Dacoit of Chambal: बीहड़ की पहली महिला डाकू पुतलीबाई का जन्म 1926 में चम्बल नदी के किनारे मध्यप्रदेश के मुरैना के अम्बाह तहसील के बरबई गांव में हुआ था. बरबई गांव महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के लिए भी जाना जाता है. महान क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म इसी गांव में हुआ था. इसी गांव के रहने वाले नन्हे और असगरी के घर में एक लड़की ने जन्म लिया था. नाम था गौहर बानो. गरीब परिवार की गौहर बानो को परिवार चलाने के लिए नाचना- गाना पड़ता था. नाचने- गाने के पेशे से उसका नाम गौहर बानो से पुतलीबाई हो गया. 


नाचते वक्त पहुंच गया था सुल्ताना डाकू 


पुतलीबाई पैरों में घुंघरू बांध कर महफिलों को रोशन किया करती थी लेकिन महफिल रोशन करने वाली और कव्वाली और गजल गाकर लोगों का दिल बहलाने वाली गौहरबानो ने कभी सोचा नहीं होगा कि कभी उसके हाथ में बन्दूक भी होगी और वह चम्बल की खूंखार डाकू बन जाएगी. पुतलीबाई एक शादी समारोह में भाई अलादीन के तबले की थाप पर लोगों का दिल बहलाने के लिए नृत्य कर रही थी.


उसी समय वहां अपनी गैंग के साथ सुल्ताना डाकू पहुंच गया और पुतलीबाई का नृत्य देखकर उसे अपने साथ चलने को कहा. पुतलीबाई ने मना कर दिया कि वह सुल्ताना डाकू के साथ नहीं जाएगी. जानकारी के अनुसार उस वक्त सुल्ताना ने पुतलीबाई के भाई अलादीन के सीने पर बन्दूक रख दी और पुतलीबाई से कहा कि वह उसके साथ चले नहीं तो वह अलादीन को गोली मार देगा.


भाई की जान बचाने के लिए पुतली बाई को सुल्ताना डाकू के साथ जाना पड़ा


अपने भाई की जान बचाने की खातिर पुतली बाई को सुल्ताना डाकू के साथ जाना पड़ा और यही से पुतलीबाई की जिंदगी बदल गई. पुतलीबाई सुल्ताना डाकू के प्यार में हार गई और सुल्ताना डाकू को प्यार करने लगी. पुतलीबाई सुल्ताना डाकू की लूटपाट और हत्या से घबरा कर वापस अपने गांव पहुंच गई. पुतलीबाई के गांव आने की सूचना पुलिस को मिली तो पुलिस पुतलीबाई को पकड़कर थाने ले गई और उससे सुल्ताना के ठिकानों का पता और राज उगलवाने के लिए टॉर्चर किया, लेकिन पुतलीबाई ने कुछ भी नहीं बताया और पुलिस ने पुतलीबाई को छोड़ दिया. 


25 मई 1955 को मारा गया था सुल्ताना डाकू


पुतलीबाई फिर पुलिस के डर से सुल्ताना के पास चली गई. उधर, सुल्ताना ने अपने गैंग को बढ़ाने के लिए बीहड़ में ही लाखन डाकू को अपनी गैंग में शामिल कर लिया . जानकारी के अनुसार 25 मई 1955 को पुलिस ने सुल्ताना डाकू को घेर लिया और मुठभेड़ के दौरान ही सुल्ताना डाकू की मौत हो गई. पुतलीबाई का शक था कि सुल्ताना डाकू पुलिस की गोली से नहीं मरा था. गैंग के ही लाखन डाकू के इशारे पर कल्ला डकैत ने सुल्ताना को गोली मारी थी.


कल्ला डाकू को खत्म कर लिया सुल्ताना डाकू की मौत का बदला


बताया जाता है कि पुतलीबाई ने एक लड़की को जन्म दिया और पुतलीबाई बेटी से मिलने धौलपुर के रजई गांव में गई थी तो पुलिस से मुठभेड़ हो गई, जहां पुतलीबाई ने सरेंडर करते हुए खुद को पुलिस के हवाले कर दिया. कुछ समय बाद पुतलीबाई की जमानत हो गई. जेल से बाहर आने के बाद पुतलीबाई पुलिस की नजरों से बचकर फिर बीहड़ में गैंग में पहुँच गई और गैंग में मुठभेड़ के दौरान कल्ला डाकू को खत्म कर उसने सुल्ताना डाकू की मौत का बदला लिया.


एक हाथ खोकर भी सटीक निशाना लगाती थी पुतली बाई


पुतलीबाई अब सुल्ताना डाकू की गैंग की सरदार बन गई. पुतलीबाई अब बन्दूक की नोंक पर लूटपाट और डकैती को अंजाम देने लगी. पुतलीबाई जिस घर में भी डकैती डालने जाती थी वहां पर जो भी मिलता उसकी हत्या कर देती थी और महिलाओं के कान के कुण्डल और बालियों को लूटने के लिए उनके कान तक उखाड़ देती थी. चम्बल के बीहड़ में पुतलीबाई का आतंक था.1957 में पुतलीबाई ने कई जगह लूट और हत्याओं की वारदातों को अंजाम दिया और कई जगह पुलिस से मुठभेड़ भी हुई.


पुलिस मुठभेड़ में पुतलीबाई के हाथ में गोली लगी और उसे अपना एक हाथ हमेशा के लिए खोना पड़ा. लेकिन पुतलीबाई एक हाथ से बन्दूक चलाकर सटीक निशाना लगाती थी और 15-20 पुलिस वाले उसके सामने टिक नहीं पाते थे. सुल्ताना की मौत के बाद कई अन्य डकैतों ने उसे शादी केने को कहा लेकिन वह सुल्ताना की बनकर रहना चाहती थी.  


23 जनवरी 1958 को हुआ था पुतलीबाई के आतंक का अंत


 गौरतलब है की 23 जनवरी 1958 के दिन पुलिस की टीम मध्यप्रदेश के मुरैना में डाकू लाखन सिंह से मुठभेड़ की तैयारी कर रही थी. तभी पुतलीबाई वहां पहुंच गई और डाकुओं के वहां पहुंचते ही पुलिस की मुठभेड़ शुरू हो गई. पुलिस मुठभेड़ में 32 वर्षीय पुतलीबाई के आतंक का अंत हो गया. पुलिस की गोली से पुतलीबाई की मौत हो गई. 


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