Jodhpur News: राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर जोधपुर की पहचान बहुत खास है. यहां का खानपान, रहन-सहन और पहनावे को राजा रजवाड़े की नगरी में संजोए रखने के लिए आज भी भीतरी शहर में मेलों का आयोजन किया जाता है.इन्हीं में से एक है गणगौर पर्व पर आयोजित होने वाला परंपरागत फगड़ा घुड़ला मेला.इसमें एक लड़का लड़की की तरह मेकअप कर दुल्हन बनता है. वो सिर पर घुड़ला रखकर रात को सड़कों पर निकलता है.मस्ती मजाक से भरा यह मेरा पूरे मारवाड़ में प्रसिद्ध है. 


निखिल ने पहने दो करोड़ के गहने


इस बार दुल्हन बनने का मौका मिला जोधपुर के रहने वाले एमबीए पास 29 साल के परफ्यूम व्यापारी निखिल गांधी को. निखिल जब दुल्हन बने तो लोग उन्हें देखते रह गए. खूबसूरत लड़की की तरह दिख रहे निखिल ने दो करोड़ रुपये की कीमत की तीन किलो ज्वेलरी पहनी थी. जब वे शहर में निकले, तो सबकी नजरें उन पर टिकी हुई थीं. फगड़ा घुड़ला मेला पिछले 55 साल से आयोजित किया जा रहा है. इस बार शोभायात्रा में 55 तरह की झांकियां शामिल हुईं, लेकिन आकर्षण का केंद्र निखिल ही रहे. 


निखिल गांधी एक दिन में दुल्हन नहीं बने. इसके लिए उन्हें हफ्तों तक तैयारी करनी पड़ीं.जिस दिन उन्हें दुल्हन बनकर मेले में जाना था, उस दिन उनके श्रृंगार पर करीब 5 घंटे का समय लगा.फगड़ा घुड़ला मेले के लिए हर साल किसी पुरुष का चयन होता है. यह पुरुष महिला का भेष धरता है. 


क्या है इस मेले की परंपरा


निखिल का पुश्तैनी बिजनेस परफ्यूम का है. वो अपने धंधे में रमे हुए हैं. उन्होंने कहा कि अपनी परंपरा को बचाने उन्होंने इसके लिए हां की. इस रोल के लिए पहले लड़कों की पहले फोटो मंगाई जाती है. उसमें से एक का चयन होता है. इस बार 100 से अधिक फोटो आए थे.जिस पुरुष का चयन होता है उसे ट्रेनिंग देकर लड़कियों की तरह चलना और हाव-भाव सिखाया जाता है. 


फगड़ा घुड़ला मेला का समृद्ध इतिहास है. साल 1545 में जोधपुर राज के संस्थापक राव जोधा के बेटे सातल मारवाड़ की गद्दी पर बैठे थे.उन पर र अजमेर के शाही सूबेदार मीर घुड़ले खान,मल्लू खान और सीरिया खान ने हमला कर दिया था. वे अपने साथ महिलाओं को बंधक बनाकर ले गए थे. इसके बाद राव सातल ने अपने बेटों के साथ मिलकर युद्ध लड़ा और महिलाओं को आजाद कराया था. युद्ध में राव सातल और घुड़ले खान दोनों की मौत हो गई थी. युद्ध के बाद घुड़ले खान का सिर काटकर जोधपुर लाकर महिलाओं को सौंप दिया गया. 


घुड़ले खां का सिर हाथ में लेकर महिलाएं नृत्य करते हुए, गीत-भजन गाते हुए पूरे शहर में घर कर घूमी थीं, ताकि सबको पता चले कि जिसने भी नारी पर कुदृष्टि डाली उसका ऐसा अंजाम होता है. उसके बाद से ही चैत्र कृष्णाष्टमी से चैत्र शुद्धि तृतीया तक यह उत्सव मनाया जाता है. 


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