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Azadi ka Amrit Mahotsav: फौजियों के नाम से जाना जाता है बूंदी का ये गांव, इस माटी ने भारतीय सेना को दिए सैंकड़ों शूरवीर

Rajasthan News: जिले में उमर ऐसा गांव होगा, जिसकी चौथी पीढ़ी फौज में पहुंच गई. जानकारों की मानें तो उमर गांव से 500 से अधिक सैनिक सेना में रहकर दुश्मनों को जंग में हरा चुके हैं.

Rajasthan News: राजस्थान में बूंदी (Bundi) के एक गांव को फौजियों के गांव के नाम से जाना जाता है. सेना के लिए आज भी युवाओं में जुनून है. इस माटी ने 500 सैनिक दिए हैं. देश अपना आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. हर घर तिरंगा अभियान की जोर-शोर से जारी है. इस अवसर पर उन वीर सपूतों को भी याद किया जा रहा है. हम बूंदी जिले के एक ऐसे गांव के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसे फौजियों का गांव कहा जाता है. बूंदी से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित उमर गांव की फौजियों के गांव के नाम से पहचान है. 

चौथी पीढ़ी पहुंची फौज में
चाहे प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध हो या फिर करगिल की लड़ाई बूंदी जिले के इस गांव के जांबाज पीछे नहीं हटे. कुछ तो मातृभूमि की रक्षा करते शहीद भी हुए. जिले में उमर एक ऐसा गांव होगा, जिसकी चौथी पीढ़ी फौज में पहुंच गई. जानकारों की मानें तो उमर गांव से अब तक करीब 500 से अधिक सैनिक सेना में रहकर दुश्मनों को जंग में हरा चुके हैं. गांव के दो सैनिक वर्ष 1965 के युद्ध में रघुनाथ मीणा जम्मू क्षेत्र और वर्ष 2002 में वीर बहादुर जगदेवराज सिंह बिहार में शहीद हुए.

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कौन थे वीर बहादुर जगदेवराज सिंह
वीर बहादुर जगदेवराज सिंह वर्ष 2002 में मध्य प्रदेश में चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने के दौरान मध्य परियों को सेना की गाड़ी में ले जा रहे थे. तभी हमलावरों ने ग्रेनाइट से सेना के ट्रकों को ही उड़ा दिया. उसमें वीर बहादुर जगदेव राज सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए उन्हें वहां से वाराणसी के अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां 7 दिनों बाद वे शहीद हो गए. वीर बहादुर जगदेव राज सिंह अपने पीछे पत्नी कमला देवी को छोड़ गए. उनके साथ तीन पुत्री और 2 पुत्र थे जिन्हें कमला देवी ने पाला और बड़ा किया. उनमें से 1 पुत्र सीएसएफ में तैनात है. वहीं अपने पति की कमी नहीं खले इसलिए उन्होंने स्मारक भी बना दिया.

हर घर से सेना में जा चुके हैं 3-4 जवान
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांव के करीब 25 सैनिकों ने अलग-अलग जगहों पर दुश्मनों से लोहा मनवाया. उमर से भारतीय सेना में 12 कैप्टन, 15 सूबेदार, 8 नायब सूबेदार सहित हवलदार और दर्जनों सिपाही देश की सीमा के प्रहरी रह चुके हैं. उमर गांव में प्रत्येक घर से तीन से चार लोग सेना में जा चुके हैं. फौज से रिटायर्ड होकर आए लोगों के सुनाए किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं. इनकी सुनाई सच्चाई लोगों को सिर्फ फिल्मों में दिखती है.

आज भी कम नहीं हुआ जज्बा
सेना से रिटायर्ड कैप्टन देवीसिंह मीणा, कैप्टन पांचूलाल मीणा, सूबेदार कजोड़लाल धोबी, नायक शिवजीलाल मीणा, हवलदार हरचंद मीणा, प्रभुलाल मीणा आज भी जरूरत पड़ने पर तैयार दिखेंगे. इन फौजियों ने उम्र भले पा ली हो, लेकिन इनका जज्बा आज भी कम नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि, दुश्मन के दांत खट्टे करने में उनके हौसले कम नहीं हुए. आवाज पड़ी तो आज भी टैंकर की भांति सीमा पर जा पहुंचेंगे.

चार पीढियां देश सेवा में
1. उमर के रूगा हवालदार ने प्रथम विश्वयुद्ध में जंग लड़ी. बाद में रूगा का बेटा श्रीलाल मीणा आजाद हिंद फौज में गार्ड कमांडर रहा. उसने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा. तीसरी पीढ़ी में कैप्टन देवीसिंह मीणा जिन्होंने 1971 के युद्ध में भाग लिया. चौथी पीढ़ी में देवीसिंह मीणा का पुत्र अर्जुन मीणा जो 14 साल से पाक बोर्डर पर हवलदार बनकर तैनात है.

2. उमर के छोगा सिंह ने प्रथम विश्वयुद्ध लड़ा. वे सिपाही थे. इसके बाद बेटा हरनाथ मीणा फौज में भर्ती हुआ. इसके बाद हरनाथ का बेटा जगदेव सिंह सैनिक बना, जो वर्ष 2000 में बिहार में शहीद हो गए. इसके बाद जगदेव का बेटा देवराज मीणा सीआरपीएफ में भर्ती हो गया. वह सात साल से फौज में है. जगदेव का एक बेटा आईआईटी कर रहा है. तीन बेटियां पढ़ाई कर रही हैं. उनकी मां कमला देवी आज भी गांव के युवाओं को फौज में जाने के लिए प्रेरित करने से पीछे नहीं हटती.

3. उमर के गणेशराम मीणा ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा. फिर बेटा कानाराम मीणा फौज में हवलदार रहे. तीसरी पीढ़ी में जगदीश मीणा, हरचंद मीणा और प्रभुलाल मीणा फौज में भर्ती हुए. अब चौथी पीढ़ी में शिवप्रकाश मीणा और प्रवीण कुमार फौज में भर्ती हो गए. 

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