Bal Mitra Police Station: क्राइम ग्राफ बढ़ने के साथ ही बच्चों से जुड़े अपराध भी बढ़ रहे हैं. बच्चों से बदसलूकी, यौन शोषण, बाल श्रम, मानव तस्करी और अन्य आपराधिक मामलों में हो रहे इजाफे को ध्यान में रखते हुए राजस्थान (Rajasthan) के 20 थानों में बाल मित्र थाने स्थापित किए जा रहे हैं. इसके तहत बुधवार को अजमेर (Ajmer) में 2 थानों की शुरूआत होगी. उम्मीद जताई जा रही है कि बाल थाने स्थापित होने के बाद बच्चों को विभिन्न तरह के अपराधों से बचाया जा सकेगा.


अपराध रोकने की कवायद
बाल आयोग और कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन (Kailash Satyarthi Foundation) प्रदेश के 20 थानों में बाल मित्र थाने स्थापित कर रहा है. इनमें से दो थाने अजमेर शहर में होंगे. इन बाल थानों में यौन शोषण, मानव तस्करी, बाल श्रम जैसे बाल अपराध के शिकार हुए बच्चों को मानसिक प्रताड़ना से बचाने की पहल की जाएगी, ताकि वह अपराध की दुनिया में कदम नहीं बढ़ाएं. इन थानों में यौन शोषण के शिकार बच्चे, रेप पीड़ित बच्ची, किशोरियों को अच्छा वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा.


अजमेर में दो बाल मित्र थाने
बाल थाने के लिए अजमेर शहर के क्रिश्चियन गंज और रामगंज थाने का चयन किया गया है. बुधवार को अजमेर रेंज आईजी रुपेन्द्र पाल सिंह और एसपी चुनाराम जाट इन दोनों बाल मित्र थानों का उद्घाटन करेंगे. इस मौके पर राजस्थान महिला कल्याण मंडल और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन के पदाधिकारी भी मौजूद रहेंगे.


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स्कूल जैसे होंगे बाल मित्र थाने
अजमेर के क्रिश्चियन गंज और रामगंज थाने में बनाए गए बाल मित्र पुलिस थाने का रंग-रूप किसी स्कूल की तरह दिखाई दे रहा है. यहां आने वाले बच्चों को स्कूल की तरह ही माहौल मिलेगा. थाने में खाने-पीने और खेलने का सामान उपलब्ध होगा. पढ़ने के लिए किताबें भी रखी गई हैं. बच्चों से संबंधित केस के दौरान सब इंस्पेक्टर और एएसआई सिविल ड्रेस में होंगे.


थाने की दीवारों पर पॉजिटिव स्लोगन
इन बाल मित्र थाने की दीवारों पर मोटिवेशनल और पॉजिटिव स्लोगन लिखे गए हैं. जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विकास का अधिकार, भागीदार का अधिकार और अन्य कई तरह के सकारात्मक स्लोगन लिखे हैं, ताकि बच्चों को यहां आकर अच्छा माहौल मिले.


क्यों जरूरी है बाल मित्र थाना
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में प्रावधान है कि पीड़ित बच्चा पुलिस थाने आएगा तो बिना वर्दी में पुलिसकर्मी उससे बातचीत करेगी. साथ ही बाल रूप वातावरण होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था. थाने के नाम से ही बच्चों के मन में डर हो जाता है. यहां तक कि उनके माता-पिता भी पुलिस के सामने जाने से कतराते हैं. अब बाल मित्र थाना बनने से बच्चों और उनके पेरेंट्स को आसानी होगी. पीड़ित किशोर और किशोरी बेहतर माहौल में अपनी बात बता सकेंगे.


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