Bharatpur Muharram Juloos: राजस्थान के भरतपुर जिले में भी मातमी धुनों के साथ शहर के प्रमुख स्थान कुम्हेर गेट, वसन दरवाजा, पाई बाग, मछली मौहल्ला, गोपाल गढ़, ईदगाह कॉलोनी मोरी चारबाग सहित दर्जनों स्थान से ताजिया निकाले गए. ताजिये मुख्य बाजारों से होते हुए ईदगाह पर जाकर सम्पन्न होंगे जिन्हे कर्बला में दफ़न किया जाएगा.
मुस्लिम समाज के युवा ढोल पीट कर प्रदर्शन कर रहे थे. इस जुलूस में मुस्लिम समाज की महिलाएं, युवाओं और बुजुर्गों द्वारा ताजिये में शामिल लोगों के लिये जगह-जगह मीठे पानी की प्याऊ, फल वितरण, खीर, खिचड़ी, आइसक्रीम, शिकंजी, बिस्कुट के पैकेट वितरण की व्यवस्था की गई.
ताजिये के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के कड़े प्रबंध किये गए है. पुलिस विभाग द्वारा लाइन से अतिरिक्त जाप्ता सहित आरएसी के जवानों को भी लगाया गया है. ताजिये के दौरान अतिरिक्त जिला कलेक्टर (शहर) श्वेता यादव और पुलिस के एएसपी नीतिराज सिंह, सीओ सुनील प्रसाद सभी थानाधिकारी जाब्ते के साथ मौजूद रहे.
कैसे मनाया जाता है मोहर्रम
मुहर्रम गम और मातम का महीना माना जाता है मुहर्रम इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है मुहर्रम इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत का महीना है. मुहर्रम बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता है. मुहर्रम के 10 वें दिन यानि आशूरा के दिन ताजियादारी की जाती है. इमाम हुसैन की इराक में दरगाह है उसकी नकल की हूबहू ताजिया बनाई जाती है मोहर्रम का चाँद निकलने की पहली तारीख को ताजिया रखते है इमाम हुसैन की याद में ताजिया और जुलूस निकलते है.
इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मुहर्रम के 10 वे दिन कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे. उनकी शहादत और कुर्बानी के तौर पर इस दिन को याद किया जाता है. मुहर्रम के मौके पर चांद रात से ही धार्मिक रसुमात शुरू हो गईं है इस माह में हज़रत इमाम हुसैन ओर उनके एहले खानदान की शहादत हुई थी.
इस्लाम को बचाने के लिए हजरत इमाम हुसैन ने यजीद से जंग की थी. जंग में हुसैन का सारा खानदान शहीद हो गया. उन्हीं की याद में मुहर्रम में यह सभी रस्मे अदा की जाती हैं. इमाम हुसैन की याद में मनाया जाने वाले मोहर्रम को लेकर आज कई स्थानों से मातमी धुनों के साथ ताजिये निकाले गए.
कौन थे हजरत इमाम हुसैन
जानकारी के अनुसार हजरत इमाम हुसैन पैगम्बर हजरत मोहम्मद के नवासे थे इमाम हुसैन के पिता का नाम शेरे खुदा अली था जो पैगम्बर मुहम्मद के दामाद थे इमाम की माँ फातिमा थी. हजरत अली मुसलमानो के धार्मिक -सामाजिक और राजनीतिक मुखिया थे. उन्हें खलीफा बनाया गया था.
हजरत अली की मौत के बाद लोग इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे लेकिन हजरत अमीर मुआविया ने खिलाफत कब्जा कर लिया मुआविया के बाद मुआविया के बेटे यजीद ने खिलाफत को अपना लिया यजीद क्रूर शासक था और उसे इमाम हुसैन का डर था. इंसानियत बचाने के लिये यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन ने कर्बला की जंग लड़ी और शहीद हो गए.
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