उदयपुर: कहते हैं दुख और सुख, एक सिक्के के दो पहलू हैं, जो जीवन में आते और जाते रहते हैं. लेकिन दुख की घड़ी शारीरिक रूप से आए तो तोड़ कर रख देती है.लेकिन ऐसे भी है जिन्होंने इस दुख की घड़ी को भी पार कर सफलता का परचम लहराया है.ऐसा ही एक बड़ा उदाहरण उदयपुर के लोकेश चौधरी भी हैं. वो जब 8वीं कक्षा में थे तो करंट लगने से उनके दोनों हाथ जल गए थी. इस वजह से उनके दोनों हाथ काटने पड़े थे. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और कोशिश जारी रखी. आज वो नेशनल धावक बन गए हैं. जानिए लोकेश की कहानी उन्हीं की जुबानी.


दोस्त के घर पढ़ाई के दौरान लगा करंट


लोकेश बताते हैं कि मेरा साधारण परिवार है.रोज स्कूल जाना और घर आना यही रूटीन बना हुआ था.24 मार्च 1998 को उनकी जिंदगी बदल गई. उस समय वो 8वीं कक्षा में थे.एक दिन वो अपने दोस्त के घर पढ़ने गए. वो और उनका दोस्त छत पर पढ़ रहे थे.दोस्त के घर के पास से ही एक हाईटेंशन बिजली की लाइन जा रही थी. छत पर खड़ा थे तो अचानक उनका हाथ बिजली के तार पर चला गया. इससे उन्हें करंट लगा उनके दोस्त के पूरे घर मे बिजली दौड़ गई.अचानक उन्होंने अपना दूसरा हाथ नीचे जा रहे तार पर झटके से रखा तो डीपी में फाल्ट हुआ और लाइट बंद हो गई.इसके बाद वो बेहोश हो गए. उनका पहले उदयपुर में इलाज हुआ. बाद में उन्हें अहमदाबाद ले जाया गया. 


अहमदाबाद के अस्पताल में उनके सिर का ऑपरेशन हुआ. हाथ जल गए थे, इसलिए उन्हें काटना पड़ा. इसका उन्हें बहुत दुख हुआ और वो बहुत रोए. तीन माह तक बिस्तर पर रहे और अवसाद में चले गए. कुछ साल बाद उनके शहर के भूपालपुरा थाने में थानाधिकारी इंस्पेक्टर चांदमल सिंगारिया आए.उन्होंने मुझे देखा और हिम्मत बढ़ाई. वो थाने में उन्हें अपने पास बैठाते थे. बाद में एक एनजीओ में नौकरी दिलवाई जहां सभी दिव्यांग ही थे.वहां बिना हाथ के लोकेश ही थे. बाकी सभी के पैर में समस्या थी.इसी कारण सभी हाथ के पेपर वर्क करते और उन पेपर को पहुंचाने का काम जेब में रखकर लोकेश करते थे. ऐसे ही कुछ वर्षों तक चलता रहा.फिर 2016 में किस्मत बदली.


पहले तोड़ा राजस्थान का रिकॉर्ड


राजस्थान में 2016 में पैरा ओलंपिक प्रतियोगिता हुई.इसमें एनजीओ में आकर इसके बारे में बताया गया. इस पर लोकेश ने 100 और 200 मीटर रेस में भाग लिया. उन्होंने दोनों स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता.उन्हें बताया गया कि आपने राजस्थान स्तर का रिकॉर्ड तोड़ा है.इसके बाद लोगों ने उन्हें नेशनल की तैयारी करने को कहा. इसके लिए लोकेश का चयन लगभग हो गया है, क्योंकि उनकी कैटेगरी T-45 है, उसमें उनके अलावा कोई धावक ही नहीं है.इसके बाद अब संभावना है कि लोकेश को मलेशिया में होने वाले अंतरराष्ट्रीय पैरा ओलंपिक में जगह मिल जाए.लोकेश रोजाना 4 किमी वॉक और दौड़ा पहले से करते थे.अब वो रोज 10 किमी दौड़ते हैं. 


नाक से मोबाइल और होठों से लिखाई


35 साल के लोकेश के हाथ नहीं होने के कारण जो काम हाथ करते हैं वह काम पैर,होठ और नाक से कर रहे हैं. घर के सामान्य कार्य जैसे पुस्तक का पेज पलटना, लाइट जलाना, ब्रश करना आदि पैर से करते हैं.लिखने का काम होठों में पेन पकड़कर करते हैं और मोबाइल को चलाने के लिए नाक का इस्तेमाल करते हैं.


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