Akshaya Tritiya 2023: अक्षय तृतीया से एक बार फिर शादियों का सीजन शुरू हो रहा है. शादियों के सीजन में एक खास बात जानना आपके लिए बहुत जरूरी है. हिंदू धर्म में शादी के दौरान तोरण मारने की परंपरा है. दूल्हा घोड़ी पर सवार दुल्हन के दरवाजे पहुंचता है. दरवाजे पर लकड़ी का तोरण बांधा जाता है. तोरण को कटार तलवार से छुआ (मारा) जाता है. उसे ही तोरण मारना कहते हैं. तोरण मारने के बाद शादी की रस्में निभाई जाती हैं.
हिंदू धर्म में शादी के दौरान तोरण मारने की परंपरा है. सवाल पैदा होता है कि किस तरह का तोरण मारना चाहिए? आजकल बाजार में रेडिमेड सुंदर तोरण मिलते हैं. तोरण पर भगवान गणेश और धार्मिक चिह्न अंकित होते हैं. दूल्हा उस पर तलवार से वार कर तोरण राक्षस को मारने की रस्म पूरा करता है. ये गलत है. हिंदू धर्म की परंपराओं के अनुसार तोरण पर तोते का स्वरूप होना चाहिए. अन्य कोई धार्मिक चित्रण नहीं होना चाहिए. धार्मिक चिन्हों पर तलवार के वार करना सर्वधा अनुचित है.
तोरण मारने की परंपरा कैसे हुई शुरू?
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार तोड़ नाम का एक राक्षस था. शादी के समय तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था. दुल्हन के दरवाजे पर बैठा राक्षस दूल्हा का इंतजार करता. दूल्हा के आने पर शरीर में प्रवेश कर जीवन भर परेशान करता था. बताया जाता है कि एक बार एक साहसी और चतुर राजकुमार शादी के वक्त जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था, तब उसकी नजर राक्षस रूपी तोते पर पड़ी और उसे तलवार के वार से तुरंत मार गिराया. उसी दिन से तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई थी. दूल्हा शादी के समय तलवार से लकड़ी के बने राक्षसों को मारने की रस्म पूरी करता है.
71 वर्षीय प्रेम कुमारी दादी ने बताया कि दुल्हन के द्वार पर तोरण लकड़ी से बना होता है. तोरण को दूल्हा तलवार कटार से मारने की रस्म निभाता है. धार्मिक चिन्ह वाले तोरण का इस्तेमाल नए मकान, व्यापार और शुभ कार्यो में किया जाता है. बदलते समय के साथ सब कुछ रेडीमेड मिलने लगा है. कई तोरण पर तोते और धार्मिक चिन्ह दोनों होते हैं. उसे भी इस्तेमाल करना गलत हैं क्योंकि तोरण में तोते रूपी राक्षस के साथ धार्मिक चिह्न और भगवान गणेश एक साथ रह सकते हैं.