Bundi District: छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध है बूंदी, धार्मिक स्थल पेश करते हैं गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल
Bundi District History: शहर में एक ही जगह पर मस्जिद, गुरुद्वारा, मंदिर हैं. बूंदी जिला रामेश्वर नाम से राजस्थान भर में प्रसिद्ध है. हरियाली के बीचोंबीच पहाड़ी पर प्रदेश की पहली दरगाह है.
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Bundi District History: राजस्थान का बूंदी जिला गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है. बूंदी जिले को छोटी काशी भी कहा जाता है. पग पग पर मंदिर मस्जिद होने की वजह से बूंदी का नाम छोटी काशी पड़ा. धार्मिक स्थलों का इतिहास बहुत पुराना है. श्रद्धालुओं की भीड़ साल भर उमड़ती है. पर्यटक भी धार्मिक स्थलों का दर्शन किए बिना नहीं जाते. प्रमुख मंदिरों में रामेश्वर महादेव, भीमलत महादेव, राव भाव सिंह मंदिर, चारभुजा नाथ, चौथ माता, बिजासन माता हैं. बूंदी में अरावली पर्वत माला पर दरगाह बाबा मीरा साहब बड़ी दरगाह के नाम से मशहूर है. शहर में बायपास रोड के पास एक ही जगह पर मस्जिद, गुरुद्वारा, मंदिर है. मदीना मस्जिद, गुरुग्रन्थ साहिब गुरुद्वारा, गुर्जर समुदाय के भगवान देवनारायण, मीणा समाज के मत्स्य मंदिर यानी मीन भगवान का मंदिर है.
प्राकृतिक स्थल रामेश्वर महादेव
बूंदी जिला रामेश्वर नाम से राजस्थान भर में प्रसिद्ध है. शहर से 17 किलोमीटर दूर आकोदा गांव में रामेश्वर महादेव मंदिर पहाड़ी पर स्थित है. मंदिर प्राकृतिक रूप से बना हुआ है. मंदिर के पास एक विशाल झरना निकलता है. पहाड़ी पर रामेश्वर महादेव का मंदिर गुफा नुमा बना हुआ है. छोटी सी गुफा में महादेव विराजमान हैं. रामेश्वर महादेव के शिवलिंग की खास बात है कि चट्टानों से उतरा हुआ है और कभी भी शिवलिंग सूखा नहीं रहता. पहाड़ों से पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है और अभिषेक होता रहता है. रामेश्वर महादेव मंदिर की 108 सीढ़ियां चढ़ने के बाद भोलेनाथ का दर्शन किया जाता है. हरी भरी वादियों के बीचोंबीच, अरावली पर्वत माला की सरंचना मानो खुद भोलेनाथ की प्रतिमा का श्रृंगार कर रही हो. पहाड़ी के खोल में प्राकतिक गाय माता के स्तन को छूकर श्रदालु मां का आशीर्वाद लेते हैं.
भीमलत महादेव, प्राकृतिक झरना
प्रकृति की भव्यता और प्राकृतिक सुंदरता में स्थापित भीमलत महादेव मंदिर बूंदी जिले का आकर्षण है. बताया जाता है कि पांच पांडव वनवास के दौरान यहां आए थे. इस स्थल पर बने शिवालय में महादेव का अभिषेक प्रकृति करती है. पहाड़ से बारह माह निकलने वाले पानी से महादेव का जलाभिषेक होता है. मानसून में सैलानियों का जमघट लगा रहता है. जलप्रपात की ऊंचाई 150 फीट और क्षेत्रफल 6 किमी की विशालता विस्मयकारी है. बताया जाता है कि भीमलत महादेव और झरने के पीछे एक अनोखी कहानी है. भीमलत यानी भीम द्वारा लात मारना. मान्यताओं के आधार पर समझा जाता है कि प्राचीन समय में भीम अपनी सेना के साथ यहां से निकला था. तभी उसने अपनी लात मारी थी जिससे बड़ा विशाल गड्ढा हो गया. जिसमें आज विशाल झरना गिरता है.
न्याय के देवता राव राजा भाव सिंह
बूंदी का इतिहास भावना श्रंगार, प्रकृति ,स्थापत्य, चित्र ,साहित्य में ही नहीं है बल्कि के शासकों ने न्याय प्रियता में भी अपना स्थान बनाया. इसलिए भगवान की तरह पूजे जाने लगे. हम बात कर रहे हैं राव राजा राव भाव सिंह की. 1658 से 1681 तक दयालु व जनहित भावनाओं के कारण अत्यधिक जनप्रिय थे. उनकी मौत के बाद पुरानी कोतवाली परिसर में मंदिर बनाया गया. इतिहास के अनुसार राव भाव सिंह बतौर न्याय देवता माने जाते हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में किसी के साथ अन्याय नहीं होने दिया. खास बात है कि राव भाव सिंह को बूंदी पुलिस भी न्याय का देवता मानती है. जिले के कई थानों में आज भी उनकी पूजा की जाती है और कोई बड़ा अपराध होने पर पुलिस वाले मंदिर में जाकर जल्द ही खुलासा करने की मनोकामना करते हैं.
चारभुजा नाथ मंदिर में आते थे राजा
चारभुजा नाथ मंदिर शहर के तिलक चौक पर स्थित है. मंदिर समिति से जुड़े पुरुषोत्तम पारीक ने बताया कि मंदिर निर्माण स्थानीय शासकों ने करवाया गया था. राजा खुद मंगला आरती करने के लिए चारभुजा नाथ मंदिर में आते थे. राजा के आने से पहले मंदिर का पूरा मार्ग चंदन के पानी से धोया जाता था. मंगला आरती होने के बाद राजा लड्डू श्रद्धालुओं को वितरित करते थे. मंदिर में हर वर्ष फाग उत्सव के दौरान श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या आती है.
बाणगंगा रोड स्थित पहाड़ी पर चौथ माता का विशाल मंदिर है. हर वर्ष तिल चौथ पर लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं. चौथ माता मंदिर के अध्यक्ष गोपाल गुर्जर ने बताया कई साल पहले सवाई माधोपुर के बरवाड़ा से चौथ माता का एक प्रतिरूप बूंदी के राजा लेकर आए थे. बाणगंगा की पहाड़ी पर माता का मंदिर बनवाकर बूंदी के शासकों ने कुल देवी माना था. तभी से ही चौथ माता के कई चमत्कार देखे जाने का दावा किया जा रहा और हर साल माता के मेला पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंच जाते हैं.
बिजासन माता मंदिर जिले के इंदरगढ़ में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है. इतिहास की मानें तो मंदिर का निर्माण शासक राव शत्रुसाल के छोटे भाई इंद्रसाल ने अपने नाम पर किया था. बिजासन माता मंदिर इंदरगढ़ में एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है. इसका अपना ही अलग धार्मिक महत्व है. मंदिर पवित्र माना जाता है. दूर-दूर से भक्त मनोकामना के लिए आते हैं. भक्त पुत्र प्राप्ति के लिए और नवविवाहित जोड़े वैवाहिक जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की मनोकामना करते हैं. बिजासन माता मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित है. इसलिए भक्तों को मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 से 800 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.
राजस्थान की पहली दरगाह
शहर में अरावली पर्वत माला पर स्थित हजरत मीरा चहलतन (बाबा मीरा साहब) की दरगाह है. मीरा चहलतन को मीरा साहब के नाम पर भी जानते हैं. दरगाह पर जाने के लिए दो रास्ते हैं- पैदल और वाहन . जानकारों का कहना है कि हरियाली के बीचोंबीच पहाड़ी पर स्थित राजस्थान की पहली दरगाह है. दरगाह में कई इमारतें और मजार सदियों पूर्व के बने हुए हैं. बाबा मीरा साहब की दरगाह में लगभग 45 छोटी मजार भी करिश्माई से कम नहीं हैं.
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जानकार बताते हैं कि 45 मजारों को क्रम वाइज गिनने पर संख्या बढ़ती गठती रहती है. आज तक कभी साफ नही हो पाया है कि मजार 45 है या फिर 46. जायरीन दरग़ाह पर अकीदत के फूल पेश कर दुआ मांगते हैं. बाबा मीरा साहब का उर्स प्रति वर्ष ईदुल फितर के दिन होता है. उर्स बड़ी धूमधाम और शानो शौकत से मनाया जाता है. बाबा के चाहने वाले बूंदी से बाहर और विदेशों में में भी हैं. पहाड़ी के सड़क मार्ग से उतरते समय रास्ते में बाबा मीरा साहब के छोटे भाई हजरत बाबा दूल्हे साहब की दरगाह भी मौजूद है.
इस दरगाह पर भी हजारों की संख्या में जायरीन पहुंच कर दुआ करते हैं. बाईपास रोड के किनारे बने मंदिर मस्जिद आपसी भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं. पहले मदीना मस्जिद की दो विशाल मीनारें हैं. पास में गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारा बना हुआ है. इससे सटे देवनारायण भगवान मंदिर और मीन भगवान मंदिर भी बना हुआ है. इन धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालु रोज दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.
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