Right to Information: बीकानेर (Bikaner) के एक मामले में मेडिकल विभाग की लापरवाही पर राजस्थान (Rajasthan) राज्य सूचना आयोग ने नाराजगी जताई है. भविष्य में ऐसा नहीं हो. इसके लिए आयोग के आयुक्त ने आदेश दिया कि यदि मरीज या तीमारदार अस्पताल में हुए इलाज की जानकारी मांगता है. तो उसे 72 घंटे के भीतर यह जानकारी उपलब्ध करवाई जाए. यह आदेश प्रदेश के निजी अस्पतालों पर भी लागू होगा. आदेश का पालना करवाने की जिम्मेदारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) की होगी.


पीड़ित पिता ने लगाई थी गुहार


पीड़ित त्रिलोकचंद ने राज्य सूचना आयोग को बताया था कि पुत्र अजय की उपचार के दौरान मृत्यु हो गई थी. नवंबर 2019 में इलाज के कागजात मांगे, लेकिन निजी अस्पताल ने रोगी शैया टिकट देने से इंकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने जयपुर पहुंचकर राज्य सूचना आयोग में गुहार लगाई. आयोग ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए बीकानेर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) को आदेश दिया है कि पिता को अपने दिवंगत पुत्र के प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के डॉक्यूमेंट दिलाए जाएं.


आयोग की सीएमएचओ के लिए टिप्पणी


राज्य सूचना आयोग में आयुक्त नारायण बारेठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय समाज में एक पिता के कंधों पर पुत्र का शव उठाने का दु:ख सबसे बड़ा दु:ख माना जाता है. लोक सूचना अधिकारी के रूप में सीएमएचओ महज पोस्टमैन नहीं है. खेदजनक है कि एक पिता ने अपने दिवंगत पुत्र के इलाज के दस्तावेज पाने के लिए दो साल से अधिक समय तक इंतजार किया. सूचना के लिए यह आवेदन कागज पर लिखी एक इबारत नहीं है. इसमें एक आहत पिता के मन की पीड़ा लिखी है. विडंबना है कि किसी व्यक्ति को अपने दिवंगत पुत्र के उपचार संबंधी दस्तावेजों के लिए जयपुर तक आना पड़ा. आयोग ने सीएमएचओ को हिदायत दी कि आवेदक त्रिलोक चंद को तत्काल सूचना उपलब्ध करवाई जाए. इस मामले में कोई लापरवाही नहीं बरती जाए.


बॉम्बे और केरल हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला


सूचना आयुक्त बारेठ ने स्वास्थ्य अधिकारी की कार्यशैली पर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि सीएमएचओ को उसे उपलब्ध कानूनी शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए था. ऐसे मामले में मेडिकल कौंसिल एक्ट की पालना की जानी चाहिए. आयोग ने अपने आदेश में मेडिकल कौंसिल के नियमों का हवाला देकर कहा कि ऐसे मामलों में 72 घंटे के भीतर सूचना उपलब्ध करवाई जाए. आयोग ने बॉम्बे हाईकोर्ट और केरल हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए मेडिकल प्रशासन को सूचना उपलब्ध कराने के निर्देश दिए.


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