Akshaya Tritiya 2022: आखातीज पर पूरे देश में रहती है धूम, राजस्थान के इस जिले में लोग मनाते हैं 'मातम'
Akshaya Tritiya News: राजस्थान के एक जिले में आखातीज पर लोग मंदिर जाने से भी कतराते हैं. इसके पीछे एक ऐसी कहानी है जिसे लोग सैंकड़ों सालों बाद भी नहीं भूले हैं.
Rajastjhan News: सालभर में सबसे ज्यादा शादियां अक्षय तृतीया यानी आखातीज के अबूझ सावे पर होती है. इस दिन पूरे देश में शादियों की धूम रहती है. गाजे-बाजे और नाच-गाने के बीच गांव-शहरों में सैंकड़ों शादियां होती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान में एक जिला ऐसा है जहां खुशियों वाले दिन भी मातम छाया रहता है.
यह अनोखा किस्सा राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले का है. यहां चौथ का बरवाड़ा और उसके आस-पास क्षेत्र के 18 गांव अक्षय तृतीया के दिन शोक मनाते हैं. बताते हैं कि सोहलवीं शताब्दी में अक्षय तृतीया के दिन चौथ माता मंदिर में एक बड़ा हादसा हुआ था. इसे आज भी लोग भूले नहीं है. आखातीज के दिन वो हादसा अनायास ही लोगों के जेहन में आ जाता है. जानकर हैरानी होगी कि आखातीज के दिन लोग मंदिर आने से भी कतराते हैं. यही कारण है कि सामान्य दिनों की तुलना में इस दिन यहां कम ही लोग आते हैं. पूरे क्षेत्र कर्फ्यू जैसा सन्नाटा रहता है.
दुल्हन छेड़ने के बाद हुआ नरसंहार
स्थानीय लोग बताते हैं कि चौथ माता मंदिर में आखातीज पर नव-विवाहित जोड़े धोक लगाने आए थे. उस वक्त किसी मनचले ने एक दुल्हन से छेड़छाड़ की. इस बात से झगड़ा हो गया. मामला इतना बढ़ा कि डाकुओं ने भी हमला कर दिया. नरसंहार में 50-60 नवयुगल मारे गए थे. नई नवेली दुल्हनें और दूल्हे सदा के लिए बिछड़ गए थे. इसके बाद यहां के राजा ने चौथ का बरवाड़ा और उसके ठिकाने में आने वाले 18 गांव में अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य नहीं करने और शोक मनाने की घोषणा कर दी थी. इसे आज तक निभाया जा रहा है.
मंदिर में नहीं बजती घंटी
मंदिर पुजारी के मुताबिक, अक्षय तृतीया के दिन मंदिर आने वाले भक्तों की संख्या कम रहती है. शोक स्वरूप मंदिर के घंटे को भी बांध दिया जाता है ताकि कोई उसे बजा नहीं पाए और किसी तरह का शोर न हो. आरती भी मन में बोली जाती है. पूरे दिन लाउडस्पीकर बंद ही रहता है.
18 गांव नहीं पकाते भोजन
अक्षय तृतीया के दिन सवाई माधोपुर जिले के 18 गांवों में शोक छाया रहता है. लोग इतने गमजदा रहते हैं कि घरों में भोजन तक नहीं पकाया जाता. रसोई में चूल्हे पर न तो कढ़ाई चढ़ाई जाती है और न पकवान बनाए जाते हैं.
स्मारक दिलाते हैं घटना की याद
घटना में मारे गए लोगों के स्मारक आज भी चौथ माता खातालाब मेला मैदान और चौथ माता पहाड़ियों के नीचे स्थित वन क्षेत्र में बने हुए हैं. यह स्मारक लोगों को उस दिन की घटना की याद दिलाते हैं.
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