दुर्घटना में मौत पर परिवार ने बेटे का अंतिम संस्कार किया, चार दिन बाद फोन आया- 'भैया मैं जिंदा हूं'
चित्तौड़गढ़ जिले में चार दिन पहले जिस छोटे भाई का अंतिम संस्कार किया गया था. उसका फोन आया कि वह जिंदा है, सभी हैरान रह गये तो आखिर अंतिम संस्कार किसका हुआ? यहां जानें पूरा मामला.
चित्तौड़गढ़ जिले में एक ऐसी वारदात हुई जिसने एक बार तो सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया. होली के एक दिन पहले जिस छोटे भाई के शव को अपने हाथों से अंतिम संस्कार किया था उसी का उसके बड़े भाई के पास चार दिन बाद फोन आया और कहा दादोसा मैं जिंदा हूं.
एक बार तो बड़े भाई ने विश्वास नहीं किया लेकिन जब छोटा भाई जिंदा सामने आया था सभी चौक गए. किसी को विश्वास नहीं हुआ लेकिन सवाल भी खड़ा हुआ कि अगर यह जिंदा है तो अंतिम संस्कार किसका किया?
अस्थियों को हरिद्वार ले जाने की तैयारी थी
पुलिस ने बताया कि चित्तौड़गढ़ के चंदेरिया थाना क्षेत्र के सतपुड़ा डोरिया निवासी 30 साल के रविंद्रसिंह पुत्र मोतीसिंह शुक्रवार को गांव से एक रिश्तेदार की बाइक लेकर निकला था. शनिवार सुबह सदर थाना पुलिस को सूचना मिली कि उदयपुर- भीलवाड़ा रिठौला हाईवे के निकट क्षतिग्रस्त बाइक के पास एक व्यक्ति का क्षत विक्षत शव पड़ा हुआ है. उसका चेहरा बुरी तरह से कुचला हुआ है.
पुलिस ने मृतक के कपड़े व उसकी जेब में मिले पर्स, मोबाइल के आधार पर परिजनों ने उसकी पहचान रविंद्रसिंह के रूप में की. इसके बाद शव को गांव ले जाकर परिजनों ने अंतिम संस्कार कर दिया. परिजन उसकी अस्थियों को हरिद्वार ले जाने की तैयारी में लगे.
फोन आया, दादोसा मैं जिंदा हूं और खुला राज
मौत के चार दिन बाद फोन आया. दादोसा मैं रविंद्रसिंह बोल रहा हूं, कौन रविंद्रसिंह? आपका भाई, मेरा भाई? मेरे भाई को तो मरे चार दिन हो गए. मैंने खुद उसकी चिता जलाई है, उसने कहा कि नहीं मैं जिंदा हूं और भदेसर के पास गांव वालों ने मुझे चोर समझ कर पकड़ लिया है. यह देखकर भाई कुछ देर तक तक कुछ सोच ही नहीं पाया फिर पुलिस को फोन किया. पुलिस मौके पर पहुंची और रविन्द्र को घर लेकर आई. सभी देखकर चौक गए, किसी को विश्वास नहीं हुआ.
...तो आखिर अंतिम संस्कार किसका किया
सदर थानाधिकारी हरेंद्र सिंह सौढा ने बताया कि बाद में पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में रविंद्रसिंह ने कहा कि वह उदयपुर में काम करता था. वहां प्रतापगढ़ जिले के रामपुरिया निवासी संतोष कुमार पुत्र किरणलाल मीणा से दोस्ती हो गई. संतोष होली पर चित्तौड़गढ़ घूमने आया था. उसने कहा कि मुझ पर 20-25 लाख का कर्ज है. सोचा था कि हत्या की कहानी रचु तो बीमा पॉलिसियां का 60-70 लाख रुपए क्लेम मिल जाएगा.
इस तरह उन्होंने हत्या की प्लानिंग रची और वारदात को अंजाम दिया. धारदार हथियार व पत्थरों से वर्कर हत्या कर दी. फिर खुद के कपड़े पहनाएं और पर्स जेब में रख दिया. सिर पूरा कुचल देने की वजह से पुलिस और परिजनों ने कपड़े और पर्स में पड़े आधार कार्ड से रविन्द्र का शव माना.
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