Kota News: राजस्थान के कोटा संभाग में भगवान शिव  के एक से बढ़कर एक मंदिर और शिवालय हैं, जिनकी अपनी विशेष महत्ता और अद्भुत महिमा है. कहीं भगवान शिव परिवार के साथ विराजे हैं तो कहीं चमत्कारिक रूप में शिवलिंगों के दर्शन किए जा सकते हैं, इनमें से अधिकांश मंदिर और शिल्प कलाएं बेहद प्राचीन हैं. इनमें से कहीं नंदी रूठे हुए हैं, कहीं शिवलिंग रंग बदल रहे हैं और कई जगह पंचमुखी शिवलिंग की प्राचीनता अचंभित कर देती है. दरअसल, यहां बात कोटा में मौजूद चारचोमा के पंचमुखी, अद्वितीय शिवलिंग की कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा अर्चना करने से हर प्रार्थना पूरी होती है. 
 
चार चोमा में मंदिर और उसके बाहर ऐसी कलाकृतियां हैं जिन्हें देखकर नजर ठहर जाती है. भगवान शिव त्रिलोकों के स्वामी हैं, वे सबसे पवित्र और निमोर्ही होकर अपनी आधी देह में प्रिया को धारण करते हैं. चारचोमा और बाड़ोली में धर्म व कला प्रतीकों के रूप में निर्मित शिवलिंग की प्रकृति और स्वभाव की विशेषताएं स्पष्ट करते हैं. चारचोमा पंचमुख शिवलिंग को शिव के पांच रूपों में अभिव्यक्ति मानते है. तत्पुरुष (पूर्व), अघोर (दक्षिण), सद्योजात (पश्चिम) और वामदेव (उत्तर). ये चार दिशाओं और आकाश के द्योतक है. चारचौमा कोटा से 20 मील उत्तर में अत्यंत प्राचीन महादेव मंदिर का पुरातात्विक महत्व का स्थान है.


संसार के पंचभूतों के पंचमुख लिंग के रूप अभिव्यक्ति की गई 
यहां एक गुप्तकालीन मंदिर है जिसके ऊपरी भाग का जीर्णोद्धार हो चुका है. मंदिर में एक प्राचीन गुप्तकालीन पंचमुख शिवलिंग पूजांतर्गत है. चार चौमा मंदिर में कई गुप्तकालीन प्रतीक हैं, जिनमें कमलाकृतियों का अंकन, स्तंभों पर लटकती हुई लड़ियां, गर्भगृह की द्वार शाखाओं के अंकन औक गूढ़मण्डप के चार प्रमुख स्तंभ सभी गुप्तकालीन मंदिरों में अपना विशेष स्थान रखते हैं. संसार के पंचभूतों की अभिव्यक्ति पंचमुख लिंग के रूप में की गई है और उन्हें पृथक-पृथक मुद्राओं द्वारा प्रदर्शित किया गया है.


काले कसोटी पत्थर पर चमकते असाधारण है शिव


मंदिर के पुजारी लोकेश शर्मा बताते हैं कि चारचौमा का यह पंचमुख लिंग अत्यंत सुन्दर और अलंकृत है. काले कसौटी पत्थर से बना लगभग 75 सेमी की ऊंचाई का चारों ओर से बाहर की तरफ उभरे हुए मुखों वाला चमकीला असाधारण शिल्प का नमूना है. इसमें मुख मुद्रायें, केशविन्यास विशेष रूप से उल्लेखनीय है. सामने वाला मुख तत्पुरुष, जटाजूट, कर्ण कुण्डल धारण किए हुए है, चन्द्रमा और बालेन्दु उत्कीर्ण है. चेहरे पर पुरुषत्व के भाव प्रदर्शित है. जटाओं की गोलाइयां उभरी हुई है. कंधों पर बिखरी हुई जटाओं के साथ कोने में एक आकृति हाथ जोड़े हुए खड़ी है. द्वितीय (उत्तर) की ओर मुख वामदेव उमा का है. सबसे पुरातन व शिव में स्त्रीत्व का भाग देवी के रूप में उमा जो जल तत्व से संबंधित है.


विशेष कुंड के साथ मौजूद हैं गुप लिपियां और शिलालेख


चार चौमा में एक गर्भगृह, अंतराल, एक सभामंडप मंदिर का निर्माण करते हैं. सभामंडप की छत सपाट और आयताकार है. बताया जाता है कि अठारहवीं शताब्दी ईस्वी के दौरान, मंदिर का पुनर्निमाण किया गया था. मंदिर के मैदान में गुप्त लिपियों के साथ दो ब्राह्मी शिलालेख पाए गए. मंदिर के पीछे, देवी शक्ति की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है. मंदिर के पास एक अद्भुत बावड़ी है. यहां शिवरात्रि और सावन में भक्तों का तांता लगा रहता है. इस मंदिर के साथ शिव हनुमान और विभिषण की एक कथा भी जुड़ी है जो कैथून के विभिषण मंदिर और कोटा के रंगबाडी बालाजी से जुड़ी हुई है.


ये भी पढ़ें: Rajasthan: 'मैं भगवान का अवतार हूं... मारने के बाद कर दूंगा जिंदा', कहकर शराबी ने कर दी बुजुर्ग महिला की बेरहमी से हत्या