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Rajasthan: भीलवाड़ा में 11 बैलगाड़ियों के साथ अनूठे अंदाज में भात लेकर बहन के घर पहुंचे दो भाई, लोग हुए हैरान
भीलवाड़ा: राजस्थान के भीलवाड़ा में दो भाई अपने बहन के घर अनोखे अंदाज में मायरा लेकर पहुंचे. उनके इस अंदाज को देखकर लोगों को उस समय की याद आ गई जब लोग बैलगाड़ी पर सफर किया करते थे.
भीलवाड़ा: राजस्थान में इन दिनों शादियों का दौर चल रहा है. जिसमें हर जगह अलग-अलग रीति रिवाज या अनोखे ढंग से शादी के समारोह किये जा रहे हैं. लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा में दो भाई अपने बहन के घर अनोखे अंदाज में मायरा लेकर पहुंचे. उनके इस अंदाज को देखकर लोगों को सालों पुरानी परंपरा याद आ गई जब लोग बैलगाड़ी पर आया जाया करते थे. ये दो भाई जब परिवार के 65 लोगों के साथ 11 बैलगाड़ियों पर निकले तो हर कोई उन्हें देखकर हैरान रह गया.
बैलगाड़ियों पर सवार होकर पहुंचे भाई
भीलवाड़ा जिले के कोटड़ी कस्बे में ये परंपरा दिखाई दी. हुआ ये कि शुक्रवार को रीठ निवासी भगवान लाल व महावीर सेन की बड़ी बहन बाली देवी के घर शादी थी. इस शादी में भात भरने के लिए ही दोनों भाईयों ने ये अनोखा तरीका अपनाया. उन्होंने सिर पर केसरिया पगड़ी बांधी और परिवार के 65 सदस्यों के साथ 11 बैलगाड़ियों पर सवार होकर निकल गए. सारी बैलगाड़ियों को पारंपरिक तरीके से ही सजाया गया था. इन बैलगाड़ियों के आगे डीजे साउंड, बैंड बाजा व मंसूरी ढोल के साथ रुनझुन करती सजी-धजी बैलगाड़ियां चल रही है. बैलों के गले में ऐसे घंटियां बांधी गई थी जैसे किसी देवालय में सांध्यकाल की आरती हो रही हो.
इस अनोखे अंदाज को देखने के लिए उमड़ी भीड़
ये दोनों भाई जब बाजार और गलियों से इस अंदाज में निकले तो उन्हें देखने के लिए भारी संख्या में भीड़ उमड़ पड़ी. कई लोगों ने तो बैलों को गुड़ और फल खिलाए. बैल गाड़ियों में आए अनूठे मायरे को देख लोगों के मन में 40-50 साल पहले की पुराने दौर की यादें ताजा हो गईं. केसरिया पगड़ी पहन कर भात भरने आए दोनों भाई जब बहन के घर पहुंचे तो पूरे परिवार ने बड़े प्यार से उनका स्वागत किया और परिवार के लोगों के साथ सभी बैलों को भी फूलों की माला पहनाई.
लोगों को आई पुराने दिनों की याद
इस अनोखे अंदाज के बारे में बात करते हुए वेदाचार्य विष्णु शर्मा ने बताया कि मांगलिक पर्व पर गोवंश की मौजूदगी सनातन धर्म की गौरवशाली परंपरा का अंग है. इधर युवाओं में इस अनूठे नजारे को कैमरों में कैद करने की होड़ थी. बुजुर्गों ने इस रिवाज को पारंपारिक बताया.
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