Rajasthan News: राजस्थान में इस वर्ष का स्कूलों में प्रवेश पूरा होने के साथ स्कूलों में क्लास से लगनी शुरू हो गई है. राज्य सरकार ने प्रदेशभर में महात्मा गांधी इंग्लिश स्कूल खोल तो दिए पर नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी के बच्चों के लिए दो साल बाद भी न किताबें आईं और न ड्रेस कोड तय हुआ. इधर बूंदी जिले में अंग्रेजी मीडियम के 18 स्कूल हैं. हालांकि एलकेजी, यूकेजी और नर्सरी के स्कूल शहर में ही है. स्कूलों में अबतक कई कक्षाओं की किताबें नहीं पहुंची हैं. वर्ष 2019-20 में जिले का पहला महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यमिक स्कूल बालचंदपाड़ा क्षेत्र में शुरू हुआ था जिसमे 695 बच्चों में से 320 छात्राएं हैं.


पढ़ने के लिए किताबें नहीं
बच्चों के किताबों की डिमांड सरकार को भेजी गई है. प्रारंभिक कक्षाओं का सिलेबस फाइनल नहीं हुआ है. यही हालत पूरे जिले के महात्मा गांधी अंग्रेजी मीडियम स्कूलों का है. छात्र राहुल ने बताया कि हम स्कूल में रोज पढ़ने के लिए आ रहे हैं लेकिन हमारे पास सिलेबस की कोई किताबें नहीं है तो हम कैसे पढ़ें. हमें सर जैसे-तैसे पढ़ा रहे हैं जबकि उर्दू की छात्रा सारा अली ने कहा कि स्कूल में उर्दू की किताबें नहीं आईं हैं और कोई पढ़ाने वाला भी नहीं है. 


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प्रिंसिपल ने क्या बताया
महात्मा गांधी अंग्रेजी मीडियम स्कूल की प्रिंसिपल अनीता चौहान ने बताया कि, प्रारंभिक कक्षाओं का सिलेबस अभी फाइनल नहीं होने से न किताबें आईं हैं, न स्कूल ड्रेस तय हुई. उन्होंने कहा कि अभी तक किताबें नहीं आने से हम पुराने वर्ष की किताबों से ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं और कक्षाएं चल रही हैं. एडमिशन पूरे हो चुके हैं और बच्चे बड़ी संख्या में अध्ययन करने के लिए पहुंच रहे हैं. पिछले वर्ष तो किताबें आ गईं थी लेकिन इस बार किताबें आने में देरी हो रही है. हालांकि इन बच्चों का रिकॉर्ड शाला दर्पण पर भी नहीं चढ़ा. बच्चों का सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है. 11वीं में अंग्रेजी को छोड़ किसी भी विषय की किताब नहीं आई है. अन्य कक्षाओं की भी कई विषयों की किताबें नहीं आईं हैं. कक्ष और पर्याप्त स्टाफ नहीं होने से डबल सेक्शन में बच्चों को नहीं बैठा पा रहे हैं. उच्चाधिकारियों को डिमांड भेजी गई है. नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी की सभी कक्षाओं में 25-25 बच्चे हैं. 


अभिभावक प्राइवेट स्कूल में भेज रहे
अभिभावक कृष्ण कुमार ने बताया कि, उन्होंने नर्सरी में बच्चे का एडमिशन कराया था. 2 साल बीतने को आ गए लेकिन अभी तक किताबें नहीं आईं. बड़ी उम्मीद से बच्चे का स्कूल में एडमिशन करवाया था. अब चिंता सताने लगी है कि बच्चे के पास किताबें नहीं है तो वह कैसे पढ़ेगा. इसी तरह अन्य अभिभावकों के भी ऐसे ही हालात हैं जबकि स्कूल में उनके कई परिचितों ने तो टीसी कटवा कर दूसरे स्कूलों में एडमिशन करा दिए हैं. इन स्कूलों में बच्चे सालभर बिना किताबों के पढ़ लिए और जो बच्चे नर्सरी में थे वे एलकेजी में और एलकेजी के बच्चे यूकेजी में पहुंच गए. बच्चे विदाउट यूनिफॉर्म स्कूल आ रहे हैं. स्टाफ काफी कम है. इस स्कूल में इस सत्र से 11वीं क्लास शुरू हो गई, जिसमें बायोलॉजी और मैथ्स सब्जेक्ट है. बायोलॉजी, मैथ्स, फिजिक्स, केमेस्ट्री की किताबें नहीं आई हैं. अंग्रेजी की किताब पुरानी आई थीं. पूरी किताबें नहीं आई हैं.


क्लासरूम सुंदर पर किताबें नही
इन स्कूलों के क्लासरूम बहुत सुंदर हैं. दीवारों पर अंग्रेजी-हिंदी वर्णमाला, गिनती, कार्टून पेंट किए हुए हैं. बच्चों के लिए खिलौने और अन्य सामान हैं. इनमें 30 से 35 बच्चे बैठने की क्षमता वाले क्लासरूम में 60 से 70 बच्चे बैठ रहे हैं. सरकार ने सभी कक्षाओं में 2 सेक्शन खोलने की आदेश दे रखे हैं. इनमें एक सेक्शन में 30 से 35 बच्चे होने चाहिए, पर न क्लास रूम है और न अलग-अलग सेक्शन में पढ़ाने के लिए शिक्षक हैं. इसी साल से कक्षा 6 से 10 तक के छात्रों को उर्दू सब्जेक्ट लेने की छूट दी गई है. स्कूल के 25 से 30 छात्रों ने उर्दू सब्जेक्ट लिया है, लेकिन न उर्दू की किताब आई, न इसका शिक्षक लगाया गया है. कक्षा 6, 7 और 8 के बच्चों की वर्कबुक नहीं आई है. 10वीं क्लास की गणित और सामाजिक विज्ञान की किताबें भी नहीं हैं.


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