Rajasthan News: राजस्थान में स्थित भरतपुर जिले के वैर उपखण्ड के उमरेड गांव, बयाना उपखण्ड के खरेरी, बागरैन और खान खेड़ा में सैकड़ों वर्षों से लगातार पान की खेती की जाती है. यहां पान की खेती अक्सर तमोली जाती के लोग ही करते आए हैं. भरतपुर के पान की खासियत यह है कि जब इस पान को खाया जाता है तो यह पान मुंह में चबाते समय ही घुल जाता है.


दरअसल, राजस्थान में कुछ ही जगहों पर पान की खेती की जाती रही है. जो आज भी हो रही है. उनमे भरतपुर के वैर उपखण्ड के उमरेड गांव, बयाना उपखण्ड खरेरी, बागरैन, खान खेड़ा और करौली जिले में मासलपुर में आज भी पान की खेती की जाती है. जानकारी के मुताविक पान की खेती सिर्फ तमोली जाती के लोग ही करते आए हैं और आज भी कर रहे हैं लेकिन, आज पान की खेती में लागत ज्यादा आने और बरसात और पानी की कमी के कारण लोगों का गांव से पालयन हो रहा है, क्योंकि पान की खेती पानी के अभाव में काफी महंगी पड़ती है, इसलिए रोजगार के लिए इस जाती के लोग अन्य जगहों पर रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं.


कैसे होती है खेती
पान की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि पान की पौध को मार्च महीने में रोपा जाता है. जो अक्टूबर या नवंबर तक चलती है. इस दौरान पान की पौधे की बेल करीब 7 फ़ीट तक ऊंची हो जाती है. जिसमें करीब 45 पान के पत्ते लगते हैं. पान की खेती के लिए पहले पौध लगाईं जाती हैं, फिर हर पौध के पास घास के डंडे खड़े किए जाते हैं और फिर ऊपर लकड़ी और घास फूस की छत्त तैयार की जाती है. जिससे ज्यादा धूप,ज्यादा बरसात, ओलों से पान की पौध का बचाव किया जा सके. पौधे में पानी देने के लिए किसान को मिट्टी के मटके में पानी भरकर अपने कंधे पर रखकर इस तरीके से पानी डालते हैं जिससे पौध को नुकसान नहीं हो.


पान की खेती तैयार करने के लिए उसमें खाद का उपयोग भी समय पर करना जरूरी होता है और इस खाद को दूध, दही, आटा, बेसन, पानी, सरसों की खल से तैयार किया जाता है. जिसके उपयोग से पान स्वादिष्ट और पौष्टिक बनता है और इससे पान की पौधे में वृध्दि होती है. देशी तरीके से तैयार किए जाने वाला यह पान भी देशी होता है और जब इस पान को खाया जाता है तो यह पान मुंह में चबाते समय घुल जाता है.




किसानों को होता है हर साल डेढ़ लाख की आमदनी
किसानों के मुताबिक एक बार तैयार किया गया पान का पौधा करीब 3 से 4 साल तक चलता है और उसके बाद फिर से नया पौधा तैयार किया जाता है. पौधा तैयार करने के लिए कोई बीज नहीं होता है. बल्कि पत्ते की डंढल से ही नया पौधा तैयार किया जाता है. पहली बार पौध तैयार करने में करीब 1.50 लाख रुपये की लागत आती है. जिसे करीब तीन से चार साल तक यह खेती किसान को हर साल एक से डेढ़ लाख रुपये आमदनी देती है .


एक रुपये में बिकता है पान
यहां से पैदा होने वाला पान ज्यादातर आगरा, दिल्ली, मेरठ, अलीगढ़, सहारनपुर जाता है और वहां से पाकिस्तान को भी यही पान भेजा जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि यहां पैदा होने वाले देशी पान की मांग पाकिस्तान भी काफी ज्यादा है. एक पान का पत्ता एक रुपये का बेचा जाता है. इस हिसाब से प्रति 100 पान के पत्तों की कीमत 100 से 150 रुपये तक किसानों को मिल जाती है. पान की खेती तैयार करने में किसानों के परिवार की महिला, बच्चे भी अपनी पूरी भागीदारी निभाते है.


पान की खेती करने वाले किसानो ने क्या कहा?
पान की खेती करने वाले वाले किसानों ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि बरसात के अभाव या ओलाबृष्टि के कारण पान की खेती नष्ट हो जाती है और इस खेती के लिए बरसात का पानी बेहद फायदेमंद होता है. यहां हमेशा ही बरसात का अभाव रहता है और अन्य जगहों से किसानों के लिए पानी आपूर्ति की सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है. जिससे पान की खेती करना अब बेहद मुश्किल होता जा रहा है. कहा जाता है कि पहले इस उमरेड गांव में सिर्फ तमोली जाति के लोग ही रहते थे, जो पान की खेती करते थे, लेकिन पानी के अभाव के चलते अब यहां से तमोली जाति के लोगों का पलायन होना शुरू हो गया है और अब यहां महज कुछ ही परिवार रह गए हैं.


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