Dol Gyaras 2022: राजस्थान में धूमधाम से मनाया गया डोल ग्यारस पर्व, शहर भ्रमण पर निकले भगवान, जानें-क्या है इतिहास और मान्यता
Rajasthan News: डोल ग्यारस को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे. इसी कारण से इस एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' भी कहा जाता है.
Dol Ekadashi 2022: राजस्थान (Rajasthan) में धूमधाम से डोल ग्यारस (Dol Gyaras 2022) का पर्व मनाया गया. यहां जलझूलनी एकादशी के अवसर पर प्रदेश भर के सभी जिलों में पालकी में सवार होकर भगवान शहर के भ्रमण पर निकले, जहां लोगों ने भगवान के दर्शन कर मनोकामना की. वैसे तो प्रदेश के बारां का डोल यात्रा और मेला प्रसिद्ध है जहां हजारों सेवकों व श्रद्धालुओं की उपस्थिति में भगवान कल्याण राय जी और रंगनाथ जी को शाही स्नान करवाया गया. हजारो श्रृद्धालुओं ने प्रभु के विगृह स्नान के अलौकिक दृश्य को अपलक निगाहों से निहारा. प्रभु की आरती के बाद भगवान की बाल प्रतिमा की शोभायात्रा भगवान के गर्भगृह से सोने-चांदी की पालकी में बिराजमान करके निकली.
बूंदी में आराध्य देव निकले भ्रमण पर
बूंदी (Bundi) के आराध्य देव रंगनाथ जी अपने निजी मंदिर से स्वर्ग सी आभा में मृंदग, शहनाई, बैंण्ड बाजों की मधुर ध्वनि के साथ ठाकुर जी की जय के जयकारों के साथ मंदिर प्रांगण में आए. शोभायात्रा के साथ राजपूती वेशभूषा में पाग, धोती कुर्ते पहने चल रहे पुजारियों के हाथ में ढाल, तलवार, गोटे सहित कई प्रकार के स्वर्ण और मोर पंखी लिए नृत्य करते चल रहे थे. प्रभु की एक झलक पाने के लिए मंदिर चौक की छतें और पाण्डाल लोगों से खचाखच भरा हुआ था. जिधर देखो उधर ही श्रद्धालु नजर आ रहे थे. इस दौरान भक्तजनों और श्रृद्धालुओं ने जगह-जगह प्रभु के बेवाण पर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया. शोभायात्रा के सबसे आगे घोड़े नाचते हुए चल रहे थे.
पुलिस-प्रशासन रहा पूरी तरह मुस्तैद
प्रभु के निशान, सूरज-चांद के प्रतीक और चांदी की पालकी पीछे-पीछे चल रही थी. इस अवसर पर लोगों की श्रद्धा देखते ही बन रही थी, पूरा नगर धर्ममय लग रहा था. दर्शनार्थी चारभुजा नाथ की जय, प्रभु आपकी जय हो का उद्घोष करते हुए झूम रहे थे. भगवान की सेवा करने वाले स्थानीय सेवक, विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता और पुलिस प्रशासन व्यवस्थाओं में पूरी तरह मुस्तैद थे. वहीं बूंदी जिला कलेक्टर रविंद्र गोस्वामी, पूर्व राजपरिवार के सदस्य बलभद्र सिंह, वंश वर्धन सिंह सहित कई गणमान्य लोग डोल यात्रा में मौजूद रहे.
डोल ग्यारस का महत्व
इतिहासकार पुरुषोत्तम पारीक ने बताया कि डोल ग्यारस को राजस्थान में 'जलझूलनी एकादशी' कहा जाता है. इस अवसर पर गणपति पूजा, गौरी स्थापना की जाती है. कई जगहों पर मेलों का आयोजन भी किया जाता है. पारीक बताते हैं कि इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है फिर शाम को इन मूर्तियों को वापस लाया जाता है. डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है.
क्या है मान्यता
डोल ग्यारस को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे. इसी कारण से इस एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' भी कहा जाता है. इसके प्रभाव से सभी दुःखों का नाश होता है. इस दिन भगवान विष्णु और बालकृष्ण के रूप की पूजा की जाती है जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता है. जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं.
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