Kota News: कोटा की बेटी सुष्मिता चौधरी बनीं ISRO साइंटिस्ट, जानें चंद्रयान-3 मिशन में क्या था इनका अहम योगदान?
Sushmita Chowdhary: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी ने चांद पर तिरंगे की मौजूदगी के लिए आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई को चंद्रयान-3 मिशन लांच किया है.
Sushmita Chowdhary Chandrayaan-3 mission: हिंदुस्तान के लिए 14 जुलाई का दिन ऐतिहासिक व गौरवपूर्ण रहा. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग सफलतापूर्ण हो गई. इसरो ने एलवीएम 3-एम 4 रॉकेट के जरिए अपने तीसरे चंद्र मिशन का सफल प्रक्षेपण किया. चंद्रयान-3 की 23 अगस्त को चंद्रमा के सतह पर लैंडिंग होगी. अभी तक के सफल सफर में जहां भारत के जनप्रतिनिधियों के साथ आमजन में खुशी है वहीं जो लोग इस टीम का हिस्सा बने उनकी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं है.
ऐसे में हर एक व्यक्ति जो इससे मिशन से जुड़ा हुआ है उसकी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है. इस मिशन का हिस्सा कोटा की एक बेटी भी बनी है. जिसने इस उपलब्धि से कोटा के साथ राजस्थान और देश को गौरवान्वित किया है.
हम उस बेटी की बात कर रहे हैं जो चंद्रयान 3 का हिस्सा है, कोटा के श्रीनाथपुरम की रहने वाली सुष्मिता चौधरी की लॉन्च व्हीकल की ट्रेजेक्टरी को डिजाइन करने वाली टीम में अहम भूमिका रही है. उनके पिता मुंबई में रेलवे में इंजीनियर हैं. तीन बहने कोटा में रहकर मेडिकल व इंजीनियरिंग की पढाई कर रही हैं, मां उनका पूरा ध्यान रखती हैं.
सुष्मिता ने बताया कि चंद्रयान-3 को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने तक तीन चरण पूरे करने होंगे. 40 दिनों में यह तीनों चरण होंगे. इसकी सबसे कम दूरी महज 170 किमी है. इसे पृथ्वी की कक्षा की सबसे ज्यादा दूरी 36 हजार किमी पर लेकर जाया जाएगा. जब यह दूरी तय कर ली जाएगी. तब वह चांद की कक्षा में जाएगा.
कॉलेज में आई थी इसरो की टीम
कोटा में पढाई का अच्छा माहौल है, ऐसे में सुष्मिता बताती हैं कि वह पहले चित्तौड़ में रहती थी, वहां से कोटा आए और 7वीं से 12वीं तक पढ़ाई पूरी कर वर्ष 2014 में आईआईटी में सलेक्शन हुआ. यहां से आईआईटी मंडी हिमाचल में इलेक्ट्रिकल ब्रांच मिली और 2018 में आईआईटी कंप्लीट हुई. उसके बाद यहीं पर इसरों की टीम आई और यहां मेरा सलेक्शन हो गया. उसके बाद से पांच साल से इसरो में काम करते हुए गर्व होता है कि देश के लिए कुछ कर रहे हैं.
पिता हफ्ते में एक दो बार आते हैं कोटा
सुष्मिता के पिता एन के चौधरी जो रेलवे जीएम ऑफिस मुम्बई में एक्सईएन ब्रिज डिजाइन में हैं वह बताते हैं कि वह सांगोद के एक छोटे से गांव से निकले हैं. रेलवे में कई बार ट्रांसफर हुए, कोटा में पढ़ाई के लिए बच्चे यहीं रहते हैं और अब यही स्थापित हो गए हैं. वह कहते हैं कि बेटी की इस उपलब्धि पर पूरे परिवार को गर्व हैं. देश को गौरवान्वित करने पर बेहद प्रसन्नता होती है. सुष्मिता अभी एसडी लेवल 11 साइंटिस्ट है, जॉइनिंग साइंटिस्ट सी लेवल पर हुई थी. चार साल बाद प्रमोशन हुआ है.
इसरो में जाने का नहीं सोचा था
सुष्मिता शुरू से ही इंजीनियर बनना चाहती थी. वह कल्पना चावला से भी प्रेरित हैं. उन्हें मैथ्स सब्जेक्ट अच्छा लगता था. अंतरिक्ष विज्ञान या इसरो के बारे में शुरुआत में नहीं सोचा था, इतना पता भी नहीं होता था, धीरे धीरे जानने लगे और जब कॉलेज गए तो वहां पता लगा कि वैज्ञानिक कैसे काम करते हैं. सुष्मिता कहती हैं कि मुझे गर्व है कि मैं चंद्रयान तीन का हिस्सा रही हूं.
इसरो में जाने से पहले हुई कड़ी परीक्षा और इंटरव्यू
इसरो में सिलेक्शन की प्रक्रिया काफी जटिल है. अपने आईआईटी की अकेली लड़की, जिसे इसरो में जॉब मिली है. इसरो में सिलेक्शन का प्रोसेस बिल्कुल अलग हैं, पहले चार साल के अकेडमिक रिपोर्ट देखी गई, प्रोजेक्टस देखे, जिन पर स्टूडेंट्स ने काम किया. इसके बाद इंटरव्यू हुआ. पढ़ाई के बारे में भी और हम विज्ञान को कितना जानते है, इस बारे में भी सवाल पूछे गए. ऐसी सिचुएशन बताई गई, जो परेशानी वाली हों तो उससे कैसे निपटेंगे. हमारे बैच में मैं ही एक लड़की थी. इसके पहले भी जब 2014 में इसरो टीम कैंपस में आई थी तब भी सिर्फ चार लड़कों का ही सलेक्शन हुआ था.
40 मिनट का हुआ था इंटरव्यू
सुष्मिता ने कहा कि 40 मिनट का इंटरव्यू हुआ था. इंटरव्यू में हमसे एकेडमिक करियर को लेकर ही सवाल पूछे गए. हमारे रिजल्ट, प्रोजेक्ट से जुड़े हुए सवाल, मेरी ब्रांच में रिलेटेड सवाल पूछा- अगर कोई ऑब्जेक्ट या गाड़ी काफी तेज स्पीड में बेकाबू हो जाए तो उसे किस लॉजिक के साथ कंट्रोल करेंगे ऐसे कई सवाल पूछे गए. पूछा की इसरों में क्यो जाना चाहती हो, मेने कहा हर देशवासी का सपना होता है वह देश के लिए काम करे. कई परिस्थितियों से गुजरने के बाद इसरो की टीम ने मुझे सेलेक्ट किया.