Azadi Ka Amrit Mahotsav: बूंदी के इस स्वतंत्रता सेनानी ने अंग्रेजों के सामने निकाली थी तिरंगा यात्रा, सीने पर खाई गोली लेकिन नहीं छोड़ा राष्ट्रीय ध्वज
अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानी शहीद राम कल्याण शर्मा के सीने पर गोलियां दाग दीं. गोलियां चलती रही लेकिन शहीद राम कल्याण शर्मा ने तिरंगा झंडा अपने हाथ से नहीं छोड़ा.
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Azadi Ka Amrit Mahotsav: देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. पूरे देश भर में अमृत महोत्सव को लेकर उत्साह है जोर शोर से तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है. लेकिन हम बूंदी के ऐसे क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी की कहानी आपको बताने जा रहे हैं जिसने अपने वतन को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों के सामने तिरंगा यात्रा निकाली. अंग्रेजों ने अंधाधुंध फायरिंग की तो तिरंगा यात्रा में भगदड़ मच गई. यात्रा में शामिल लोग पेड़ पर चढ़ गए. लेकिन इस स्वतंत्रता सेनानी ने तिरंगा नहीं छोड़ा और अंग्रेजों की सेना के सामने जमीन पर बैठकर तिरंगा हाथों में लेकर भारत माता की जय के नारे लगाने लगे. अंग्रेजों ने कहा कि यह तिरंगा छोड़ दो हमारा झंडा हाथ में ले लो. लेकिन इस बूंदी के लाल ने तिरंगे झंडे को नहीं छोड़ा और अपने वतन के लिए कुर्बान हो गए.
अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानी शहीद राम कल्याण शर्मा के सीने पर गोलियां दाग दीं. गोलियां चलती रही लेकिन शहीद राम कल्याण शर्मा ने तिरंगा झंडा अपने हाथ से नहीं छोड़ा. शहीद राम कल्याण को आज बूंदी की धरती नमन करती है. जहां वह शहीद हुए उस जगह पर शासन प्रशासन ने उनका स्मारक बनवा दिया. उनकी मूर्ति लगाकर उन्हें याद किए जाने लगा उनके स्मारक से सटे रोड का नाम भी शहीद राम कल्याण मार्ग रखा गया है.
बूंदी में हुआ था जन्म
शहीद राम कल्याण शर्मा का जन्मदिन सन 1912 में बूंदी शहर में हुआ था. पिता बजरंग लाल शर्मा राज महलों में खाना बनाना का काम करते थे. स्वतंत्रता सेनानी राम कल्याण शर्मा मेहनत मजदूरी करते हुए स्वयं पढ़ाई की तथा तत्कालीन वकीलों के पास मुंशी का काम करते हुए ही वकील बन गए. वकील बनने के बाद उनका विवाह भंवरी बाई से हुआ. जिनसे दो संताने हुई. शहीद राम कल्याण बूंदी प्रजा मंडल के अध्यक्ष और बूंदी नगर पालिका कमेटी में उपाध्यक्ष के पद पर निर्वाचित अध्यक्ष थे.
चट्टान बनकर खड़े रहे राम कल्याण
शहीद राम कल्याण शर्मा के परिजन बताते हैं कि शहीद राम कल्याण 11 अगस्त 1947 को अपनी तांगे से सुबह करीब नौ बजे घर से हिंडोली कोर्ट के लिए निकले थे. अपनी दोनों पुत्रियों को विद्यालय छोड़कर बूंदी के नाहर का चोहट्टा स्थान तक पहुंचे तो किसी ने संदेश दिया कि आज के मोटर व्यवसाय एसोसिएशन के आंदोलन के जुलूस के नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है. तो उन्होंने तुरंत निर्णय लेते हुए तांगे वाले को वापस लौटा दिया और खुद पैदल जुलूस का नेतृत्व करने के लिए निकल गए.
तत्कालीन अंग्रेज प्रशासन द्वारा शहर के परकोटे में धारा 144 लगा रखी थी. इसलिए जुलूस शहर के परकोटे के बाहर निकालने का निश्चय हुआ था. लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने पर वहां भी अंग्रेज पुलिस द्वारा जुलूस को रोक दिया गया. शहीद रामकल्याण शर्मा जुलूस में देश का झंडा था में सबसे आगे चल रहे थे. पुलिस द्वारा उनका भी रास्ता रोक लिया गया. वह स्थान वर्तमान में बूंदी के खोजा गेट स्कूल के पास खेल संकुल के दरवाजे के सामने स्थित था. उस समय वहां पर बड़ी संख्या में इम्लियो के पेड़ हुआ करते थे.
पुलिस द्वारा जुलूस रोकने के बाद जुलूस में शामिल लोगो पर हवाई फायरिंग करने से मची भगदड़ से लोग पेड़ों पर चढ़ गए और शहीद रामकल्याण शर्मा झंडे को लिए कुछ लोगों के साथ वही रहे ओर तिंरगा लेकर जमीन पर बैठ गए. अंग्रेजो द्वारा उनसे जुलूस बंद करने, झंडे को छोड़कर परिवार की दुहाई देते हुए चेतावनी दी और चले जाने को कहा. लेकिन राम कल्याण ने भारतीय तिरंगे को नहीं छोड़ा कई चेतावनी के बाद पुलिस द्वारा हवाई फायर किए गए जिससे आसपास बैठे और जुलूस के कुछ लोग और तितर-बितर हो गए. लेकिन शहीद रामकल्याण शर्मा जीवन की परवाह किए बगैर डटे रहे.
आखिर में पुलिस द्वारा उन पर गोली चला दी गई और वह तिरंगे को सीने से लगाए धरती पर गिर पड़े. देखते ही देखते सारी भीड़ तीतर भीतर हो गई. उन्हें अस्पताल ले जाया गया. लेकिन बचाया नहीं जा सका और आजादी के दिवस से महज 4 दिन पूर्व उन्होंने तिरंगे की शान में अपना बलिदान दे दिया.
नहीं मिला शहीद का दर्जा
शहीद के परिजन सौभाग्य शर्मा बताते है कि शहीद राम कल्याण शर्मा द्वारा तत्कालीन नेताओं के भूमिगत हो जाने के बाद निकलने वाले जुलूस का उन नेताओं के स्थान पर नेतृत्व किया गया और वह नेता देश व प्रदेश के अनेक पदों पर रहे. परंतु विडंबना है कि शहीद रामकल्याण शर्मा को स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी शहीद स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल सका. कई बार इस बात को राज्य सरकार केंद्र सरकार विधानसभा में उठाया गया. लेकिन अंग्रेजी भाषा की जबान में उन्हें लूटेरा बताकर इस मांग को खारिज कर दिया गया.
अपने प्राण न्योछावर करने के बाद भी उनके परिवार को कभी भी शहीद स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों की पेंशन नहीं मिली. उन्हें केवल जीवन यापन करने के लिए पेंशन ही मिल सकी. नाही आज दिन तक मांग उठाने पर भी उनके नाम पर बूंदी शहर में कोई राजकीय भवन का नामकरण नहीं किया गया.
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