राजस्थान में विधानसभा चुनाव के अब 250 से भी कम दिन का वक्त बचा है. हाल ही में बजट पेश कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं. गहलोत ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि 2023 में 156 सीट जीतकर कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी. गहलोत ने रिटायरमेंट के चर्चे को भी सिरे से खारिज कर दिया है. 


राजनीति में जादूगर के नाम से मशहूर अशोक गहलोत के हालिया बयान से बीजेपी भी चौकन्ना हो गई है. 5 साल से सत्ता से बाहर चल रही बीजेपी भी नए सिरे से रणनीति तैयार कर रही है, लेकिन अशोक गहलोत के दांव को चित करना पार्टी के लिए आसान नहीं दिख रहा है.


1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री हैं. बेहद लो प्रोफाइल में रहने वाले और कड़क चाय के शौकीन गहलोत संगठन और सरकार में बड़े पदों पर रह चुके हैं. राजस्थान समेत उत्तर भारत के राजनीतिक हालातों से वे भली-भांति वाकिफ हैं. 


गहलोत को सरकार रिपीट होने की उम्मीद क्यों?
एक पब्लिक कार्यक्रम के दौरान अशोक गहलोत ने कहा कि मैंने जो योजनाएं बनाई है, वो इतिहास में कभी नहीं बन पाएगा. राजस्थान में जब हम सत्ता से चले जाते हैं, तब जनता कहती है कि गहलोत ही ठीक मुख्यमंत्री था.


हमने इस बार भी कई ऐतिहासिक योजनाएं लागू की है और मुझे उम्मीद है कि जनता इसे समझती है. सरकार रिपीट हो रही है और बीजेपी को फिर से राजस्थान में हार मिलेगी.  


मैं माली समुदाय से आता हूं, जिसकी आबादी बहुत कम है. इसके बावजूद लोगों के प्यार की बदौलत ही मैं मुख्यमंत्री बन पाया. राजस्थान में सभी वर्ग सरकार से संतुष्ट हैं.


सत्ता में वापसी के लिए गहलोत की 5 रणनीति
पिछले 25 सालों से राजस्थान में हर 5 साल बाद सरकार बदल जाती है. इस परंपरा की चपेट में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे 2-2 बार आ चुके हैं. पायलट गुट कांग्रेस हाईकमान से रिवाज पॉलिटिक्स का उदाहरण देकर मुख्यमंत्री बदलने की भी मांग कर रही है.


हालांकि, गहलोत का दावा है कि इस बार यह परंपरा टूट जाएगी और कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता में आएगी.  अशोक गहलोत ने इसके लिए 5 रणनीति भी तैयार किया है. आइए इसे विस्तार से जानते हैं...


1. कल्याणकारी और मुफ्त योजनाओं का सहारा- अशोक गहलोत सरकार पिछले 5 सालों में कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत कर चुकी है. इनमें चिरंजीवी योजना, इंदिरा गांधी शहरी रोजगार योजना, इंदिरा रसोई योजना और ब्याज मुक्त फसली ऋण योजना प्रमुख हैं. 


इन सभी योजनाओं के जरिए 2 करोड़ लोगों तक सीधा पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है. हाल के दिनों में गहलोत की टीम ने सभी माध्यमों से इन योजनाओं का खूब प्रचार-प्रसार भी किया गया है. 


अशोक गहलोत ने हाल ही में कई ऐसी कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा भी की है, जो काफी चर्चा में है. राजस्थान सरकार ने राज्य में 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है. 70 लाख से ज्यादा लोगों का इसका लाभ मिलेगा.


इसके अलावा गरीब परिवारों को 100 यूनिट मुफ्त बिजली, युवाओं को बेरोजगारी भत्ता और 1 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा सरकार ने किया है. अशोक गहलोत को उम्मीद है कि ये सभी योजनाएं चुनाव में गेम चेंजर साबित हो सकता है.


2. दिग्गज नेताओं के टिकट कटेंगे- 2003 और 2013 में अशोक गहलोत के रहते राजस्थान में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. हार की बड़ी वजह दिग्गज मंत्रियों और विधायकों का चुनाव हारना था. पार्टी इस बार इससे सबक लेकर कई नेताओं का टिकट काट सकती है.


2013 में कांग्रेस ने 75 विधायकों को फिर से टिकट दिया, जिसमें से सिर्फ 5 विधायक ही चुनाव जीत पाए. गहलोत कैबिनेट के 31 नेता चुनाव हार गए. इनमें शांति धारीवाल, भंवरलाल मेघवाल, ब्रजकिशोर शर्मा, परसादीलाल, डॉ. जितेंद्र सिंह, राजेंद्र पारीक, हेमाराम और हरजीराम बुरड़क जैसे दिग्गज नेता शामिल थे.


बात 2003 की करे तो उस वक्त कांग्रेस के सिर्फ 34 विधायक फिर से चुनाव जीतकर आने में सफल रहे. सरकार के 19 मंत्री बुरी तरह चुनाव हार गए. इनमें कमला बेनीवाल, हरेंद्र मिर्धा और शांति धारीवाल जैसे नाम शामिल थे. 


कांग्रेस इस बार बड़ी संख्या में मंत्रियों और विधायकों के टिकट काट सकते हैं. पार्टी पिछले ही साल कुछ दिग्गज नेताओं को संगठन में भेजकर मंत्री पद ले लिया था. आने वाले वक्त में इस फॉर्मूले को और तेजी से लागू किया जा सकता है.


3. गहलोत बनाम कौन, एजेंसी हायर- कांग्रेस में आंतरिक गुटबाजी को लगाम लगाते हुए हाल ही में अशोक गहलोत ने कहा कि मुख्यमंत्री ही चुनाव में चेहरा होता है. गहलोत के इस बयान का कांग्रेस हाईकमान की ओर से अब तक खंडन नहीं किया गया है.


कांग्रेस के भीतर गहलोत को हटाने की मांग भी उठ रही थी, लेकिन यह भी ठंडे बस्ते में चला गया है. अप्रैल तक अगर कोई बड़ा बदलाव राजस्थान में नहीं होता है, कांग्रेस में अशोक गहलोत ही चुनाव का चेहरा हो सकते हैं.


बीजेपी में अभी भी सिरफुटौव्वल जारी है. करीब एक महीना बीत जाने के बाद भी नेता प्रतिपक्ष को लेकर फैसला नहीं हो सका है. बीजेपी में वसुंधरा राजे फिर से सक्रिय हो गई हैं.  


इसी बीच अशोक गहलोत ने एक चुनावी एजेंसी को हायर किया है. यह एजेंसी पहले भी कई राज्यों में काम कर चुकी है. एजेंसी गहलोत के चेहरे पर फोकस कर रही है. बीजेपी की तरह राजस्थान में कांग्रेस भी अशोक गहलोत बनाम कौन का नारा बुलंद कर सकती है. गहलोत के इस दांव ने बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है.


4. नए जिलों की ताबड़तोड़ घोषणा- अशोक गहलोत आने वाले कुछ दिनों में राजस्थान को 8 नए जिलों की सौगात दे सकते हैं. सियासी गलियारों में चल रही चर्चा के मुताबिक बाड़मेर से अलग कर बालोतरा, अजमेर से अलग कर ब्यावर, जोधपुर से अलग कर फलोदी और जालौर से अलग कर सांचौर को जिला बनाया जा सकता है.


इसके अलावा जयपुर से अलग कर कोटपूतली, सवाई माधोपुर से अलग कर गंगापुर सिटी, भरतपुर से अलग कर बयाना और नागौर से अलग कर डीडवाना को जिले बनाने की चर्चा है.


अशोक गहलोत इस दांव से करीब 40 सीटों पर सीधा पकड़ बना लेंगे. इन जिलों की मांग लंबे वक्त से उठ रही है. कांग्रेस सरकार के मंत्री और नेता भी इसकी मांग उठा रहे हैं. 


5. केंद्र और उसके मंत्री पर सीधा अटैक- ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट और ओल्ड पेंशन स्कीम के मुद्दे पर सीधे राजस्थान सरकार केंद्र पर निशाना साध रही है. प्रधानमंत्री मोदी की एक मीटिंग में गहलोत ने ईआरसीपी का मुद्दा उठाया था और उनकी ओर से किए गए वादे को भी याद दिलाया था. 


यह प्रोजेक्ट अगर राजस्थान में शुरू हो गया तो राज्य के 13 जिलों को पानी मिलेगा. गहलोत आने वाले दिनों में इन मुद्दों को लेकर केंद्र की घेराबंदी करेंगे. 


गहलोत सरकार संजीवनी घोटाले को भी जोरशोर से उठा रही है. अशोक गहलोत ने इस घोटाले में मोदी सरकार के मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उनकी परिवार के भूमिका पर सवाल उठाया था. 


रणनीति ठीक पर राह आसान नहीं...


1. सचिन पायलट और हरीश चौधरी बागी- अशोक गहलोत के लिए पार्टी के भीतर ही कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. अभी भी सचिन पायलट और हरीश चौधरी गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.


हरीश चौधरी जाट नेता हैं और बाड़मेर से आते हैं. वर्तमान में पंजाब के प्रभारी भी हैं. वहीं सचिन पायलट के साथ अब भी झगड़ा नहीं सुलझा है.


पायलट गुट की मांग है कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दें. पायलट समर्थक मई के बाद गहलोत के खिलाफ और अधिक आक्रामक हो सकते हैं. इसकी बड़ी वजह चुनाव में 6 महीने से कम का वक्त होना है.


दरअसल, 6 महीने से कम का समय बचता है तो विधायकों पर सदस्यता रद्द की कार्रवाई भी नहीं हो पाती है. पायलट गुट के विधायक गहलोत के खिलाफ इसी दौरान मोर्चा खोलेंगे.


2. बीजेपी की चुनावी मशीनरी और पीएम मोदी का चेहरा- बीजेपी के लिए राजस्थान एक अहम राज्य है. ऐसे में चुनावी साल में पार्टी ने भारी-भरकम चुनावी मशीनरी की तैनाती की है. पार्टी इस बार विस्तारक फॉर्मूले को अपना रही है. हर 1000 वोटरों पर 21 विस्तारकों की तैनाती की जाएगी.


इस सबके अलावा बीजेपी के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा है. पीएम मोदी पिछले 5 महीने में 4 रैली राजस्थान में कर चुके हैं. आने वाले दिनों में पीएम के और भी जनसभा कराने की तैयारी में बीजेपी है. 


पीएम मोदी के चेहरे को आगे कर बीजेपी आंतरिक गुटबाजी से बचना चाहती है. कई राज्यों में पार्टी का यह प्रयोग सफल भी हुआ है. पीएम मोदी की रैली पूर्वी राजस्थान के इलाकों में अधिक होने की संभावनाएं हैं, जहां 2018 में बीजेपी को बड़ी हार मिली थी. 


3. ओवैसी भी बढ़ा रहे टेंशन- राजस्थान में मुस्लिम वोटों की तादाद 9 फीसदी के आसपास है. राजस्थान के करीब 40 सीटों पर मुस्लिम वोटरों का दबदबा है. कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबले में इन समुदायों के वोट कांग्रेस को मिलता था. मुस्लिम बहुल टोंक से सचिन पायलट विधायक हैं.


मगर, इस बार एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने टेंशन बढ़ा दी है. ओवैसी एक महीने में 2 बार राजस्थान आ चुके हैं और गहलोत सरकार पर निशाना साध चुके हैं. अगर चुनाव से पहले ओवैसी की पार्टी राजस्थान में जम गई तो गहलोत सरकार की टेंशन बढ़ सकती है.


बिहार में ओवैसी की पार्टी चुनाव से ऐन पहले एंट्री लेकर सबको चौंका दिया था. बिहार में 2020 में ओवैसी पार्टी के 5 विधायक चुने गए थे. ओवैसी की वजह से कांग्रेस और राजद सरकार बनाने से चूक गई थी.