Bappa Rawal News: राजस्थान का मेवाड़, जो अपनी वीर, शौर्य के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है. मेवाड़ के नाम आते ही वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का छायाचित्र सामने आ जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं इस मेवाड़ की स्थापना किसने की? यही नहीं, स्थापना करने वाले वीर ने एक समय अफगानिस्तान तक अपना साम्राज्य फैलाया था.
अभी मेवाड़ उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ क्षेत्र को कहा जाता है. चौंकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान का रावलपिंडी शहर का जो नाम है वह उन्ही वीर योद्धा के नाम से नामकरण हुआ. आइये जानते हैं वह कौन हैं वीर योद्धा.
जानिए योद्धा बप्पा रावल का इतिहास
जिन वीर योद्धा की हम बात कर रहे हैं, उनका नाम है बप्पा रावल. बप्पा रावल को मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है. डॉ. ओझा के अनुसार बप्पा रावल किसी व्यक्ति विशेष का नाम न होकर कालभोज नामक शासक की उपाधि थी. मुहणौत नैणसी की ख्यात के अनुसार वह ऋषि हारीत राशि की गायें चराता थे. बप्पा की सेवा से प्रसन्न होकर हारीत राशि ने महादेव को प्रसन्न कर उनके लिए मेवाड़ का राज्य मांग लिया था.
मुगलों से सामंतों ने लड़ने से मना किया, बप्पा रावल ने अफगानिस्तान तक खदेड़ा
बप्पा रावल मेवाड़ की राजधानी रही चित्तौड़गढ़ के शासक मान मोरी की सेवा में गए थे. इसी समय विदेशी मुगल सेना ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया. राजा मान ने अपने सामन्तों को विदेशी सेना का मुकाबला करने के लिए कहा किन्तु उन्होंने इंकार कर दिया. अंत में बप्पा रावल ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए युद्ध के लिए प्रस्थान किया.
बप्पा के अद्भुत पराक्रम के सामने विदेशी आक्रमणकारी टिक नहीं पाए और सिंध की तरफ भाग निकले. शत्रुओं का पीछा करते हुए बप्पा रावल अफगानिस्तान की राजधानी गजनी तक पहुंच गए. गजनी के शासक सलीम को हराकर बप्पा ने अपने भानजे को वहां के सिंहासन पर बैठाया. बप्पा ने सलीम की बेटी के साथ विवाह किया और चित्तौड़गढ़ लौट आए.
734 ई. में चित्तौड़गढ़ पर किया शासन, ईरान में भी विजय हुए
चित्तौड़गढ़ में राजा मान और सामंतों के बीच तनाव पैदा होने के बाद कई सामंत दरबार छोड़कर चले गए. इन विद्रोही सामंतों ने बप्पा को शासक बनने के लिए राजी कर 734 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया. बप्पा ने चित्तौड़ पर अधिकार कर तीन उपाधियां -1 'हिन्दू सूर्य' राजगुरु, और 'चक्कवै', धारण की. पचास वर्ष की आयु में बप्पा ने ईरान के खुरासान पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया. वहीं पर उनकी मृत्यु हो गई. इतिहासकार ओझा के अनुसार बप्पा का देहांत नागदा में हुआ और उसका समाधि स्थल 'बापा रावल' के नाम से प्रसिद्ध है.
बप्पा रावल की तुलना चार्ल्स मार्टल से की गई
बप्पा रावल ने अपने पूर्वजों की तरह सोने के सिक्के का प्रचलन किया जो उनकी प्रतिभा और वैभव का प्रतीक है. 115 ग्रेन के उसके सिक्के के दोनों तरफ कामधेनु, बछड़ा, शिवलिंग, नन्दी, दण्डवत करता हुआ पुरुष, नदी, मछली, त्रिशुल आदि का अंकन है. इतिहासकार सी. वी. वैद्य ने बप्पा रावल की तुलना 'चार्ल्स मार्टल (मुगल सेनाओं को सर्वप्रथम पराजित करने वाला.. फ्रांसीसी सेनापति) के साथ करते हुए कहा है कि उसकी शौर्य की चट्टान के सामने अरब आक्रमण का ज्वार-भाटा टकराकर चूर-चूर हो गया.
उन्होंने इस्फन हान, कंधार, कश्मीर, इराक, ईरान, तूरान, काफरिस्तान आदि पश्चिमी देशों के शासकों को पराजित कर उन्हीं की पुत्रियों के साथ विवाह किया था. बप्पा के सैन्य ठिकाने के कारण पाकिस्तान के शहर का नाम रावलपिंडी पड़ा.
News Source: माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 12वीं की पुस्तक भारत का इतिहास और उदयपुर इतिहास के व्याख्याता अनिल जोशी के अनुसार.