Bangladesh Political Crisis Impacts Bhilwara Exports: बांग्लादेश में हुई बड़े सियासी बवाल का असर राजस्थान की टेक्सटाइल सिटी भीलवाड़ा पर भी पड़ रहा है. प्रोडक्शन व्यापार को लेकर बांग्लादेश और भीलवाड़ा का बड़ा रिश्ता है, जिसके चलते बांग्लादेश की 3,500 कपड़ा फैक्ट्रियों के लिए यार्न और डेनिम भारत के राजस्थान से जाता है. फैशनेबल कपड़े बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों के लिए रेडिमेड गारमेंट्स बांग्लादेश में बनते हैं और इसके लिए रॉ मटीरियल भीलवाड़ा से एक्सपोर्ट किया जाता है.
साल 2024 में बांग्लादेश में छात्र आरक्षण की आड़ में सत्ता संकट पैदा हो गया है, जिसकी बड़ी मार वस्त्र नगरी भीलवाड़ा के कपड़ा उद्योग पर पड़ी है. अब व्यापारियों को बांग्लादेश में हालात सामान्य होने का इंतजार करना पड़ेगा. भीलवाड़ा में हर साल 100 करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन होता है, जो 25 हजार करोड़ रुपये का सालाना टर्नओवर देता है.
यहां बनने वाले कपड़े से करीब 15 करोड़ मीटर कपड़ा विश्व के 50 देशों में सप्लाई किया जाता है. इसमें से बांग्लादेश में करीब दो से ढाई करोड़ मीटर कपड़ा और डेनिम सप्लाई किया जाता है. बांग्लादेश से करीब 300 से 400 करोड़ रुपये की आमदनी होती है. भीलवाड़ा को राजस्थान का 'मैनचेस्टर' भी कहा जाता है. यहां लगभग एक हजार कपड़ा फैक्ट्री हैं.
20 करोड़ रुपये के ऑर्डर रुके, अटका 50 करोड़ का लेनदेन
भीलवाड़ा से बांग्लादेश को जाने वाला करीब ढाई करोड़ मीटर रेडिमेड गारमेंट के 20 करोड़ रुपये के ऑर्डर अटक गए हैं. यहां से करीब एक करोड़ मीटर डेनिम हर महीने जाता है, उस पर भी फिलहाल संकट है. सबसे बड़ी बात है कि यहां जो स्पिनिंग मिलें यार्न बनाती हैं, वे भी बड़ी मात्रा में बांग्लादेश में यार्न एक्सपोर्ट करती हैं, उस पर भी संकट आएगा. वहीं, व्यपारियों द्वारा बांग्लादेश भेजे गए कपड़ों का करीब 50 करोड़ का लेनदेन भी फिलहाल अधर में अटक चुका है.
मेवाड़ चेंबर कॉमर्स ऑफ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन महा सचिव आर के जैन ने बताया कि भीलवाड़ा वस्त्र नगरी से बांग्लादेश में प्रतिदिन 2 करोड़ का यार्न खरीद कर एक्सपोर्ट हो रहा था, लेकिन बांग्लादेश में आंतरिक गृह क्लेश के चलते यार्न व्यापार पर भारी मात्रा में लॉस आया है. इसके चलते भीलवाड़ा के यार्न व्यापारी कर्ज में डूब गए हैं. व्यापारियों ने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बैंको से कर्ज लिया है लेकिन एक्सपोर्ट के हालत खराब हैं. कई व्यापारी पलायन की स्थिति में आ जाएंगे या फिर आर्थिक संकट के चलते उन्हें भूमिगत होना पड़ सकता है.
भीलवाड़ा से सुरेंद्र सागर की रिपोर्ट.
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