मोदी मंत्रिमंडल में प्रमोशन के बाद संकल्प पत्र बनाने की जिम्मेदारी मिलने के बाद अर्जुन राम मेघवाल सुर्खियों में हैं. बीजेपी के भीतर मेघवाल के बढ़ते कद को संयोग से ज्यादा एक प्रयोग के रूप में देखा जा रहा है. मेघवाल को राजनीतिक गलियारों में सीएम पद के साइलेंट दावेदार बताया जा रहा है.
गुरुवार को बीजेपी ने मेघवाल को राजस्थान चुनाव के लिए पार्टी का मेनिफेस्टो बनाने की जिम्मेदारी दी है. 2022 में बीजेपी हाईकमान ने मेघवाल को ज्वॉइनिंग कमेटी का प्रमुख बनाया था. इस कमेटी का काम बीजेपी छोड़ चुके नेताओं को वापस लाना और दूसरे दल के नेताओं को पार्टी के साथ जोड़ना है.
राजस्थान कोटे से मेघवाल मोदी कैबिनेट के एकमात्र मंत्री हैं, जिन्हें चुनाव से जुड़ी 2 कमेटियों की जिम्मेदारी सौंपी गई है. 2 महीने बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां बीजेपी सत्ता वापसी की कोशिशों में जुटी है.
बीजेपी के भीतर मुख्यमंत्री चेहरा को लेकर लंबे वक्त से माथापच्ची चल रही है. हालांकि, हाईकमान चुनाव बाद ही चेहरा घोषित करने की बात कह रहा है.
बीजेपी को राजस्थान में जीत की उम्मीद
राजस्थान में बीजेपी को सत्ता में वापसी की उम्मीद है. मेवाड़ की रैली में गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि बीजेपी जीत के सारे रिकॉर्ड राजस्थान में तोड़ देगी. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी क्लिन स्विप का दावा कर चुके हैं.
हाल ही में एबीपी-सी वोटर के सर्वे में भी बीजेपी को बढ़त दिखाया गया था. एबीपी-सी वोटर के मुताबिक राजस्थान में बीजेपी को 109-119 सीटें मिल सकती है. वहीं कांग्रेस के खाते में 78 से 88 सीटें जीतने की संभावना जताई गई है.
मेघवाल बीजेपी के डार्क हॉर्स तो नहीं, 3 प्वॉइंट्स...
1. प्रधानमंत्री मोदी के करीबी, उन्होंने ही संभाल रखा है मोर्चा- अर्जुन राम मेघवाल की गिनती प्रधानमंत्री मोदी के करीबी नेताओं में होती है. 2016 से वे लगातार मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं. इस दौरान मेघवाल की तैनाती विदेश, संसदीय, वित्त,संस्कृति जैसे विभागों में हुई.
हाल ही में मेघवाल को कानून जैसे बड़े मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है. मेघवाल को कानून मंत्रालय दिए जाने को किरेन रिजीजू ने राजनीतिक फैसला बताया था और चुनाव से जोड़ दिया था.
राजस्थान चुनाव की कमान खुद प्रधानमंत्री मोदी ने संभाल रखी है. प्रधानमंत्री अब तक 8 से अधिक रैली राजस्थान में कर चुके हैं. हाल ही में राजस्थान से आने वाले बीजेपी के सांसदों से प्रधानमंत्री ने मुलाकात की थी.
गुटबाजी को मात देने के लिए बीजेपी ने राजस्थान की कमान पीएम मोदी को सौंपी गई है. मोदी के कमान मिलने के बाद जिस तरह मेघवाल का कद बढ़ रहा है, उससे सियासी हलकों में अटकलों को और अधिक बल मिल रहा है.
2. मिथक और परंपरा तोड़ने में माहिर बीजेपी हाईकमान- 2014 के बाद बीजेपी चेहरा सिलेक्शन में लगातार मिथकों को तोड़ रही है. राजस्थान में बीजेपी की ओर से अब तक 2 मुख्यमंत्री बनाए गए हैं. 1. भैरो सिंह शेखावत और 2. वसुंधरा राजे.
दोनों नेता राजपूत समुदाय से आते हैं. राजपूतों की आबादी राजस्थान में 9-10 प्रतिशत है और यह बीजेपी का कोर वोटर्स माना जाता है. दूसरी ओर कांग्रेस पिछले 25 साल से ओबीसी चेहरे पर ही भरोसा कर रही है.
अशोक गहलोत के बाद कांग्रेस में सचिन पायलट बड़ा चेहरा हैं, जो ओबीसी बिरादरी से ही आते हैं.
झारखंड, हरियाणा में मिथक तोड़ने का प्रयोग बीजेपी कर चुकी है. उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी का प्रयोग सफल रहा. 2003 से 2014 तक यूपी में ओबीसी और दलित समुदाय के मुख्यमंत्री ही बनते थे. 2017 में बीजेपी ने राजपूत बिरादरी से आने वाले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया.
ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब होती है, तो राजपूत मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा टूट सकती है. इस स्थिति में मेघवाल की दावेदारी सबसे प्रबल मानी जा रही है.
3. दलित फेस, योजनाओं को अमल में लाने के लिए फेमस- अर्जुन राम मेघवाल दलित हैं, जिसकी आबादी राजस्थान में 16 प्रतिशत के आसपास है. मेघवाल को मोदी कैबिनेट में भी दलित होने की वजह से ही जगह मिली. 2016 में निहालचंद की जगह अर्जुन राम को कैबिनेट में शामिल किया गया था.
बात दलितों की करे तो राजस्थान में 17 प्रतिशत दलित हैं, जिसका रुझान अक्सर कांग्रेस की तरफ रहती है. बीएसपी भी दलित वोटों के जरिए हर चुनाव में 5-10 सीट जीतने में कामयाब हो जाती है.
मेघवाल आईएएस अधिकारी रह चुके हैं. ऐसे में योजनाओं को अमल में लाने के लिए भी काफी प्रसिद्ध हैं. 2019 में उन्हें बेस्ट सांसद का सम्मान मिला था. किसी गुट में न होने का फायदा भी मेघवाल को सियासी तौर पर मिल सकता है.
अर्जुन राम मेघवाल कौन हैं?
मोदी सरकार में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल राजस्थान के बीकानेर से सांसद हैं. राजनीति में आने से पहले मेघवाल भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी थे. वसुंधरा राजे और ओम माथुर के जरिए मेघवाल राजनीति में आए.
2008 के चुनाव में बतौर आईएएस अधिकारी मेघवाल तब सुर्खियों में आए थे, जब उन पर बीजेपी के लिए काम करने का आरोप लगा था. उस वक्त मेघवाल चुरु के कलेक्टर पद पर आसीन थे. बाद में चुनाव आयोग ने उनका तबादला कर दिया था.
मेघवाल के बीजेपी में आने की कहानी भी दिलचस्प है. 2009 के परिसीमन में बीकानेर सीट दलितों के लिए आरक्षित हो गया. बॉलीवुड स्टार धर्मेंद्र उस वक्त बीजेपी से सांसद थे, लेकिन सीट आरक्षित होने की वजह से वे चुनाव नहीं लड़ सकते थे.
बीजेपी के पास बीकानेर से चुनाव लड़ाने के लिए कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं था, जिसके बाद ओम माथुर ने मेघवाल से संपर्क साधा. माथुर के कहने पर मेघवाल चुनाव लड़ने को राजी हो गए. 2009 में बीजेपी ने मेघवाल को पार्टी में शामिल कराने से पहले ही उनकी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी.
वसुंधरा के साइड लाइन से CM दावेदारों पर चर्चा तेज
राजस्थान बीजेपी के भीतर वसुंधरा राजे लगातार अलग-थलग पड़ती जा रही है. हाल ही में वसुंधरा बीजेपी के प्रदर्शन में शामिल नहीं हुई थी. वसुंधरा गुट की मांग है कि 2013 की तरह ही उन्हें चुनाव की कमान दिया जाए.
वसुंधरा के करीबी नेताओं का कहना है वसुंधरा ही राजस्थान में बीजेपी का एकमात्र सर्वमान्य चेहरा है. हालांकि, पार्टी लगातार उन्हें राजस्थान से दूर रख रही है.