Rajasthan: आखिर क्यों भजनलाल सरकार ने खत्म की आयोग और बोर्ड्स के अध्यक्ष-उपाध्यक्षों की सेवा, क्या है इसके सियासी मायने?
Rajasthan Politics: राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रदेश में बने आयोग और बोर्ड में करीब 150 अध्यक्ष और उपाध्यक्षों की सेवा समाप्त कर दी है. इसके सियासी संकेत निकाले जा रहे है.
Rajasthan Politics: राजस्थान की भजनलाल सरकार ने 150 आयोग और बोर्ड्स के अध्यक्ष-उपाध्यक्षों की सेवा खत्म कर दी है. यह निर्णय सरकार बनने के पांच दिन के अंदर ही आ गया. इसे लेकर यहां पर सियासी चर्चा तेज है. क्योंकि, अशोक गहलोत सरकार ने आयोग और बोर्ड पर बहुत काम किया था. चुनाव से कुछ महीने पहले लगातार बोर्ड के गठन का एलान किया था. यहां तक की आचार संहिता लगने से कुछ घंटे पहले भी एक बोर्ड बना दिया गया था और उसके चेयरमैन की घोषणा हो गई थी.
ऐसे में जब भाजपा की सरकार आई तो सबसे पहले इसपर आदेश जारी कर दिया गया है. श्रीकृष्णबोर्ड और वीर तेजाजी कल्याण बोर्ड की खूब चर्चा रही. समाज कल्याण बोर्ड और विप्र कल्याण बोर्ड प्रदेश का सबसे चर्चित बोर्ड रहे हैं. राजस्थान का समाज कल्याण बोर्ड भारत का अकेला बोर्ड था जो यहां पर संचालित हो रहा था. इसके लिए अशोक गहलोत ने खुद पूरी ताकत झोंक दी थी. अब नई सरकार भाजपा के युवा पदाधिकारियों और विधान सभा में हारे हुए मजबूत प्रत्याशियों को यहां पर स्थापित करने की तैयारी है.
क्या है आदेश?
प्रदेश के प्रशासनिक सुधार विभाग की संयुक्त शासन सचिव मुन्नी मीणा के आदेश में लिखा है कि राज्य एवं जिला स्तरीय समितियां, आयोग, निगम, बोर्ड या टास्क फोर्स की सेवाएं तुरंत समाप्त की जाएं. उसमें यह भी लिखा है कि जिसमें वैधानिक दृष्टि से निरस्त किया जाना संभव नहीं है, उनकी पत्रावली और नियमावली संभव नहीं है तो उनकी पत्रावलियां मुख्यमंत्री कार्यालय को तुरंत भिजवाएं.
ज्यादातर ने पहले ही इस्तीफा दे दिया
विप्र कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष रहे महेश शर्मा का कहना है कि ज्यादातर अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं. यह सरकार का फैसला है कि कौन सा बोर्ड चलेगा या नहीं. नैतिकता के आधार पर इस्तीफे पहले दिए जा चुके हैं.
सरकार बदलते ही भंग हो जाते हैं बोर्ड
राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ का कहना है कि अब सभी सरकारें अपने विचार के लोगों को प्रमुखता दे रही हैं. जबकि, जो संस्थान अच्छा काम करा रहा हो उसे आगे भी काम करने की अनुमति मिलनी चाहिए. ये नई परंपरा नहीं होनी चाहिए. वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा का कहना है कि ये तो होता रहा है. सरकार बदलते ही बोर्ड भंग हो जाते हैं. एक मामले में हाई कोर्ट में चुनौती भी दी गई लेकिन उसमें जीत नहीं मिली.