Ram Mandir: 'पैरों में छाले पड़े तो कपड़ा बांधकर चले, लेकिन नहीं मानी हार,' कोटा के कारसेवक ने सुनाया आंदोलन के समय का किस्सा
Ramlala Pran Pratishtha: कार सेवक महेंद्र सिंह ने बताया कि कोटा से अयोध्या जाते समय पैदल चलते-चलते पांव में छाले पड़ गए थे. गांव वाले कभी नमक का पानी देते तो कभी पैरों की मालिश भी करते थे.
Ram Mandir Inauguration: अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. अब रामलला अपने भव्य निर्माणाधीन राम मंदिर में विराजेंगे. टेंट से लेकर भव्य निर्माणाधीन मंदिर तक पहुंचने में बहुत लोगों ने संघर्ष किया है. इस संघर्ष में राजस्थान (Rajasthan) के कोटा (Kota) के लोगों का भी योगदान रहा है. साल 1990 की बात की जाए तो कोटा में स्टेशन क्षेत्र कारसेवकों का गढ़ रहा था.
यहां से साल 1990 और 1992 दोनों ही समय कई कार सेवक गए थे. ऐसे ही एक कार सेवक महेंद्र सिंह जादौन बताते हैं कि हम 6 मित्रों के साथ 1990 में कार सेवा के लिए गए थे, लेकिन मुलायम सिंह की सरकार ने इतनी यातनाएं दी कि उसका दर्द आज भी ताजा है. उन्होंने कहा कि वह करीब 300 किलोमीटर तक पैदल चले, हालात यह हो गए की पैरों में छाले पड़ गए, जूते पहनने की स्थिति नहीं थी. पैरों में कपड़े और टाट बांधकर चला जाता था. हर समय पुलिस पकड़ लेगी ऐसा डर लगा रहता था, लेकिन हमने हार नहीं मानी और कारसेवा का जो काम हमें दिया गया था हमने उसे पूरा किया.
'सात दिन बाद अयोध्या पहुंचे थे'
कारसेवक जादौन ने आगे बताया कि कारसेवा के दौरान हमें लखनऊ के पहले ही रोक लिया गया. उसके बाद जैसे तैसे कभी पैदल तो कभी बैलगाड़ी, तो कभी किसी की सहायता से हम आगे बढ़ते चले गए. पैदल चलते-चलते पांव में छाले पड़ गए. गांव वाले कभी नमक का पानी देते तो कभी हल्दी का दूध पिलाते तो कभी पैरों की मालिश भी करते थे. इसके बाद जैसे-तैसे हम 6 मित्र सात दिन बाद अयोध्या पहुंचे. अयोध्या पहुंचने के बाद ही गोलीकांड हुआ तो हाहाकार मच गई, खुशी गम में बदल गई. एक के बाद एक चलती गोलियां लोगों के सीने को चीर रही थीं.
'सरयू नदी में लगा था लाशों का ढेर'
उन्होंने आगे कहा, 'हमारे आस-पास ही करीब 70 लोगों की लाशें कुछ ही देर में गिर गईं, जिन्हें साइड में किया गया. उसके बाद कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इन लाशों का क्या किया जाए, जमीन पर खून ही खून बह रहा था. हम वहां से लाशों को समटते रहे, कई लोगों ने हमारी मदद भी की. उसके बाद जब प्रशासन ने इन शवों को सरयू नदी में डाल दिया तो हम कुछ दिन वहीं रुके रहे. जब हम सरयू नदी के पास गए, तो वहां लाशों का ढेर था. हमने अपने हाथों से करीब 35 शवों को वहां से निकाला, लेकिन तीन चार दिन या उससे पहले के शव पूरी तरह से सड़ चुके थे.'
जादौन आगे बताते हैं, 'हमारे 6 मित्रों में विजय सिंह यादव, मनोज हवेलिकर, अनिल बाथम, धर्मवीर सिंह, छोटे लाल शमिल थे, जिसमें से छोटे लाल और विजय की मौत हो चुकी है. महेन्द्र सिंह ने कहा कि देश भर में कर्फ्यू था कोटा में भी यही हाल था. जैसे तैसे घर पहुंचे और उन लम्हों को याद कर कई रातों तक नींद नहीं आती थी, लेकिन जब आज भगवान श्री राम 500 साल बाद अपने गर्भगृह में पधार रहे हैं तो मन में गर्व होता है कि हम भी भगवान राम के कार्य में सहभागी बने हैं.'