Ajmer Sharif Dargah: हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है. इस दिन ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है. खास बात है कि इस बसंत उत्सव को मुस्लिम भी शान-ओ-शौकत के साथ मनाते हैं. राजस्थान (Rajasthan) की धार्मिक नगरी अजमेर (Ajmer) में स्थित विश्व प्रसिद्ध गरीब नवाज हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) की दरगाह पर बसंत उत्सव की रौनक देखते ही बनती है. सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल इस दरगाह में इस साल बसंत पंचमी पर्व आगामी 26 जनवरी को मनाया जाएगा.


आठ सौ साल पुरानी है यह परंपरा
अजमेर दरगाह में बसंत पेश करने की यह परंपरा करीब 800 साल पुरानी बताई जाती है. इस साल 26 जनवरी को बासंती फूल मजार शरीफ पर पेश किए जाएंगे. इस दौरान सालाना उर्स में आने वाले अकीदतमंद भी मौजूद रहेंगे. बसंत का जुलूस दरगाह के मुख्य द्वार निजाम गेट से रवाना होगा. पीले रंग के लिबास पहने सूफी कव्वाल और उनके साथी हाथों में पीले फूलों का गुलदस्ता लिए मजार तक पहुंचेंगे. सूफी संत अमीर खुसरो के गीत गाएंगे. आज बसंत मना ले सुहागिन.., ख्वाजा मोइनुद्दीन के दर आ जाती है बसंत.., और नाजो अदा से झूमना, ख्वाजा की चौखट चूमना.. जैसे बासंती कलाम पेश करेंगे. इस मुबारक मौके पर दरगाह में पीले रंग के फूलों से आकर्षक सजावट की जाएगी. दरगाह आने वाला हर शख्स पीले रंग की पोशाक और पीली पगड़ी पहने दिखाई देगा.


इस वजह से पेश किया जाता है बसंत
बताते हैं कि हजरत निजामुद्दीन औलिया की कोई संतान नहीं थी. अपनी बहन के बेटे तकीउद्दीन नूह से उनका गहरा लगाव था. बीमारी के कारण तकीउद्दीन का इंतकाल होने के बाद निजामुद्दीन उदास रहने लगे. उनके चेहरे पर खुशी लाने के लिए अमीर खुसरो ने पीले कपड़े पहनकर हाथों में पीले फूल लेकर बसंत का गीत पेश किया. उनकी पोशाक देखकर और गीत सुनकर निजामुद्दीन के चेहरे पर मुस्कान आ गई. उसी परंपरा के तहत हर साल ख्वाजा की दरगाह में बसंत पेश किया जाता है. शाही कव्वाल अमीर खुसरो के लिखे गीत गाते हुए दरगाह में बसंत पेश करते हैं. इस दौरान हर मजहब के लोग मौजूद रहते हैं. सभी मोहब्बत और अमन का संदेश देते हैं.


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