75th Independence Day: भारत देश को अंग्रेजों की हुकूमत से आजाद कराने में कई देशभक्तों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. इस साल देश स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने की खुशी में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. हर घर तिरंगा (Tiranga) लहरा रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी से पहले भी भारत देश में तिरंगा लहराया गया था. आजादी के पर्व के मौके पर आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी बता रहे हैं.


आजादी के लिए नौकरी छोड़ बने पत्रकार
यह बात 1933 की है जब राजस्थान (Rajasthan) में बीकानेर (Bikaner) के लक्ष्मीदास अथक अकाउंटेंट के ऑफिस में काम करते थे. उन दिनों कपड़ा आंदोलन जारी था. अखबार में रोजाना इस आंदोलन की खबरें छप रही थीं. सूरतगढ़ में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जा रहा था. उस वक्त अथक भी वहीं पर थे. उस आंदोलन को देखकर अथक के मन में भी आजादी की लड़ाई में भागीदार बनने का ख्याल आया. इसके लिए उन्होंने राजनीति में आने का मन बनाया. राजनीति में रूचि रखते हुए एक अखबार के दफ्तर में काम करने लगे.


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छह महीने जेल में सही यातनाएं
उस जमाने में अखबारों में आजादी को लेकर खबरें छपती थीं तो संपादकों को गिरफ्तार कर लिया जाता था. इसलिए थोड़े-थोड़े समय में संपादक बदलते रहते थे. इस बीच एक दिन लक्ष्मीदास एक राजनीतिक सम्मेलन में शामिल होने पुष्कर गए. वहां पंडित जवाहरलाल नेहरूजी ने जोशीला भाषण दिया. उनका भाषण सुनने के बाद अथक ने 26 जनवरी को ब्यावर के चौक में तिरंगा फहराने का मन बनाया. 


अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वे ब्यावर पहुंच गए. यहां नित्यानंद नागर के साथ योजना बनाई. निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए 26 जनवरी को तिरंगा लेकर ब्यावर के चौक में पहुंच गए. वहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन्हें बिना किसी सबूत और सुनवाई के जेल भेज दिया गया. वे छह महीने तक जेल में रहे और अंग्रेजों की यातनाएं सही.


ब्यावर में कई देशभक्त आए
ब्यावर शहर का इतिहास अनूठा रहा है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यहां कई सेनानी रहे. आजादी के आंदोलन में यहां कई देशभक्तों ने रातें गुजारी हैं. भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, विजय सिंह पथिक, सूबेदार वली मोहम्मद, जयनारायण व्यास ने यहां शरण ली. स्वामी विवेकानंद ने भी ब्यावर आकर देशभक्ति की ज्वाला जगाई. स्वतंत्रता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु भी ब्यावर आए थे.


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