Dacoit Gabbar Singh: चंबल का असली गब्बर सिंह, जिसने तांत्रिक के कहने पर काट दिए 116 लोगों के नाक-कान, सैंकड़ों की ली थी जान
मध्यप्रदेश के इतिहास में डाकू गब्बर सिंह का आतंक आज भी याद किया जाता है. एक गरीब परिवार में जन्मा व्यक्ति कैसे आतंक का दूसरा नाम और देश के प्रधानमंत्री के लिए चिंता का विषय बन गया यह एक लंबी कहानी है.
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Dacoit Gabbar Singh: चम्बल के बीहड़ में अनेक खूंखार डाकू हुए और सबकी अपने-अपने समय में तूती बोलती थी. कई नामी डकैत हुए जैसे मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, दस्यु सुंदरी फूलन देवी, पुतलीबाई, कुषमा नाइन आदि. ऐसा ही एक खूंखार डकैत गब्बर सिंह (Gabbar Singh) नाम का चम्बल में हुआ. 50 के दशक में गब्बर सिंह के नाम का आतंक तीन राज्यों में आतंक का पर्याय बना हुआ था. डाकू गब्बर सिंह को लेकर देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) भी फिक्रमंद थे.
बताया जाता है कि वर्ष 1926 में मध्य प्रदेश के भिंड जिले के डांग क्षेत्र के एक गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ तो परिजनों ने नाम रख दिया प्रीतम सिंह. प्रीतम सिंह को परिजन प्यार से गबरा कहकर बुलाते थे. गबरा गरीब घर में पैदा हुआ था. लेकिन गबरा एकदम तंदुरुस्त और मस्त नजर आता था. जमीन थोड़ी सी थी और घर का गुजारा खेती से नहीं होने के कारण प्रीतम सिंह के पिता पत्थर की खदानों में मजदूरी का कार्य कर अपने परिवार का लालन-पालन कर रहे थे.
ऐसे शुरू हुई डाकू बनने की कहानी
गबरा बड़ा हुआ तो उसके पिता ने उसे भी खदान पर मजदूरी करने के लिए लगा दिया. समय गुजरता गया और गांव के रसूखदारों ने जमीनी विवाद के चलते गबरा के पिता की बुरी तरह से पिटाई कर दी. गांव में पंचायत बुलाई गई लेकिन पंचायत से भी गबरा के परिवार को कोई न्याय नहीं मिला उल्टा पंचायत ने गबरा के पिता की जमीन अपने कब्जे में ले ली. गबरा से यह अन्याय देखा नहीं गया और गबरा ने उन दो लोगों की हत्या कर दी, जिन्होंने गबरा के पिता के साथ मारपीट की थी. हत्या करने के बाद गबरा वहां से फरार हो गया और सीधा चम्बल के बीहड़ पहुंच गया. बस यहीं से शरू होती है एक सीधे-साधे इंसान की डाकू बनने की कहानी.
कल्याण सिंह ने किया गैंग में शामिल
वर्ष 1955 में प्रीतम सिंह उर्फ गबरा दो लोगों की हत्या कर चम्बल के बीहड़ में कुख्यात डकैत कल्याण सिंह की गैंग में जाकर शामिल हो गया. डाकू कल्याण की गैंग में कुछ महीने रहकर गबरा ने डकैती के गुर सीखे और डाकू कल्याण सिंह की गैंग में रहकर लूट, डकैती अपहरण जैसे अपराध करने लग गया. कुछ महीने तक डाकू कल्याण सिंह की गैंग में रहने के बाद गबरा ने अपनी अलग से गैंग बना ली. हर दिन गबरा लूट अपहरण हत्या की वारदातों को अंजाम देने लगा था और पुलिस भी गबरा के पीछे पड़ी हुई थी.
166 लोगों के काट दिए थे नाक-कान
कहा जाता है कि गबरा डाकू को किसी तांत्रिक ने यह कहा था कि अगर 116 लोगों के नाक और कान काट कर अपनी कुलदेवी पर चढ़ा दो तुम्हारा कभी भी एनकाउंटर नहीं होगा और न ही कभी पुलिस तुम्हें पकड़ पाएगी. फिर क्या था गबरा सिंह उसी दिन से लोगों के नाक और कान काटने में लग गया. वह जिसकी भी हत्या करता उसके नाक और कान काट लेता. अगर किसी का अपहरण करता तो उसके भी नाक और कान काट कर छोड़ देता. यहां तक कि पुलिस से मुठभेड़ हो जाने पर वह पुलिस वालों के भी नाक और कान काट लेता. कुछ ही दिनों में गबरा ने सैकड़ों लोगों के नाक-कान काट लिए थे. चम्बल के बीहड़ में कोई भी नाक और कान कटा हुआ व्यक्ति मिलता तो सभी समझ जाते थे कि यह गबरा का शिकार हुआ पीड़ित है. नाक और कान काटने की वारदातों से उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में गबरा का आतंक फैल गया और लोग गबरा को अब गब्बर सिंह कहने लगे थे.
मुखबिरी से गांव वालों को लगता था डर
डाकू गब्बर सिंह को मुखबिरी से बड़ी चिढ़ होती थी. जरा भी किसी पर मुखबिर होने के शक में तुरन्त उसको मार दिया जाता था. डाकू गब्बर सिंह के रहते लोगों ने मुखबिरी करना भी बंद कर दिया था. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के चम्बल के किनारे लगभग 15 जिलों में गब्बर सिंह का खौफ फैला हुआ था. मुखबिरी तो दूर जहां गब्बर सिंह के नाम की चर्चा भी होती तो वहां के लोग चुप्पी लगा जाते थे .1957 तक गब्बर सिंह के खिलाफ लगभग हत्या, लूट, अपहरण और डकैती के 200 मामले विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज हो चुके थे .
मुखबिरी के शक में 21 बच्चों को गोलियों से भूना
चम्बल के बीहड़ में गब्बर सिंह का आतंक बढ़ता देख पुलिस भी गब्बर सिंह को पकड़ने के लिए नए-नए तरीके अपनाती थी. लेकिन गब्बर सिंह पुलिस के हाथ नहीं लगा. कहा जाता है कि जब कोई भी डाकू गब्बर सिंह की मुखबिरी करने को राजी नहीं हुआ तो पुलिस ने बच्चों से मुखबिरी कराने की कोशिश की. क्योंकि जब भी गांव में डकैत आते थे तो बच्चों की नजर डकैतों पर रहती थी. गब्बर सिंह को इस बात का पता चला तो उसने मुखबिरी के शक में भिंड जिले के पास के एक गांव में एक साथ 21 बच्चों को गोली से भून दिया. पूरे देश में इस घटना के बाद गब्बर सिंह का खौफ फैल गया.
मुझे गब्बर सिंह चाहिए.. जिंदा या मुर्दा
21 बच्चों की हत्या की जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लगी तो उन्होंने बड़े अधिकारियों की मीटिंग बुलाकर गब्बर सिंह के बारे में पूछा और उसकी जानकारी लेकर गब्बर सिंह का सफाया करने के निर्देश दिए. वहीं मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू को फोन करके भी जानकारी ली. प्रधानमंत्री का फोन आने के बाद मुख्यमंत्री पर ज्यादा दबाव आ गया और और मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू ने तुरंत टास्क फोर्स का गठन कर आईजी के.एफ.रुस्तम को आदेश दिए की मुझे गब्बर सिंह जिन्दा या मुर्दा चाहिए.
सरकार ने रखा था सबसे बड़ा इनाम
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने डाकू गब्बर सिंह पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया. उस समय गब्बर सिंह ही ऐसा डाकू था जिस पर इतना बड़ा इनाम घोषित किया गया था. कुछ महीनों के बाद गब्बर सिंह पर इनाम 1 लाख 10 हजार हो गया था. राजस्थान की सरकार ने भी गब्बर सिंह पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया था और 10 हजार का इनाम उत्तर प्रदेश की सरकार की तरफ से भी गब्बर सिंह पर घोषित किया गया.
फिर पुलिस को मिला गांव वालों का साथ
गब्बर सिंह के खिलाफ कोई भी मुखबिरी करने को तैयार नहीं था. पुलिस ने चम्बल के बीहड़ में डेरा डाल दिया. सरकार ने गब्बर सिंह का सफाया करने का जिम्मा DSP राजेन्द्र प्रसाद मोदी को सौंपा था. STF टीम का लीडर राजेंद्र प्रसाद मोदी को बनाया गया, लेकिन पुलिस बिना मुखबिर के कुछ नहीं कर पा रही थी. पुलिस को कोई भी जानकारी नहीं मिलती और लगभग 3 वर्ष तक पुलिस कोशिश करती रही पर सफलता हाथ नहीं लगी. उसी दौरान भिंड जिले के पास एक गांव में आग लग गई. गांव में आग लगने के बाद गांव के सभी लोग वहां से भागकर सुरक्षित जगह पर पहुंच गए. लेकिन एक घर के अंदर एक बच्चा फंस गया. आग इतनी तेज थी की किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि बच्चे को आग से बाहर निकाल कर ले आता. लेकिन उसी समय DSP राजेंद्र प्रसाद मोदी वहां पहुंच गए और अपनी जान पर खेलकर बच्चे को बचा कर ले आए. इस घटना से DSP की इज्जत गांव वालों की नजरों में बढ़ गई और वे गब्बर सिंह की मुखबिरी करने को तैयार हो गए.
ऐसे हुआ कुख्यात गब्बर का एनकाउंटर
डीएसपी राजेंद्र मोदी ने जिस बच्चे को बचाया था उसके पिता ने सूचना दी कि आज गब्बर सिंह हाईवे से गुजरने वाला है. जिसके बाद 13 नवम्बर 1959 को आईजी केएफ रुस्तम सहित एसटीएफ की टीम और डीएसपी राजेंद्र प्रसाद मोदी छुपकर हाईवे पर गब्बर सिंह का इन्तजार करते रहे. जैसे ही गब्बर सिंह वहां से निकला पुलिस ने गब्बर सिंह पर गोलियां बरसाना शुरू कर दी. इस दौरान गब्बर सिंह की गैंग भी पुलिस पर फायरिंग करती रही. डीएसपी मोदी ने गब्बर सिंह पर दो ग्रेनेड फेंके और उनके फटने से गब्बर सिंह का जबड़ा फट गया. इसके बाद आईजी केएफ रुस्तम ने गब्बर सिंह के पास जाकर उसे गोलियों से भून डाला और गब्बर सिंह का खात्मा कर दिया. गब्बर सिंह के साथ हई इस मुठभेड़ में गब्बर सिंह सहित 9 डकैत मारे गए थे.
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