Rajasthan Politics: जन संघ जो अब बीजेपी (BJP) है. जब कांग्रेस पार्टी देश के कौन-कौन में फैली हुई थी. उस समय जन संघ (Jana Sangh) ने शुरुआत की. राजस्थान में जनसंघ को गली-गली तक पहुंचाने का श्रेय राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत (Bhairon Singh Shekhawat ) और जनसंघ के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष भानु कुमार शास्त्री (Bhanu Kumar Shastri) को जाता है.
जब जनसंघ का झंडा जयपुर (Jaipur) पार्टी कार्यालय से उतरा गया और जनता पार्टी का चढ़ाया गया तो दोनों रो पड़े. यहीं नहीं दोनों का एक किस्सा यह भी है कि वह एक बार झील किनारे भी सोए. जानते हैं जनसंघ का झंडा उतरा तब क्या हुआ और झील किनारे क्यों सोए.
झील के किनारे बिताई रात
इन दोनों के जीवन से जुड़ी दो घटनाएं बीजेपी मीडिया प्रकोष्ठ के पूर्व सदस्य विजय प्रकाश विप्लवी ने साझा की है. उन्होंने बताया कि जनसंघ के समय भैरों सिंह शेखावत व भानु कुमार शास्त्री बस से उदयपुर से बांसवाड़ा जा रहे थे. जयसमंद के समीप बस खराब हो गई. शाम का समय था, दूसरा कोई साधन नहीं मिला. दोनों पैदल चलकर जयसमंद की पाल पर गए और रात झील की सीढियों पर बिताई. सुबह दूसरी बस मिली, तो आगे यात्रा तय की.
"यह मुझसे नहीं होगा."
आपातकाल के बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों में विपक्षी दलों का संयुक्त दल जनता पार्टी बनी. जयपुर में जनसंघ कार्यालय पर विलय की बैठक थी. वहां जनसंघ का ध्वज उतारकर जनता पार्टी का ध्वज फहराना था. भानु कुमार शास्त्री जनसंघ के प्रदेशाध्यक्ष थे. यह कार्य उन्हें ही करना था. तब उन्होंने कहा था "यह मुझसे नहीं होगा."
दोनों की आंखों में आ गए आंसू
इसके बाद भैरों सिंह शेखावत ने उनका हाथ थामा और आगे बढे़. दोनों ने मिलकर जनसंघ के ध्वज की जगह जनता पार्टी का ध्वज फहराया. जब दोनों ने एक दूसरे को देखा, तो दोनों की आंखों आंसूं थे. भानु कुमार शास्त्री ने कहा जिस झंडे को लेकर जगह जगह घूमे, आंदोलन किया, संघर्ष किया, जेल भी गए, उस पार्टी का ध्वज उतारना पडेगा, कभी सोचा नहीं था. यह कहते हुए दोनों गले मिले और दोनों ने एक दूसरे को संभाला.
भैरों सिंह शेखावत ने भी कहा था मंच से
इस संस्मरण का उल्लेख स्वयं भैरों सिंह शेखावत ने वर्ष 2002 में उपराष्ट्रपति पद पर निर्वाचन के बाद उदयपुर के सुखाडिया रंगमंच पर आयोजित नागरिक अभिनंदन में स्वयं भानु कुमार शास्त्री की मौजूदगी में किया था. दोनों जनसंघ के झंडे के लेकर प्रदेश में गांव-गांव, ढाणी-ढाणी, नगर-नगर, डगर-डगर घूमे, पार्टी का जनाधार बढाया. यह क्रम 1951 से 1977 तक चला.