Dacoits of Chambal: चम्बल के आसपास फैले बीहड़ में जब-जब जुल्म हुआ लोग अपने गुस्से को काबू में नहीं रख पाए और फिर डकैत बन गए. इनमें कई नामी डाकू हुए जिनके नाम से लोग कांपने लगते थे. सदियों पुराने बीहड़ का रिश्ता बागियों के साथ पुराना है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 7 जिलों में फैले बीहड़ में कई ऐसी बागी हुए जिन्होंने अपने सिद्वान्तों से ख्याति पाई थी, लेकिन कुछ डाकू ऐसे भी हुए जिन्होंने चम्बल के बीहड़ को बदनाम कर दिया. चम्बल के बीहड़ में जो भी बागी हुआ उसकी अपनी अलग ही कहानी थी पर यह जरूर है कि जो भी बागी हुआ वो किसी न किसी द्वारा सताया गया था या उसपर कुछ लोगों ने जुल्म किया जिससे वह बागी हो गए.


चंबल का एक खूंखार दस्यु जगजीवन परिहार भी था बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश के इटावा और मध्य प्रदेश भिंड जिले की सीमा पर स्थित ललूपुरा चौरेला गांव में जगजीवन परिहार का जन्म हुआ था. पढ़ाई लिखाई में जगजीवन कमजोर था. जगजीवन ने बुजुर्गों की जमीन स्कूल के लिए दान में दी थी और जगजीवन परिहार उस स्कूल में चपरासी का काम करता था. जगजीवन को पुलिस वाले डाकुओं के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए भी इस्तेमाल करने लगे. जगजीवन धीरे-धीरे डाकुओं की जानकारी जुटाने के लिए उनके गिरोह तक जाने लगा. पुलिस को जगजीवन पर भी शक होने लगा. जगजीवन को पैसा भी मिलने लगा और जगजीवन डाकुओं के साथ अपहरण में भी साथ देने लगा. इसी बीच जगजीवन के खिलाफ पुलिस में कई मामले भी दर्ज हो गए.


कई किडनैपिंग और 50 हत्याओं में शामिल


एक दिन जगजीवन का गांव के ही अपने पड़ोसी उमाशंकर से विवाद हो गया. उमाशंकर ने जगजीवन पर बहुत जुल्म किए थे. इसके बाद प्रतिशोध की आग में जलकर जगजीवन परिहार ने बदला लेने का फैसला कर लिया था. यह भी कहा जाता है कि उसने अपने भाइयों के साथ मिलकर गांव के ही रहने वाले इस रसूखदार उमाशंकर की 2002 में हत्या कर अपना बदला पूरा किया था. इसके बाद जगजीवन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कई लूट डकैती और हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया. दस्यु जगजीवन परिहार और उसकी गिरोह का आतंक इतना बढ़ गया था कि हर तरफ आए दिन मौत का तांडव मचाया करता था. लूट-फिरौती-अपहरण की वारदात आए दिन होती रहती थी. जानकारी के अनुसार, डाकू जगजीवन परिहार का आतंक था. जगजीवन परिहार की गैंग कई किडनैपिंग और लगभग 50 हत्याओं में शामिल हुई थी.


होली वाले दिन गांव वालों के खून से खेली होली


जगजीवन परिहार ने होली के दिन अपने गांव में ही एक युवक को जिन्दा होली में झोंक दिया था और दो अन्य लोगों को पुलिस की मुखबिरी के शक में गोलियों से भूनकर खूनी की होली खेली थी. आज भी सभी जगह होलिका दहन के साथ हर घर का माहौल रंगीन होता है उस वक्त चंबल घाटी के 3 गांव का माहौल गमगीन हो जाता है. लोग आज भी नहीं भूले है जगजीवन परिहार की खून की होली को. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की पुलिस ने जगजीवन का आतंक देख पुलिस ने उस पर इनाम की राशि 8 लाख घोषित कर दी थी और जगजीवन के भाई सहित उसकी गैंग पर 15.5 लाख का इनाम पुलिस द्वारा घोषित किया गया था.


18 घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद हुआ था अंत


डाकू जगजीवन परिहार के आतंक से निपटने के लिए पुलिस ने योजना बनाई और तीनों राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की पुलिस ने मिलकर 14 मार्च 2007 को 8 लाख के इनामी दस्यु जगजीवन परिहार और उसकी गैंग के 5 डाकुओं को 18 घंटे की चली मुठभेड़ में मार गिराया. इस मुठभेड़ में एक पुलिस अधिकारी भी शहीद हुआ था और लगभग आधा दर्जन पुलिसकर्मी घायल हुए थे.


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