Rajasthan News: आपने जरूर परिवार में बुजुर्गो को कहते सुना होगा 'शुभ मुहूर्त कीजै शुभ काजा' इसीलिए जन्म के बाद चाहे मुडंन हो, झडूला, या शिक्षा प्रारंभ करने का समय, या फिर शादी विवाह और नए घर में प्रवेश, नया व्यापार प्रारंभ करना आदि शुभ कार्यो के लिए हम पंडित से पंचाग मुहूर्त निकलवाते हैं. क्योंकि शुभ समय का मतलब होता है कि ग्रह-नक्षत्र मनुष्य के लिए फलदायक बने उसमें बाधा या विघ्न उपस्थित न हो और बिना रूकावट कार्य सफल हो जाए. इसीलिए हमारे सभी कार्यो में पंचाग से मुहूर्त का विशेष महत्व है. ऐसे में पंच-पर्व दीपावली का त्यौहार बिना मुहूर्त कैसे मना लें? 


कब मनाएं दिवाली?
पंडित सुरेश श्रीमाली ने बताया कि आज दीपावली तो कल गोवर्धन पूजा और अन्नकूट फिर अगले दिन भाईदूज यही क्रम बरसों से चलता आ रहा है. वहीं इस बार ऐसा नहीं हो रहा है, क्योंकि हम अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार जनवरी से दिसम्बर की गणना से अंग्रेजी तारीखों पर हमारे पर्व, त्यौहार नहीं मनाते बल्कि पंचाग के अनुसार तिथियों की गणना से मनाते हैं. तारीख तो एक के बाद दो और दो के बाद तीन ही आएगी लेकिन जरूरी नहीं कि प्रतिपदा के बाद द्वितीय तिथि ही आए. प्रतिपदा तिथि की वृद्धि होकर फिर प्रतिपदा और इसके बाद द्वितीय तिथि आ सकती है, तो कभी कोई तिथि क्षय होकर प्रतिपदा के बाद सीधे तृतीया भी आ सकती है. इसीलिए हमारे सारे पर्व, त्यौहार, व्रत, पूजा आदि पंचाग के अनुसार ही होते हैं. 


ग्रहों की चाल बदली
इस बार सौर मण्डल में ग्रहों का भ्रमण और चाल ऐसी बनी है कि दीपावली एक दिन पहले और गोवर्धन पूजा भी दीपावली के एक दिन बाद की जाएगी. ऐसा इसलिए कि तिथियों का संयोग कुछ ऐसा बना है और उस पर सूर्यग्रहण के कारण लोगों में भ्रम, संशय और असमंजस बन गया है. सबसे पहली बात तो यह है कि न कोई भ्रम रखें न असमंजस, आप निश्चित होकर मां महालक्ष्मी की पूजा अर्चना करें और पंचपर्व यानी पहले धनतेरस, फिर नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा-अन्नकूट और भाईदूज उत्साह और उमंग के साथ मनाएं. 
 
पहले मनाएं रूप चतुर्दशी
रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी इसलिए मनाई जाती है कि इस दिन यमराज के लिए दीपदान किया जाता है. श्रीकृष्ण ने इस दिन नरकासुर का वध कर सोलह हजार कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त करवाया था. ऐसी मान्यता है कि इस दिन सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शरीर पर तेल व उबटन लगाने के बाद स्नान करना चाहिए. फिर विष्णु भगवान की पूजा अर्चना और शाम को यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए. कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करने के बाद तेल से स्नान किया था. इसी कारण यह परंपरा चली आ रही है और माना जाता है कि ऐसा करने से स्वर्ग व रूप की प्राप्ति होती है.
 
आप इस दिन यानी 24 अक्टूबर की सुबह जल्दी उठकर तेल व उबटन लगाएं फिर स्नान करें. सुबह 9 बजकर 33 मिनट से 10 बजकर 57 मिनट तक शुभ और फिर 11 बजकर 59 मिनट से 12 बजकर 44 मिनट तक अभिजित या फिर दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से 5 बजकर 58 मिनट तक लाभ अमृत के चैघड़िया में पूजा-अर्चना करें. इसके बाद आप यमराज के निमित्त प्रतीकात्मक 11 या 21 दीपक सजाएं. दीपक आपको शाम छह बजे तक जलाने हैं. 


अमावस की निशा रात्रि में मनाएं दीपावली
अब सबसे पहले तो यह भ्रम दूर कर लें कि सूर्यग्रहण के कारण आप एक दिन पहले दीपावली मना रहे हैं. 24 अक्टूबर की शाम 5 बजकर 27 मिनट पर अमावस्या प्रारंभ हो जाएगी जो अगले दिन यानी 25 अक्टूबर की शाम 4 बजकर 18 मिनट तक रहेगी. 24 अक्टूबर को रात्रि में जब मां महालक्ष्मी का पूजन करेंगे तो अमावस्या की रात्रि में ही करेंगे. इस दिन शाम 7 बजकर 14 मिनट से लेकर रात्रि 9 बजकर 11 मिनट तक वृषभ लग्न रहेगा और इसके बाद अर्धरात्रि 1 बजकर 42 मिनट से 3 बजकर 47 मिनट तक सर्वश्रेष्ठ सिंह लग्न रहेगा. इस समय पूजन करें जिससे महालक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव स्थिर रूप से बनी रहेगी. वहीं इस दिन मालव्य योग, सुनफा योग, वाशी योग, हंस योग, भद्र योग, शश योग रहेगा.  


इन शुभ मुहूर्त में करें खरीददारी
इसके अलावा इस दिन अमृत वेला सुबह 6 बजकर 45 मिनट से सुबह 7 बजकर 30 मिनट तक, शुभ वेला-सुबह 9 बजकर 33 मिनट से सुबह 10 बजकर 57 मिनट तक रहेगी. वहीं अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगी. साथ ही चंचल वेला दोपहर 1 बजकर 46 मिनट से 3 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. इसके बाद लाभ अमृत वेला दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से शाम 5 बजकर 58 मिनट तक है. इस विषेश दिन और शुभ मुहूर्त में आप खरीददारी या कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं.


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