थी अर्जी 
रबारियों की ढाणी भीलवाड़ा के 34 वर्षीय नंदलाल को एडीजे कोर्ट भीलवाड़ा ने 6 फरवरी 2019 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. तब से वह अजमेर की जेल में बंद है. 18 मई 2021 को उसे 20 दिन की पैरोल मिली थी. उसके बाद वह निर्धारित तिथि को लौट आया था. उसकी पत्नी ने अजमेर कलेक्टर, जो पैरोल कमेटी के चेयरमैन भी हैं को अर्जी दी थी. कलेक्टर ने अर्जी पर कुछ नहीं किया तो पत्नी हाईकोर्ट पहुंच गई और यहां अधिवक्ता केआर भाटी के जरिए पिटीशन दायर की. उसने यही गुहार हाईकोर्ट के समक्ष दुहराई. 


कोर्ट ने और क्या कहा
कोर्ट ने एएजी अनिल जोशी से रिपोर्ट भी मंगाई, जिसमें बंदी और उसकी पत्नी की विधिवत रूप से शादी होना बताया गया. ऋग्वेद और वैदिक भजनों का उदाहरण दिया, इसे मौलिक अधिकार भी बताया. कोर्ट ने दोनों पक्ष सुनने के बाद कहा कि दंपती को अपनी शादी के बाद से आज तक कोई समस्या नहीं है. हिंदू दर्शन के अनुसार, गर्भधान, यानी गर्भ का धन प्राप्त करना 16 संस्कारों में से पहला है. 


किस आधार पर दिया पैरोल
विद्वानों ने ऋग्वेद के खंड 8.35.10 से 8.35.12 तक वैदिक भजनों के लिए गर्भधान संस्कार का पता लगाया है, जहां संतान और समृद्धि के लिए बार-बार प्रार्थना की जाती है. कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि पैरोल रूल्स में कैदी को उसकी पत्नी के संतान होने के आधार पर पैरोल पर रिहा करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है फिर भी भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार के साथ और इसमें निहित असाधारण शक्ति का प्रयोग करते हुए कोर्ट याचिका स्वीकारना उचित मानता है.


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