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Churu Fort Story: जानें- कहानी राजस्थान के एक ऐसे किले की, जहां से दुश्मनों पर दागे गए चांदी के गोले
Churu Fort Story: बताया जाता है कि चूरू किले को आत्मरक्षा के साथ-साथ लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनवाया गया था. सन् 1814 में इस किले से एक ऐसी घटना घटी, जिसने इसकी पहचान दूसरे से अलग कर दी.
Story of Churu Fort: राजस्थान (Rajasthan) में कई ऐसे किले हैं, जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. सभी किलों का अपना एक इतिहास और कहानी है. आज हम आपको एक ऐसे ही किले के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास और कहानी दोनों दूसरे किलों से अलग और अनोखी है. हम बात कर रहे हैं. राजस्थान में स्थित चूरू किले (Churu Fort) की. चूरू किले को सन् 1694 में ठाकुर कुशल सिंह (Thakur Kushal Singh) ने बनवाया था.
बताया जाता है कि चूरू किले को आत्मरक्षा के साथ-साथ लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनवाया गया था. सन् 1814 में इस किले से एक ऐसी घटना घटी, जिसने इसकी पहचान दूसरे से अलग कर दी. उस समय इस किले पर ठाकुर कुशल सिंह के वंशज ठाकुर शिवजी सिंह का राज था. कहा जाता है कि ठाकुर शिवाजी सिंह एक स्वाभिमानी शासक था. वहीं दूसरी तरफ बीकानेर रियासत पर महाराज सूरत सिंह का शासन था.
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ठाकुर शिवाजी सिंह की सेना में थे 200 घुड़सवार
बीकानेर रियासत के महाराज सूरत सिंह को एक महत्वाकांक्षी शासक बताया जाता है, जिनका अक्सर ठाकुर शिवजी सिंह से विवाद होता था. इतिहासकारों के अनुसार ठाकुर शिवाजी सिंह की सेना में 200 पैदल सेना और 200 घुड़सवार थे, लेकिन युद्ध के समय सेना की संख्या अचानक से बढ़ जाती थी, क्योंकि यहां रहने वाले लोग अपने राजा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे और इसीलिए वो एक सैनिक की तरह दुश्मनों से लड़ते थे.
दुश्मनों पर दागे गए चांदी के गोले
सन् 1814 की बात है, जब बीकानेर के शासक सूरत सिंह और चुरू रियासतों के मामले को लेकर विवाद हुआ. इसके बाद बीकानेर के शासक सूरत सिंह ने चुरू पर चढ़ाई कर दी. ठाकुर शिवजी सिंह की सेना ने जमकर जवाब दिया, लेकिन कुछ दिनों के बाद किले में गोला-बारूद खत्म होने लगा. ऐसे में ठाकुर शिवजी सिंह की चिंता बढ़ने लगी. इसके बाद जनता और व्यापारियों ने इसे अपनी आर्थिक सहायता दी और अपने रियासत की रक्षा के लिए राजा को अपना सोना-चांदी दे दिया. उसके बाद चांदी के गोले बनाए गए और इन्हीं गोलों से ठाकुर शिवाजी सिंह की सेना ने दुश्मनों को जवाब दिया. आखिरकार सूरत सिंह की सेना ने हार मान ली और उन्हें वहां से लौटना पड़ा.
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