Pratapgarh: दहकते अंगारों और आग की लपटों पर नंगे पैर चलते हैं भक्त, मां पद्मावती से जुड़ी हैं ये मान्यताएं
Pratapgarh Padmavathi Temple News: श्रद्धालु ऐसा मानते हैं कि इससे उनपर किसी तरह की आंच नहीं आती है. इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है. स्थानीय लोग यहां की प्रतिमा को दुर्गा के रूप में पूजते हैं.
Rajasthan News: देश में मंदिरों से हिन्दू अनुयायियों की कई प्रकार की मान्यताएं और गहरी आस्थाएं जुड़ी हुई है. ऐसी ही आस्था हजारों लोगों की उदयपुर संभाग के प्रतापगढ़ जिले के निनोर गांव स्थित मां पद्मावती मंदिर से जुड़ी हुई है. यहां भक्त अग्नि और अंगारों पर चलकर माता के दर्शन करने जाते हैं. यही नहीं अंगारों पर चलने के बाद लोग कहते हैं कि मां ने जैसे फूल बिछा दिए हैं. यह मंदिर भी सैकड़ों वर्ष पुराना है. यहां रंग पंचमी से तीन दिन का मेला लगता है, जहां हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं. मान्यता है कि अग्निकुंड पर चलने से निरोगी होंगे. साथ ही इस अग्नि कुंड में चलने के बाद किसी की आंच तक नहीं आती है.
दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते भक्त
इस मंदिर से भक्तों की इतनी गहरी आस्था जुड़ी हुई है कि यहां बच्चे-बूढ़े, महिलाएं-पुरुष, सभी अंगारों पर नंगे पैर चलकर माता के दर्शन करते हैं. श्रद्धालुओं के मन इतनी गहरी आस्था कि उनके मन में न कोई आह, न जलने का डर रहता है, वे बेखौफ अंगारों पर गुजरते हैं. हजारों श्रद्धालु दहकते अंगारों पर नंगे पांव इस तरह चलते है, जैसे किसी मखमली गलीचे या फूलों की चादर पर चल रहे हों. माता पद्मावती मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है. यहां मां पद्मावती की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है.
क्या हैं मान्यताएं
गांव के लोग कहते हैं कि प्रतिमा दिन में तीन रूप धारण करती है, इसलिए इसे त्रिरूपधारिणी भी कहते हैं. इस मंदिर और निनोर कस्बे का उद्गम उत्तर महाभारत काल से है. उस काल के प्रसिद्ध चरित्र नल-दमयंती का इस कस्बे से जुड़ाव है. नल-दमयन्ती का उल्लेख उत्तर महाभारत काल के समय का है, जो करीब 3300 साल पुराना माना जाता है. नेनावती में ही नैनसुख तालाब, पद्मावती मां का मंदिर और उसके पास गुरु-शिष्य की जीवित समाधि प्रसिद्ध है. यहां हर साल रंगपंचमी से 3 दिन का मेला लगता है. इसमें मंदिर प्रांगण में अंगारों की चूल का आयोजन होता है.
मंदिर पुजारी धधकते अंगारों पर चलकर मां पद्मावती के दर्शन करते हैं और फिर मेले में आने वाले भक्त अंगारों पर चलकर मां की प्रतिमा के दर्शन करते हैं. इस मंदिर में प्रतिमा को स्थानीय लोग दुर्गा के रूप में भी पूजते हैं. कहा जाता है कि यह प्रतिमा भगवान विष्णु की पत्नी और धन की देवी लक्ष्मी का रूप है. देवी की गोद में बालक भी है. भक्तों का कहना है कि यहां उनकी सारी मुराद पूरी होती है और चूल पर चलने से निरोग भी रहते हैं.
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